ऐसे समय जब भारत और चीन की सीमा पर तनाव है और लद्दाख में दोनों देशों की सेनाएं बिल्कुल आमने-सामने खड़ी हैं, चीन ने हॉवित्ज़र तोपों की नई खेप अपनी सेना में शामिल की है।
यह कदम भारत के लिए संकेत है, चेतावनी है या धमकी है? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि इन तोपों के फ़ीचर बहुत कुछ कह जाते हैं।
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लद्दाख में हो सकते हैं तैनात?
ये हॉवित्ज़र तोप 155 मिलीमीटर कैलिबर की हैं, इन्हें ट्रक जैसी किसी भी गाड़ी पर फिट कर कहीं भी ले जाया जा सकता है।सबसे दिलचस्प बात यह है कि ऊंचाई वाले इलाक़े में जहाँ ऑक्सीजन की कमी होती है, वहाँ भी यह तोप बखूबी काम कर सकती है, इसका इंजन इस तरह बनाया गया है। यानी, इन तोपों को लद्दाख में भी तैनात किया जा सकता है।
पीपल्स लिबरेशन आर्मी के ब्रिगेड 75वें ग्रुप आर्मी में इन तोपों को शामिल करने के लिए बीते दिनों एक ख़ास कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके बाद इन तोपों को चीन के उत्तर में स्थित रेगिस्तानी इलाक़े नानजियांग हाओजियाओ में अभ्यास के लिए भेजा गया। इस तोप को पीएलए ने पीसीएल-181 नाम दिया है।
डोकलाम कनेक्शन?
चीनी सरकार के नियंत्रण में चलने वाले सेंट्रल चाइन टेलीविज़न यानी सीसीटीवी के अनुसार, इस तोप का वजन सिर्फ 25 टन है, जो बहुत ही हल्का माना जाता है। इसे आसानी से घुमाया जा सकता है, कहीं भी ले जाया जा सकता है, इसे गाड़ी पर भी फिट किया जा सकता है।इस तोप का कंट्रोल पैनल डिजिटल है, इसमें ऑटेमेशन गन कैलीब्रेशन है, गोलाबारूद भरने की प्रणाली सेमी ऑटोमैटिक है।ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि 2017 में डोकलाम में भारत के साथ तनाव होने पर पीएलए के पश्चिमी थिएटर कमांड में इसे भेजा गया था। यह भी कहा गया है कि इस तोप ने सीमा पर शांति बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई थी।
इस लेख में चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग के हवाले से बताया गया है कि भारत और चीन देशों ने सीमा पर तनाव कम करने के लिए अहम कदम उठाए हैं।
सवाल यह है कि ग्लोबल टाइम्स को इन तोपों को पीएलए में शामिल करने और उसे भारत के साथ तनाव के साथ जोड़ कर देखने की क्या ज़रूरत पड़ी?
ग्लोबल टाइम्स चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र है, सरकार के नियंत्रण में है और सरकारी खर्च से चलता है। तो क्या सीपीसी या चीन सरकार भारत को कुछ संकेत दे रही है?
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