कोरोना वायरस से बचें या भूखे मरने की नौबत आने से? लॉकडाउन के बाद यही डर शहरों में फँसे हज़ारों मज़दूरों के दिल और दिमाग़ में है। यही उलझन उन्हें जैसे-तैसे घर भागने पर मजबूर कर रही है। कोई वाहन नहीं है तो पैदल ही। 5-10 किलोमीटर तक ही नहीं, 600-700 किलोमीटर की दूरी भी। युवा मज़दूर हैं। अपेक्षाकृत उम्रदराज भी हैं और गर्भवती महिला भी। वह महिला जिसे डॉक्टर आराम करने और ज़्यादा नहीं चलने की नसीहतें देते हैं। लेकिन क्या करें। जान पर आफत जो आई है। शायद उनके सामने एक चुनौती है। एक रास्ता चुनने की। किससे बचें? कौन ज़्यादा ख़तरनाक है और कौन कम? क्या यह पढ़ते हुए आपकी रूह काँप रही है? उन तसवीरों और वीडियो को देखिए जिसमें हज़ारों लोग हाईवे पर पैदल जाते दिख रहे हैं। उनकी बातें सुनिए। यह कैसी व्यवस्था हो गई है? क्या कोरोना से लड़ने के लिए ऐसी तैयारी की गई?
लॉकडाउन संकट: 'भूखे मरने से बेहतर 700 किलोमीटर पैदल चल घर पहुँच जाएँ'
- देश
- |
- |
- 26 Mar, 2020

कोरोना वायरस से बचें या भूखे मरने की नौबत आने से? लॉकडाउन के बाद यही सवाल शहरों में फँसे हज़ारों मज़दूरों के दिमाग़ में है। यही उलझन उन्हें जैसे-तैसे घर भागने पर मजबूर कर रही है।
देश के बाक़ी शहरों की तरह ही दिल्ली-एनसीआर से भी लोग अपने घर की ओर लौट रहे हैं। सबकी अलग-अलग कहानी है। अलग-अलग दर्द हैं। लेकिन कारण एक समान ही हैं। कोरोना का डर। लॉकडाउन की स्थिति। बाहर निकलने पर बेहद सख्ती। बिना कमाई के भूखे रहने की नौबत। नेशनल हाईवे पर जब ऐसे लोगों से बात करेंगे तो अहसास होगा कि उनके सामने बहुत बड़ा संकट है। कई लोगों के लिए घरों में रहना ज़्यादा मुश्किल नहीं है, लेकिन इनके लिए शायद असंभव सा हो।