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विदेशी दान क़ानून में संशोधन से कोरोना से लड़ने के लिए पैसे मिलने में अड़चन

ऐसे समय जब कोरोना महामारी से जूझ रहे भारत को अधिक से अधिक आर्थिक मदद की ज़रूरत है, अरबों रुपए अटके पड़े हैं क्योंकि विदेशी दान नियामक अधिनियम में किए गए संशोधन के बाद ग़ैर-सरकारी संस्थाओं को पैसे मिलना मुश्किल हो गया है। 

नरेंद्र मोदी सरकार ने 2015 में ही इस नियम में संशोधन किया ताकि मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे मुद्दों पर काम कर रही संस्थाओं पर नकेल कसा जा सके। इसमें सितंबर 2020 में भी बदलाव किए गए।

लेकिन इसका ताज़ा शिकार वे गैर-सरकारी संस्थाएं हैं जो इस समय ऑक्सीजन, अस्थायी कोरोना अस्पताल, वेंटीलेटर, ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर जैसी चीजों के इंतजाम में लगी हैं। 

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168 करोड़ रुपए

कोलकाता से छपने वाले अंग्रेजी अख़बार 'द टेलीग्राफ़' के अनुसार, अमेरिका स्थित दातव्य संस्था अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन ने भारत में कोरोना पीड़ितों की मदद के लिए 2.30 करोड़ डॉलर यानी लगभग 168 करोड़ रुपए एकत्रित किए। उसने 30 लाख डॉलर यानी लगभग 22 करोड़ रुपए भारत भेजे ताकि कोरोना मरीजों के लिए 2,500 बिस्तरों वाला एक अस्पताल तैयार किया जा सके।

लेकिन वह पैसा उन्होंने जिस संस्था को भेजा था, उसे अब तक नहीं मिला है। बैंक के नियम कड़े कर दिए गए हैं, ढेर सारी जानकारियाँ माँगी जा रही हैं, कई तरह का हिसाब किताब दिखाने को कहा जा रहा है, कई तरह की बंदिशें लगाई जा रही हैं, लालफीताशाही चरम पर है। 

अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी निशांत पांडेय ने कहा,

नियम में जो संशोधन किए गए, उससे सारे लोगो भौंचक रह गए। ये ग़ैर-सरकारी संगठन ही कोरोना से राहत में अहम काम कर रहे हैं, उन पर ही लगाम कसी जा रही है।


निशांत पांडेय, मुख्य कार्यकारी, अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन

क्या कहना है सरकार का?

भारत सरकार का कहना है कि संस्थाओं को अधिक ज़िम्मेदार बनाने और भारत के नॉन प्रॉफ़िट सेक्टर पर निगरानी रखने के लिए ये परिवर्तन किए गए हैं।

भारत सरकार इसके बदले यह चाहती है कि लोग पीएम केअर्स फंड से पैसे दें। लेकिन विदेशी दानदाताओं को इस पर आपत्ति है कि पीएम केअर्स फंड का ऑडिट नहीं हो सकता, वह संसद समेत किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है, उसने किससे पैसे लिए और कहाँ खर्च किए, यह बताने को बाध्य नहीं है। विदेशी दानदाता ऐसी संस्था को पैसे नहीं देना चाहते।

corona NGO in troule after foreign donation choked - Satya Hindi

भारत सरकार को चिट्ठी

अमेरिका के 13 ग़ैरसरकारी संगठनों ने एक चिट्ठी भारत सरकार को लिखी है। इस चिट्ठी में कहा गया है कि नए प्रावधानों से भारत का नॉन प्रॉफ़िट सेक्टर पूरी तरह पंगु हो जाएगा। इन प्रावधानों के बाद ग़ैरसरकारी संगठनों के संसाधन और समय उन्हें लागू करने में ही लग जाएगा। इस खत पर दस्तखत करने वालों में सेंटर फ़ॉर एडवान्समेंट ऑफ़ फिलानथ्रोपी, नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया और सेंटर फॉर सोशल इम्पैक्ट एंड फिलानथ्रोपी प्रमुख हैं। 

इंदिरा गांधी की सरकार ने सबसे पहले 1976 में फ़ॉरन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट पारित किया था।  इसका मकसद भारत की राजीति में बाहरी हस्तक्षेप पर रोक लगाना था।

नरेंद्र मोदी सरकार ने 2015 में इसमें संशोधन किया ताकि फोर्ड फाउंडेशन जैसी बड़ी चैरिटेबल संस्थाओं पर नियंत्रण किया जा सके, यह कहा गया कि ये संस्थाएं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं।

एनजीओ पर छापे

केंद्र सरकार की एजंसियों ने सितंबर 2020 में एमनेस्टी इंटरनेशनल के दफ्तरों पर छापे मारे, उसके बैंक खातों को सील कर दिया। इसके बाद इस संस्था ने भारत में अपना कामकाज रोक दिया। सरकार का कहना था कि इस संस्था ने नियम क़ानून का उल्लंघन किया है। एमनेस्टी का कहना था कि मानवाधिकार पर भारत सरकार की आलोचना करने के कारण उसे निशाने पर लिया गया। 

बीते साल भारत के ग़ैरसरकारी संगठनों को 2.2 अरब डॉलर की विदेशी मदद मिली। लेकिन सितंबर 2020 के बाद स्थिति बदल गई। चैरिटीज एड फाउंडेशन इंडिया  के मुख्य कार्यकारी टेड हार्ट ने कहा, कानून में संशोधन इतनी तेजी से हुआ कि कोई कुछ समझ नहीं पाया, यह बिल्कुल एक झटके की तरह हुआ। 

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क़मर वहीद नक़वी
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