हाल में फ़लस्तीन-इज़रायल संघर्ष की शुरुआत उस वक्त हुई जब येरूशलम में अल-अक्सा मसजिद के पास इज़रायल के यहूदी राष्ट्रवादियों ने एक मार्च निकालने का फैसला लिया। ये मार्च उस जीत का जश्न था जो इज़रायल को 1967 में मिली थी। 1967 में इज़रायल ने येरूशलम के कई हिस्सों पर अपना कब्जा जमा लिया था और वे हिस्से अभी तक इज़रायल के ही कब्जे में हैं। इसी जीत को लेकर इज़रायल के कुछ राष्ट्रवादी मार्च का आयोजन कर रहे थे। कहा गया कि इसी मार्च के दौरान फ़लस्तीनी चरमपंथियों ने उन पर हमला कर दिया। जिसके बाद हिंसा भड़क उठी।
फ़लस्तीनी चरमपंथियों को जवाब देने के लिए इज़रायली सुरक्षाबलों ने रबर बुलेट का इस्तेमाल किया, जिसमें कई चरमपंथी घायल हुए और फिर स्थिति लगातार खराब होती चली गई। फ़लस्तीनी अधिकारियों के मुताबिक इज़रायल के हमले में कम से कम 20 लोग मारे गये हैं। वहीं, इज़रायल ने कहा है कि उसके हमले में चरमपंथी संगठन हमास के कम से कम तीन बड़े लीडर मारे गये हैं जो गाजा पट्टी का प्रतिनिधित्व करते थे।
येरूशलम में अल-अक्सा मसजिद के पास इज़रायली सुरक्षाबलों के साथ फ़लस्तीनी प्रदर्शनकारियों की काफी देर तक झड़प हुई, जिसमें फ़लस्तीन की तरफ से दावा किया गया है कि इस झड़प में सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। इस झड़प के बाद हमास ने इज़रायल पर हमला करने की धमकी दी थी इसके बाद हमास ने इज़रायल पर कई रॉकेट दागे।
इज़रायल के प्रधानमंत्री बैंजामिन नेतन्याहू ने हमास के हमले के बाद कहा कि 'हमास ने इज़रायल पर रॉकेट दागकर अपनी हद पार कर ली है और इज़रायल इसका पूरी ताकत के साथ जवाब देगा' और फिर इज़रायली सेना ने हमास को निशाना बनाया।
लड़ाई का धार्मिक पहलू
इस लड़ाई का धार्मिक पहलू भी है। वह यह कि अल-अक्सा मसजिद जो कि टेम्पल माउंट के ऊपर है यह इसलाम की तीसरी सबसे पवित्र जगह है, इसी टेम्पल की वेस्टर्न वॉल यहूदियों की सबसे पवित्र जगह है। इसी वजह से यहां विवाद होता रहता है। यहूदियों के लिए ये मंदिर काफी ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए मंदिर की सुरक्षा के लिए हमेशा इज़रायली सेना वहां मौजूद रहती है। मंदिर और मसजिद को लेकर इस क्षेत्र में कई सालों से विवाद और संघर्ष होता रहता है। फ़लस्तीन की रेड क्रीसेंट ने कहा है कि इज़रायली सेना से संघर्ष में करीब 700 फ़लस्तीनी घायल हुए हैं।
इज़रायल और फ़लस्तीन के बीच चलने वाला ये संघर्ष कोई नया नहीं है और इस अनसुलझे विवाद को लेकर लंबे वक्त से दोनों तरफ के लोग टकराते रहे हैं।
कब्जे को लेकर संघर्ष
अभी के संघर्ष के पीछे की वजह न सिर्फ धार्मिक मान्यता है बल्कि दोनों देशों के लिए ये एक महत्वपूर्ण भूमि के कब्जे का सवाल भी है।' अगर इस विवाद के इतिहास पर नजर डालें तो सचाई यह है कि फ़लस्तीनी जो कि अरब मुसलिम हैं, इसी जमीन से आते हैं। जिसे हम इज़रायल कहते हैं। विगत में इस जगह की लड़ाई दो भाग में हुई। एक अरब-इज़रायल और दूसरी इज़रायल-फ़लस्तीन।
पहली लड़ाई हुई दो समुदायों के राष्ट्रवाद के चलते, जो द्वितीय विश्व-युद्ध और इसके साथ ब्रिटेन का राज ख़त्म होने के साथ उभरा था। अरब देश विदेशी शासन से अपनी आज़ादी के लिए खड़े हुए थे। वहीं दुनिया में जगह-जगह फैले हुए यहूदी तरह-तरह के अत्याचारों से परेशान थे और अपने लिए देश तलाश रहे थे।
दिक्कत ये हुई कि दोनों समुदायों ने एक ही जमीन को अपना मान लिया जो ब्रिटेन के कब्जे से हाल में ही मुक्त हुई थी। हालांकि दुनिया ने इस गड़बड़ी को नोटिस किया था और 1947 में यूएन ने प्रस्ताव दिया कि इस जगह को दो देशों में बांट दिया जाये। 1948 में इज़रायल एक देश बन गया।
1948 का युद्ध
विदेशी शासन और हस्तक्षेप के प्रति नफरत अरब देशों के दिमाग से अभी गई नहीं थी क्योंकि उन्हें मुक्त हुए अभी एक साल भी नहीं हुआ था। 1948 में मिस्र, जॉर्डन, इराक और सीरिया ने इज़रायल पर हमला कर दिया। फ़लस्तीन को बचाने के लिए नहीं बल्कि हमला इसलिए हुआ था कि इनकी नज़र में इज़रायल विदेशी राज का प्रतीक था, पर वे हार गए। इस लड़ाई में आधा येरूशलम शहर इज़रायल के कब्जे में आ गया।
बंट गया येरूशलम
येरूशलम अब फ़लस्तीन और इज़रायल के बीच एक बंटा हुआ शहर है। 7 लाख के करीब फ़लस्तीनी अरब रिफ्यूजी हो गए और पूरे हिस्से पर इज़रायल का कब्ज़ा हो गया। वेस्ट बैंक और गाजा में फ़लस्तीनियों को जगह मिली। ये लोग मुख्यतः रमाला और जफा से भगाए गए थे। अब ये लोग सत्तर लाख हो गए हैं। अब, जब भी शांति की बात होती है तो फ़लस्तीन के लोग इन सत्तर लाख लोगों के घर को वापस दिलाये जाने की बात करते हैं पर दिक्कत ये है कि अगर ये लोग वापस आ जायें तो यहूदी अपने देश में ही माइनॉरिटी हो जायेंगे!
