कोरोना के वैक्सीन को लेकर गुजरात सरकार के एक आदेश पर नया विवाद खड़ा हो गया है।
गुजरात सरकार ने आदेश दिया है कि 18 बड़े शहरों के सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के मालिकों, मैनेजरों और कर्मचारियों को 30 जून तक और बाक़ी क्षेत्रों में 10 जुलाई तक अनिवार्य रूप से वैक्सीन लगवाना होगा। ऐसा नहीं करने वाले प्रतिष्ठानों को बंद कर दिया जाएगा।
इसके पहले गुजरात टेक्निकल यूनिवर्सिटी ने अप्रैल में ही 18 साल से ज़्यादा उम्र के सभी छात्रों के लिए वैक्सीन को अनिवार्य कर दिया था।
कोरोना टीका अनिवार्य?
कोरोना की भयंकरता को देखते हुए यह फ़ैसला जनहित में और सही लगता है।
लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या सरकार वैक्सीन को सबके लिए अनिवार्य बना सकती है? क्या इससे लोगों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है? लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या वैक्सीन को अनिवार्य करने से कोरोना का प्रसार रुक जाएगा?
क्या देश में इतनी बड़ी संख्या में वैक्सीन का डोज़ इस समय उपलब्ध है कि सब लोगों को अगले 15-20 दिनों में वैक्सीन लगा दिया जाय?
वैक्सीन है नहीं तो अनिवार्य कैसे करेंगे?
गुजरात उन राज्यों में शामिल है जहाँ सबसे ज़्यादा तेज़ी से वैक्सीन लगाया जा रहा है। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की इस बात के लिए तारीफ़ की जानी चाहिए। लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि अभी तक न तो पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन उपलब्ध है और न ही उसे लगाने के लिए सुविधा है।
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'द वर्ल्ड इन डाटा' की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 21 जून तक राज्य की क़रीब 17 प्रतिशत आबादी (दो करोड़ 40 लाख) को वैक्सीन का एक डोज़ लगाया गया था और क़रीब 4 प्रतिशत आबादी (52 लाख) को ही दूसरा डोज़ लग पाया था।
गुजरात में इस समय क़रीब 50 हज़ार लोगों को हर दिन वैक्सीन लगाया जा रहा है। राज्य सरकार अब 60 हज़ार लोगों को हर दिन वैक्सीन देने की कोशिश कर रही है। धीरे धीरे इसे एक लाख प्रतिदिन तक ले जाने की योजना है।
कमोबेश यही स्थिति पूरे देश की है। सवाल यह है कि जब वैक्सीन पूरी संख्या में उपलब्ध है ही नहीं, उसे अनिवार्य कैसे किया जा सकता है?
क्या वैक्सीन कोरोना प्रसार को रोक देगी?
वैक्सीन को लेकर कई तरह की ग़लत धारणाएँ भी चल रही हैं। बहुत से लोग यह मान बैठे हैं कि वैक्सीन लगाने के बाद कोरोना का संक्रमण होगा ही नहीं। यह धारणा पूरी तरह से ग़लत है।
सभी वैक्सीनों का ट्रायल इस बात के लिए किया गया है कि यह शरीर के भीतर वायरस पहुँचने के बाद उससे मुक़ाबला करने के लिए तैयारी करे और उसे सेल और फेफड़ा सहित अन्य अंगों को नुक़सान पहुँचाने से रोके। वैक्सीन हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है जिससे हम वायरस से लड़ सकते हैं। वैक्सीन व्यक्तिगत सुरक्षा प्रदान करती है। बीमारी गंभीर होने से रोकती है। जिससे मौत या अस्पताल के आईसीयू तक जाने का ख़तरा कम हो जाता है।
वैक्सीन न तो किसी व्यक्ति के संक्रमित होने से सुरक्षा देती है और न ही संक्रमण फैलाने से रोकती है। लेकिन व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए वैक्सीन ज़रूरी है।
अनिवार्य वैक्सीन की वक़ालत करने वाले लोग इस भ्रम में हैं कि इससे कोरोना का प्रसार रुक जाएगा। महामारी विज्ञान के विशेषज्ञों का मानना है कि अगर 60 प्रतिशत लोग वैक्सीन से सुरक्षित हो जाँय तो महामारी को रोका जा सकता है। इसे हर्ड इम्यूनिटी कहते हैं। इस हिसाब से भी वैक्सीन अनिवार्य करना ज़रूरी नहीं लगता है।
क्या विदेशों में वैक्सीन अनिवार्य है
दुनिया के अनेक देशों में ऐसे क़ानून हैं जिसके ज़रिए सरकारें किसी महामारी को फैलने से रोकने के लिए वैक्सीन अनिवार्य कर सकती हैं। ब्रिटेन में चेचक को रोकने के लिए 1892 में वैक्सीन अनिवार्य करने का क़ानून बनाया गया। अमेरिका में भी चेचक रोकने के लिए 1905 में अनिवार्य वैक्सीन का क़ानून बना।
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अमेरिकी अदालत का फ़ैसला
लेकिन हाल में अमेरिका की संघीय अदालत ने एक फ़ैसले में कहा कि वैक्सीन अनिवार्य नहीं किया जा सकता है। ये फ़ैसला उस ग्रुप के मुक़दमे में आया जो मनुष्य, जानवर, पक्षी या पौधों तक के जीन में किसी भी तरह के बदलाव के विरोधी है।
वैक्सीन का लंबे समय तक किसी भी बुरे प्रभाव का सबूत अभी तक सामने नहीं आया है, लेकिन इसके प्रभाव के बारे में सही पता काफ़ी समय बाद ही चल पाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी वैक्सीन को अनिवार्य नहीं बनाने की सलाह दी है।
क्या भारत में वैक्सीन को अनिवार्य किया जा सकता है? भारत के क़ानूनों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। लेकिन सरकार कई दूसरे क़ानूनों की मदद से वैक्सीन को अनिवार्य बना सकती है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन क़ानून 2005 की धारा 6 में 10 के ज़रिए सरकार वैक्सीन को अनिवार्य कर सकती है।
पासपोर्ट क़ानून 1967 के ज़रिए भी सरकार उन लोगों को वैक्सीन लेने के लिए मज़बूर कर सकती है, जिनके पास पासपोर्ट है। लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मार्च में ही साफ़ कर दिया कि वैक्सीन स्वैक्षिक होगा। सरकार इसे अनिवार्य नहीं बनाएगी।
संविधान की धारा 21 जीवन और व्यक्तिगत सुरक्षा की गारंटी देता है। इसके आधार पर किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसे वैक्सीन के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
इसके अलावे धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के आधार पर भी कोई व्यक्ति वैक्सीन लेने से इंकार कर सकता है। भारत में चेचक और पोलियो सहित कई वैक्सीन बिना किसी दबाव के देश भर में लगाया जा चुका है और सभी महामारियाँ पूरी तरह से नियंत्रित की जा चुकी हैं। कोरोना का वैक्सीन भी लोगों को जागरूक बना कर और सहमति से लगाया जा सकता है।
अभी तो ज़रूरत सिर्फ़ इस बात की है कि सरकार ज़रूरत के मुताबिक़ वैक्सीन उपलब्ध कराए और लगाने का पर्याप्त इंतज़ाम हो।
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