लोगों को जल्द ही समझ आ गया कि हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद की भावनाओं में बहाकर उनसे बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ती महंहाई और लोगों की कम होती आमदनी की तरफ से ध्यान भटकाने की कोशिश है। यही वजह है कि 2014 और 2019 में अपार जनसमर्थन पाने वाली भाजपा इस बार अपने दम पर बहुमत तक नहीं पा सकी। उसे क्षेत्रीय दलों का समर्थन लेकर सरकार बनाना पड़ रही है। सीएसडीएस लोकनीति सर्वे में कहा गया जनता ने अपने मुद्दों के आधार पर वोट डाला था।
लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक, कम से कम 30% मतदाताओं ने कहा कि वे महंगाई को लेकर चिंतित थे, जो चुनाव से पहले 20% से भी ज्यादा है। करीब 32% मतदाताओं की मुख्य चिंता बेरोजगारी थी। सर्वे एजेंसी ने पूरे मतदान के दौरान भारत के 28 में से 23 राज्यों के लगभग 20,000 मतदाताओं से बात की।
कांग्रेस के घोषणापत्र के जरिए नौकरी देने का मुद्दा जब उछलने लगा तो भाजपा ने भी इसे छूने की कोशिश की और ढेरों वादे कर डाले। इसके बाद यह आंकड़ा 27% पर आ गया। यानी लोगों को थोड़ा भरोसा हुआ कि तीसरी बार आने पर मोदी सरकार रोजगार देगी। लेकिन ऐसे मतदाताओं का अंतर सिर्फ 5% था।
सीएसडीएस लोकनीति सर्वे के अनुसार घटती आमदनी और भ्रष्टाचार तथा घोटालों से निपटने का सरकार का तरीका मतदाताओं को चिंतित करने वाले अन्य मुद्दे थे। कुल 21% मतदाताओं ने कहा कि उन्होंने देश के विकास के प्रयासों के लिए भाजपा को चुना, जबकि 20% ने मोदी के नेतृत्व को चुना, जो चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में 10% से दोगुना हो गया।
सर्वे में यूपी के अयोध्या शहर में भव्य मंदिर के निर्माण को मोदी और भाजपा सरकार का सबसे पसंदीदा काम बताया गया। हालांकि इसके बावजूद भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह फैजाबाद लोकसभा सीट 50 हजार से ज्यादा वोटों से हार गए। यही लल्लू सिंह थे, जिन्होंने कहा था कि 400 पार के बाद संविधान बदलना लाजमी है। लल्लू की हार ने अयोध्या में नया इतिहास लिख दिया है।
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