90 के दशक में दोनों में एक समझौता भी हुआ पर दिक्कत ये थी कि इसके मुताबिक दोनों को एक-दूसरे को देश के तौर पर स्वीकार करना था जिसके लिए फ़लस्तीन तैयार नहीं हुआ। इसके बाद फ़लस्तीन और इज़रायल के बीच फिर एक और झगड़ा शुरू हुआ। इसके पहले इज़रायल अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा था लेकिन इस बार फ़लस्तीन, वेस्ट बैंक और गाजा में खोए अपने अस्तित्व के लिए।
1994 में यासिर अराफ़ात ने वाशिंगटन में फ़लस्तीनी सिद्धांतों की तरफ़ सबका ध्यान खींचा। समझौता हुआ और उसमें इज़रायल को उन फ़लस्तीनी इलाक़ों से हटने को कहा गया जिन पर उसने क़ब्ज़ा कर रखा था। 1999 में शांति प्रक्रिया आगे बढ़ी। यासिर अराफ़ात ने ज़मीन और सुरक्षा से जुड़े एक समझौते पर इज़रायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री इयूद बराक के साथ दस्तख़त किए लेकिन हिंसा जारी रहने की वजह से यह समझौता लागू नहीं किया जा सका।
2007 में फ़लस्तीन में एक अंतरिम सरकार बनी। 2014 में हमास और इज़रायल में फुल्टू जंग शुरू हो गयी। वेस्ट बैंक पर इज़रायल का कब्ज़ा है, गाजा में फ़लस्तीनी रहते हैं। पर इज़रायल की मिलिट्री ने वहां डेरा डाल रखा है। फ़लस्तीनियों का खाना-पीना मुश्किल कर दिया है।
2014 में हुआ संघर्ष
2014 में इज़रायल और हमास में भयानक भिड़ंत हुई। ये लड़ाई 8 जुलाई से 26 अगस्त तक चली। इस लड़ाई में 2100 फ़लस्तीनी और 73 इज़रायली मारे गए। इसकी शुरुआत हुई थी गाजा में तीन इज़रायली छात्रों की हत्या से। इसके बाद इज़रायल ने गाजा पर हमला कर दिया। पिछले 30 सालों में ये नफरत इतनी बढ़ गई है कि दोनों का साथ आना असंभव सा हो गया है।
इसलामिक देश आये आगे
फ़लस्तीन से संघर्ष के बीच इसलामिक देशों ने इज़रायल को आड़े हाथों लिया है। सबसे पहली प्रतिक्रिया पाकिस्तान की तरफ से आई, जब प्रधानमंत्री इमरान खान ने ट्वीट कर इस विवाद के लिए इज़रायल को दोषी ठहराया और इज़रायली सुरक्षा बलों की कार्रवाई की निंदा की है। इमरान खान ने कहा कि इज़रायल की सेना ने मानवता और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया है।
वहीं, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने भी इज़रायल की आलोचना करते हुए संघर्ष विराम को फौरन रोकने की अपील की है। सऊदी अरब ने इजरा हमले की निंदा करते हुए कहा, “येरूशलम में दर्जनों फ़लस्तीनियों को हटाकर उनपर इज़रायली संप्रभुता थोपने की सऊदी अरब निंदा करता है।” संयुक्त अरब अमीरात ने भी इज़रायल की निंदा की है और तनाव कम करने की अपील की है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने इज़रायल का सिर्फ रस्मी विरोध किया है। क्योंकि दोनों देश लगातार अपने संबंध को इज़रायल के साथ मजबूत कर रहे हैं।
यूएई ने इज़रायल में अपना दूतावास भी बनाया है और दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध भी स्थापित हो चुके हैं। इसी का परिणाम है कि इज़रायल लगातार फ़लस्तीन को दबाने की कोशिश कर रहा है।
शांति की अपील
इज़रायल और फ़लस्तीन के बीच बढ़ते संघर्ष के बीच अमेरिका समेत कई देशों ने शांति की अपील की है। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि हमास को फौरन इज़रायल पर हमले बंद करने चाहिए और दोनों पक्षों को फौरन शांति बहाली के लिए कोशिशें तेज करनी चाहिए।
व्हाइट हाउस ने कहा है कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन येरूशलम की स्थिति से काफी चिंतित हैं। इंग्लैंड के विदेश सचिव डॉमिनिक राब ने भी ट्वीट कर कहा कि रॉकेट हमले फौरन बंद होने चाहिए और नागरिकों के खिलाफ हिंसा तुरंत रुकनी चाहिए। यूरोपीय संघ ने भी दोनों पक्षों से शांति की अपील की है।
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