मैरिटल रेप अपराध है या नहीं इसे लेकर दिल्ली हाई कोर्ट की खंडित राय सामने आई है। बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट की 2 जजों की बेंच ने इस मामले में 1-1 से फैसला सुनाया।
जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी. हरिशंकर की इस मामले में अलग-अलग राय थी। हाई कोर्ट की बेंच ने मैरिटल रेप को अपराध ठहराए जाने के मामले में दायर याचिका पर लंबे वक्त तक सुनवाई के बाद फैसला सुनाया।
इस बारे में साल 2015 में याचिका दायर की गई थी। याचिका में बलात्कार के कानूनों में मौजूद उस अपवाद को चुनौती दी गई थी जो पुरुषों को अपनी पत्नियों के साथ उनकी बिना सहमति के शारीरिक संबंध बनाने पर सुरक्षा देता है।
यह अपवाद भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में खंड दो है और यह किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी से जबरन शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार के रूप में परिभाषित नहीं करता। हालांकि पत्नी की उम्र 15 वर्ष या इससे ज़्यादा होनी चाहिए।
जस्टिस शकधर ने कहा कि यह अपवाद भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करता है जो समानता के अधिकार, अभिव्यक्ति की आजादी और जीवन और व्यक्तिगत आजादी की अभिव्यक्ति और संरक्षण से संबंधित हैं।
लेकिन जस्टिस हरिशंकर ने कहा कि वह इस मामले में साथी जज की राय से सहमत नहीं हैं।
अदालत ने याचिकाकर्ता को सर्वोच्च न्यायालय के सामने अपील करने की अनुमति दे दी है और कहा कि इस बारे में अब तक दो हाई कोर्ट अपनी राय दे चुके हैं।
कर्नाटक हाई कोर्ट की टिप्पणी
कर्नाटक हाई कोर्ट ने इस साल की शुरुआत में इस बारे में टिप्पणी की थी। हाई कोर्ट ने एक पति द्वारा अपनी पत्नी को सेक्स स्लेव बनने के लिए मजबूर करने के मामले में कहा था कि शादी किसी को भी क्रूर जानवर बनने का लाइसेंस नहीं देती है।
इस बारे में लंबे वक्त तक सुनवाई चली थी और उसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने बीती 21 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 7 फरवरी को दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह मैरिटल रेप को अपराध ठहराने के मामले में अपना स्टैंड अदालत के सामने रखे।
लेकिन केंद्र सरकार के द्वारा ज्यादा ज्यादा वक्त मांगे जाने पर हाई कोर्ट ने नाराजगी जताई थी। केंद्र सरकार ने कहा था कि उसने इस बारे में देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से राय मांगी है और किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इसमें काफी वक्त लगेगा।
केंद्र ने किया था विरोध
2017 में केंद्र सरकार ने एक हलफनामा दायर कर मैरिटल रेप को अपराध ठहराने की याचिका का विरोध किया था। केंद्र सरकार ने कहा था कि यह विवाह जैसी संस्था को अस्थिर कर सकता है और पतियों को परेशान करने का एक हथियार भी बन सकता है। लेकिन बाद में केंद्र सरकार ने अपना रुख बदला और उसने कहा कि वह अपने स्टैंड पर फिर से विचार कर रहा है।
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