श्मसान घाटों और क़ब्रिस्तानों पर अंत्येष्टि के लिए लगी लंबी लाइनों, गंगा में लगातार दिख रही लाशों और कोरोना से होने वाली मौतों के सरकारी आँकड़ों के बीच बड़ी खाई को देख कर यह अंदेशा होना स्वाभाविक है कि क्या सरकारें जितनी मौतें बता रही हैं, उससे ज़्यादा मौते हो रही हैं? स्थानीय प्रशासन और छोटे अफ़सरों की चूक या लापरवाही से ऐसा हो रहा है या सरकारें जानबूझ कर और सोची समझी नीति के तहत मौतें छिपा रही हैं?