यूरोप के देश और कुछ अन्य देशों में जहाँ अलग-अलग कंपनियों की वैक्सीन मिक्स में लगाकर ट्रायल किया जा रहा है वहाँ उत्तर प्रदेश में 20 लोगों को मिक्स वैक्सीन लापरवाही में लगा दी गई। दोनों में एक बड़ा अंतर है। एक जगह निगरानी में शोध चल रहा है तो दूसरी जगह पूरी तरह लापरवाही।
मिक्स वैक्सीन का सीधा मतलब है कि दो अलग-अलग कंपनियों की दो खुराकें लगा दी जाएँ। ऐसा ही यूपी के सिद्धार्थनगर ज़िले में हुआ है। यहाँ एक गाँव में अप्रैल के पहले हफ़्ते में क़रीब 20 लोगों को कोविशील्ड की पहली खुराक लगी थी और 14 मई को दूसरी खुराक कोवैक्सीन की लगा दी गई। हालाँकि उन्हें कोई गंभीर दुष्प्रभाव की शिकायत नहीं आई है, लेकिन इस लापरवाही के मामले में स्थानीय स्वास्थ्य कार्यालय ने जाँच के आदेश दिए हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार मुख्य चिकित्सा अधिकारी सिद्धार्थनगर डॉ. संदीप चौधरी ने कहा है कि यह नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है, कॉकटेल वैक्सीन नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा है कि जाँच की रिपोर्ट आने पर दोषी कर्मचारी के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
ऐसा ही एक मामला पहले महाराष्ट्र के जालना ज़िले में आया था। एक बुजुर्ग को दो अलग-अलग कंपनियों का टीका लगा दिया गया था। उन्हें कुछ हल्के दुष्प्रभाव हुए थे।
तो सवाल है कि दो अलग-अलग कंपनियों के टीके लेने पर आख़िर नुक़सान क्या है? क्या ऐसा किया जा सकता है? कोरोना टीके को लेकर अभी तक दिशा-निर्देश यही है कि जिस कंपनी की पहली खुराक लगाई गई है दूसरी खुराक भी उसी कंपनी की लगाई जानी होगी। इसको लेकर सख्त निर्देश हैं।
इस पर नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने बीते दिनों कहा था कि भारत और विदेशों में इसे लेकर जारी शोध पर नज़र रखी जा रही है। मिक्स वैक्सीन पर उन्होंने कहा था, 'वैज्ञानिक दृष्टि से ऐसा संभव है लेकिन और शोध की ज़रूरत है। यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि डोज मिक्स करनी चाहिए। अभी इसके लिए वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं हैं।'
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोध में पाया गया कि अगर दो टीकों को मिक्स किया जाए तो कोई बड़ा ख़तरा नहीं है, लेकिन दुष्प्रभाव पहले से ज़्यादा होते हैं। अभी यह साफ़ नहीं है कि वैक्सीन का कॉकटेल कोरोना के ख़िलाफ़ कितनी इम्यूनिटी देता है।
यह शोध ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी-एस्ट्राज़ेनेका कंपनी की वैक्सीन और फाइजर की वैक्सीन को लेकर की गई थी। इसमें यही देखने की कोशिश की गई थी कि क्या दो अलग-अलग खुराक देने पर लंबे समय तक इम्युनिटी बनी रहती है। फरवरी से ही इस पर शोध जारी है। बीबीसी ने इस महीने एक रिपोर्ट में कहा था कि 10 लोगों को एस्ट्राज़ेनेका का टीका 4 हफ़्तों के अंतराल पर लगाया गया था उनमें बुखार के लक्षण दिखे थे, लेकिन जब उन्हें एक खुराक एस्ट्राज़ेनेका की और दूसरी फ़ाइजर की लगाई गई तो दुष्प्रभाव 34 फ़ीसदी ज़्यादा हो गया। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी अब मॉडर्ना और नोवावैक्स वैक्सीन पर भी ऐसा ट्रायल कर रहा है। हालाँकि, अभी तक कोविशील्ड और कोवैक्सीन की मिक्स वैक्सीन पर किसी शोध की ख़बर अब तक नहीं है।
हालाँकि मिक्स वैक्सीन कितना प्रभावी है इसका नतीजा अभी तक नहीं आया है। मेदांता अस्पताल के सीएमडी डॉ. नरेश त्रेहन ने 'आजतक' से बातचीत में कहा कि इसको लेकर कई शोध चल रहे हैं जिसके जरिए पता लगाने की कोशिश हो रही है कि क्या अलग-अलग वैक्सीन को मिक्स कर देने से फायदा मिलेगा? हालांकि, अभी यह साफ नहीं हो पाया है कि कोरोना की अलग-अलग वैक्सीन को मिक्स करके लगाने से ज्यादा एंटीबॉडी या इम्यूनिटी बनती है।
एक सवाल यह भी है कि अलग-अलग कंपनियों के टीके लगाने के लिए शोध क्यों किया जा रहा है?
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