लोकसभा चुनाव से पहले 'पकौड़ा अर्थव्यवस्था' थी! अब कई राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले 'गाय-गोबर अर्थव्यवस्था' है! आर्थिक मोर्चे पर नाकामी क्या 'गाय-गोबर-गोमूत्र' से दूर हो पाएगी? यदि ऐसा नहीं है तो फिर बीजेपी के नेता से लेकर मंत्री और प्रधानमंत्री तक का ज़ोर गाय-गोबर-गोमूत्र पर क्यों है? राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष ने हाल ही में कहा है कि स्टार्टअप का फ़ोकस गोबर, गोमूत्र जैसे गाय के उत्पादों को कॉमर्शियलाइज़ करने पर है और सरकार इसके लिए 60 फ़ीसदी तक फ़ंड मुहैया कराएगी। पशुपालन मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा है कि हम गाय की फ़ैक्ट्री लगा देंगे, सिर्फ़ बछिया पैदा होंगी और क्रांति ला देंगे। मोदी ने मथुरा में कहा कि ओम और गाय सुनते ही कुछ लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इनके इन बयानों से सवाल उठते हैं कि क्या बीजेपी गाय और हिन्दुत्व के नाम पर चुनाव लड़ेगी?
झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं। मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे किए हैं। लेकिन अर्थव्यवस्था की जो स्थिति है वह काफ़ी गंभीर है।
सरकार पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात करती रही है, लेकिन अर्थव्यवस्था की हालत इतनी ख़राब है कि हाल की तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर गिरकर 5 फ़ीसदी पर पहुँच गई है। बेरोज़गारी दर 45 साल के रिकॉर्ड स्तर पर है। हर सेक्टर में मंदी है। ऑटो सेक्टर की तो हालत और भी ख़राब है। सोसाइटी ऑफ़ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफ़ैक्चरर्स यानी सियाम के अनुसार यात्री वाहनों में 31 फ़ीसदी की गिरावट आई है। कारों की घरेलू बिक्री में 41 फ़ीसदी से अधिक की ज़बरदस्त गिरावट आई है।
ऐसी रिपोर्टें रही हैं कि यह गिरावट माँग में कमी आने के कारण है और लोगों की ख़रीदने की क्षमता कम हुई है। बहुत सारे लोगों की नौकरियाँ गईं हैं और जो लोग नौकरी में हैं वह भी पैसे ख़र्च नहीं करना चाहते हैं। व्यापार में लगे लोग भी पैसे बाजार में लगाने से डरते हैं। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने भी हाल ही में कहा था कि लोगों का एक दूसरे पर विश्वास नहीं रहा और वे पैसे अपनी जेब से निकालना नहीं चाहते हैं। उन्होंने कहा था कि इसीलिए देश में 70 साल में ऐसा नकदी संकट नहीं आया।
अर्थव्यवस्था की ऐसी ख़राब हालत ने बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। माना जा रहा है कि गाय-गोबर-गोमूत्र पर बीजेपी नेताओं के जो बयान आ रहे हैं वह इससे बचने के तरीक़े के रूप में हैं।
गाय, ओम सुनते ही कुछ लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं: मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मथुरा में जो भाषण था वह भी गायों पर ही था। मोदी ने एक बार फिर यह संकेत दे दिया है कि वह और उनकी पार्टी बीजेपी गाय और हिन्दुत्व के नाम पर राजनीति करती रहेगी। मोदी ने मथुरा में राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ओम और गाय सुनते ही कुछ लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से देश 16वीं सदी में लौट जाएगा।'
‘गोबर और मूत्र में स्टार्टअप पर फ़ोकस’
राष्ट्रीय कामधेनु अयोग यानी गाय आयोग के अध्यक्ष वल्लभ कथीरिया ने कहा कि डेयरी के अलावा गायों के गोबर और मूत्र जैसे उत्पादों का ‘व्यवसायीकरण’ करने पर ध्यान केंद्रित करने वाले स्टार्टअप को अपने शुरुआती निवेश का 60% तक सरकारी फ़ंड मिल सकता है।
‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ से बातचीत में कथीरिया ने कहा, ‘हम युवाओं को गाय आधारित उद्यमिता के लिए प्रोत्साहित करेंगे और वे न केवल दूध और घी जैसे उत्पादों से, बल्कि मूत्र और गोबर जैसे उत्पादों से भी कमा सकते हैं जिनका उपयोग दवा बनाने और कृषि कार्यों में किया जा सकता है।’
नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा फ़रवरी में 500 करोड़ के शुरुआती फ़ंड के साथ स्थापित किए गए कामधेनु आयोग का उद्देश्य इन नए व्यवसायों के लिए विकास इंजन बनना है। कथीरिया ने कहा कि ‘गोमूत्र और गोबर का व्यवसायीकरण’ लोगों को बिना दूध देने वाली गायों को नहीं छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
गाय की फ़ैक्ट्री लगा देंगे: गिरिराज सिंह
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कुछ दिन पहले ही कहा था, 'मेरे दो विज़न हैं। विदर्भ में गाय छोटी-छोटी होती हैं, जो एक लीटर, दो लीटर दूध देती हैं। आने वाले दिनों में अब देश के अंदर जो गर्भाधान होगा, उससे जो बच्चे होंगे वो बछिया ही होंगी। ...30 लाख डोज़ 2019-20 में इस्तेमाल की जाएँगी। 2025 तक 10 करोड़ बछिया होंगी। अगर हम एक करोड़ डोज देते हैं तो सवा लाख से डेढ़ लाख करोड़ का फ़ायदा होगा। हम गाय की फ़ैक्ट्री लगा देंगे।'
इसके बाद गिरिराज सिंह ने यह भी समझाया कि गाय की फ़ैक्ट्री कैसी होगी। फिर उन्होंने कहा कि ऐसी क्रांति लाएँगे कि हमारे दूध की क़ीमत दुनिया के दूध की क़ीमत के बराबर नहीं होगी, हमारे दूध की क़ीमत कम होगी।
बीजेपी में छटपटाहट क्यों?
गाय पर बीजेपी का फ़ोकस क्यों शिफ़्ट हुआ है यह बीजेपी के अंदर छटपटाहट से भी समझा जा सकता है। मंत्रियों के बयानों में इसे महसूस किया जा सकता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कह दिया कि ऑटो सेक्टर में मंदी के लिए युवाओं की सोच और ओला-उबर कैब ज़िम्मेदार हैं। केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती का बचाव करते हुए बोर्ड ऑफ ट्रेड की बैठक में कहा कि टेलीविजन पर जो गणित समझाया जा रहा है… उस गणित में मत उलझिये। उन्होंने कहा कि गणित ने कभी भी आइंस्टीन को गुरुत्वाकर्षण की खोज में मदद नहीं की। बता दें कि गुरुत्वाकर्षण की खोज न्यूटन ने की थी, आइंस्टीन ने नहीं। सरकारी आँकड़े हैं कि बेरोज़गारी 45 साल में रिकॉर्ड स्तर पर है। लेकिन गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा है कि बेरोज़गारी के आँकड़े ग़लत हैं और एक व्यक्ति की भी नौकरी नहीं गई है। ऐसे में यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है कि गाय-गोबर-गोमूत्र पर इतना ज़ोर क्यों है!
अपनी राय बतायें