कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पत्रकार अर्णब गोस्वामी के लीक हुए कथित चैट्स को लेकर मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोला है। अर्णब गोस्वामी और ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) के पूर्व सीईओ पार्थो दासगुप्ता के बीच की चैट को लेकर देश भर में सनसनी का माहौल है। इन चैट्स में बाक़ी चीजों के साथ ही बालाकोट एयरस्ट्राइक के बारे में कथित रूप से जानकारी होने का भी जिक्र है।
सोनिया ने कहा है कि यह बहुत बड़ा मामला है और राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता किया जा रहा है। सीडब्ल्यूसी की बैठक में सोनिया ने किसान आंदोलन को लेकर सरकार पर असंवेदनशील रहने और अहंकारी होने का आरोप भी जड़ा।
सोनिया ने कहा, ‘हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर बहुत ही चिंताजनक ख़बरें सामने आईं और इसके साथ समझौता किया गया। कुछ दिन पहले ही पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने कहा था कि सैन्य ऑपरेशन के सीक्रेट्स को लीक करना राजद्रोह है। लेकिन सरकार इस पर चुप बैठी हुई है और जो कुछ सामने आया है वह बहुत बड़ी बात है।’
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि जो लोग दूसरों को देशभक्ति और राष्ट्रवाद का सर्टिफ़िकेट देते हैं, वे पूरी तरह बेनकाब हो चुके हैं।
अर्णब और पार्थो दासगुप्ता के बीच कथित रूप से जो बातचीत हुई है, उसमें इसके अलावा सचिवों की नियुक्ति, कैबिनेट में फेरबदल, पीएमओ तक पहुंच होना और सूचना और प्रसारण मंत्रालय के कामकाज से जुड़े संदेश शामिल हैं, इसे लेकर बेहद गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं।
कृषि क़ानूनों को किया ख़ारिज
किसानों के आंदोलन को लेकर सोनिया गांधी ने कहा कि कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ जो प्रदर्शन हो रहे हैं, इससे साफ है कि इन क़ानूनों को जल्दबाज़ी में तैयार किया गया। उन्होंने कहा कि सरकार इस मामले में सिर्फ़ पहेलियां बुझा रही है। सोनिया ने कहा कि कृषि क़ानूनों को लेकर कांग्रेस का स्टैंड बहुत साफ है कि हम इन्हें पूरी तरह ख़ारिज करते हैं क्योंकि ये खाद्य सुरक्षा की बुनियाद को ही ख़त्म कर देंगे।
चिट्ठी से आया था भूचाल
कुछ महीने पहले कांग्रेस में उस वक़्त जबरदस्त भूचाल आया था, जब पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे। इसके बाद हुई कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में भी जमकर बवाल हुआ था। हालात उस वक़्त और ज़्यादा बिगड़ गए थे जब चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को दूसरे नेताओं ने निशाने पर ले लिया था और कांग्रेस की लड़ाई चौराहे पर आ गई थी।
कांग्रेस के ताज़ा हाल पर देखिए चर्चा-
लेकिन उसके बाद सोनिया गांधी ने दिसंबर महीने में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और असंतुष्ट नेताओं की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में राहुल गांधी ने कहा था, 'जैसा सब चाहते हैं, उसके अनुरूप मैं पार्टी के लिए काम करने को तैयार हूं।' लेकिन बाद में ऐसी भी ख़बरें आईं कि राहुल अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते।
हालांकि कांग्रेस नेताओं को भरोसा है कि राहुल अपनी जिद छोड़कर अध्यक्ष पद संभाल लेंगे। कृषि क़ानूनों के मसले पर राहुल की अगुवाई में कांग्रेस ने सक्रियता दिखाई है। राहुल गांधी इस मसले पर पंजाब में ट्रैक्टर यात्रा निकालने से लेकर लगातार ट्वीट कर सरकार पर दबाव बढ़ा रहे हैं।
ऐसे वक़्त में जब किसानों के आंदोलन के कारण देश में सियासी पारा चरम पर है तो मुख्य विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस को इस मुद्दे को और सक्रियता से उठाना चाहिए। साथ ही स्थायी अध्यक्ष के चयन का मसला और पार्टी में जोर पकड़ रही आंतरिक चुनाव की मांग को भी आलाकमान को गंभीरता से लेना होगा क्योंकि बाग़ियों की यही दो मांगें अहम हैं।
पिछले साल अगस्त में जब कपिल सिब्बल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि लोग अब पार्टी को प्रभावी विकल्प नहीं मानते और नेतृत्व पर सवाल खड़े किए थे तो अधीर रंजन चौधरी से लेकर सलमान खुर्शीद और कई नेता उन पर हमलावर हो गए थे। तब यह सवाल उठा था कि आख़िर कांग्रेस आलाकमान पार्टी नेताओं के मीडिया में दिए जा रहे इन बयानों को लेकर उन पर कार्रवाई क्यों नहीं करता। क्योंकि इससे पार्टी को तगड़ा नुक़सान हो रहा था।
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