ऐसे समय जब कि चीन की सेना लद्दाख में पीछे हटने को मजबूर हुयी है और दोनों देशों की सरकारों के बीच तनाव में कमी की कोशिेश की जा रही है, चीन के अख़बार इशारा कर रहे हैं कि बीजिंग अपनी दोगली नीति से बाज़ नहीं आयेगा। वह अभी भी दूसरे तरीक़े से भारत के ख़िलाफ़ आग उगल रहा है।
चीन के सरकारी अख़बार और कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में वह इस हद तक गिरता है कि भारत को धमकी देने की कोशिेश करता है। चीन इस बात को भूल गया है कि उसकी आवाज़ अब खिसियानी बिल्ली खंभा नोचने वाली है। ऐसे में वह भारत को धमकी देने की कोशिश कर रहा है जब अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग- थलग पड़ता दीख रहा है। उसकी छवि एक विस्तारवादी देश की बन रही है जो अपने पड़ोसियों को तंग करता है और उनकी ज़मीन को क़ब्ज़ा करने की कोशिश करता है।
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भारत पर आक्रामक
ग्लोबल टाइम्स के इस संपादकीय लेख में कहा गया है कि 'भारत का रवैया बेहद आक्रामक है, पड़ोसियों से उसकी बनती नहीं है, वह दक्षिण एशिया में दबदबा कायम करने की रणनीति अपनाए हुए है जिसके लिए ज़रूरी संसाधन इसके पास नहीं है और उसे इस आक्रामकता की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।'ग्लोबल टाइम्स के इन शब्दों को कोई अर्थ नहीं रहा गया है। दक्षिण एशिया और एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र में चीन की हरकतों से सभी देश परेशान है जबकि भारत के बारे मे मशहूर है कि वह शांतिप्रिय देश है।
इस लेख में भारत को धमकी दी गई है। लेख में कहा गया है, 'भारत ने यदि जोखिम संभालने में बुद्धिमानी नहीं दिखाई तो उसे अंधी रणनीतिक आक्रामकता की भारी कीमत चुकानी होगी।'
भारत की कमज़ोरियाँ गिनाईं
ग्लोबल टाइम्स के इस लेख में कहा गया है, 'भारत सरकार को ये सवाल अपने आप से पूछने चाहिए- क्या उसकी दुस्साहसिक रणनीति विकास के राष्ट्रीय उद्येश्य के अनुरूप है? क्या भारत के पास इस तरह की रणनीति पर चलने के लिए संसाधन हैं? क्या यह जोखिम उठाने को तैयार है?' इसके साथ ही ख़ुद ही जवाब भी दे दिया गया है-'नहीं'।ग्लोबल टाइम्स के इस लेख में अतीत की बातें भी कही गई हैं वह लिखता है- 'जवाहरलाल नेहरू सरकार के लापरवाही भरे फ़ॉरवर्ड पॉलिसी की वजह से ही भारत ने चीन की सीमा पर दुस्साहस किया और चीन ने उस पर ज़बरदस्त चोट की थी।'
पश्चिम से भारत की नज़दीकी!
ग्लोबल टाइम्स के इस लेख में नरेंद्र मोदी सरकार का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है और इसकी तीखी आलोचना की गई है।ग्लोबल टाइम्स लिखता है, 'जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, भारत संतुलित ताक़त के बजाय नेतृत्व करने वाली ताक़त के रूप में उभरने की कोशिश में है। अमेरिका, यूरोपीय संघ, रूस और जापान जैसी बड़ी ताक़तें भारत को रिझाने में लगी हुई हैं।'
अंत में इस चीनी अख़बार ने भारत को नसीहत देने की कोशिश करते हुए कहा है कि जब 2017 के दूसरे हिस्से से ही भारत की अर्थव्यवस्था सुस्त चल रही है और यह कोरोना से जूझ रहा है, ऐसे में इसे अंदरूनी मतभेदों को दूर करना चाहिए। लेकिन इतिहास बताता है कि आर्थिक विकास के बग़ैर थोथा राष्ट्रवाद अंत में नाकाम होता है।
पहले बीजेपी से था प्रेम, अब है परेशानी!
इस लेख में बेहद चालाकी से इस तथ्य को भुला दिया गया है कि यही चीन कुछ दिन पहले तक इन्हीं नरेंद्र मोदी और उनकी बीजेपी के साथ पींगें बढ़ा रहा था। उस समय उसे नरेंद्र मोदी के राष्ट्रवाद में कोई कमी नहीं दिखी थी।कुछ दिन पहले तक यही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी बीजेपी के सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरने से बहुत मुग्ध थी। उसने बीजेपी के महासचिव राम माधव तक से पूछा था कि आपने यह काम कैसे कर दिखाया। क्या उस समय बीजेपी राष्ट्रवादी नीति पर नहीं चलती थी?
इसी तरह यदि आर्थिक सुस्ती की ही बात की जाए तो क्या चीन इससे इनकार कर सकता है कि उसकी जीडीपी वृद्धि दर सकारात्मक होने के बावजूद बीते दो दशकों के न्यूनतम स्तर पर है?
चाइनीज़ ड्रीम!
राष्ट्रवाद की बात करने वाला चीन क्या इससे इनकार कर सकता है कि चीनी सपना (चाइनीज़ ड्रीम) 2049 तक चीन को दुनिया का सबसे ताक़तवर देश बनाना है? क्या इससे बड़ा अंध राष्ट्रवाद हो सकता है?कुल मिला कर ग्लोबल टाइम्स के इस लेख में भारत को धमकाने की कोशिश की गई है। हकीक़त यह है कि चीन के इस अख़बार ने भारत के ख़िलाफ़ आग उगल कर चीन का असली चेहरा उजागर कर दिया है कि वह एक बार फिर अपनी फ़ितरत के हिसाब से भारत को धोखा देने की फिराक में है। वह आसानी से शांति से बैठने वाला नहीं है और मोदी सरकार को चीन की सेना की वापसी पर किसी ग़लतफ़हमी में नहीं रहना चाहिये। वह पलट कर आ सकता है और 1962 का इतिहास दोहरा सकता है। लिहाज़ा मोदी सरकार चौकन्ना रहे और अपनी तैयारी में कमी न लाये।
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