जस्टिस एएम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और संजीव खन्ना की बेंच ने कहा कि हालांकि केंद्र सरकार को निर्माण कार्य शुरू होने से पहले हैरिटेज कंजर्वेशन कमेटी की इजाजत लेनी होगी। अदालत ने यह भी कहा कि पर्यावरण समिति की सिफ़ारिशें सही और वैध हैं।
बेंच ने कहा कि इस प्रोजेक्ट को स्वीकृति देने में सेंट्रल विस्टा कमेटी और हैरिटेज कंजर्वेशन कमेटी में किसी तरह की कोई खामी नहीं थी।
स्मॉग टावर्स लगवाए सरकार
जस्टिस खानवलिकर ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा डीडीए एक्ट के तहत उठाए गए क़दम वैध हैं। बेंच ने पर्यावरण मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह भविष्य में बनने वाले प्रोजेक्ट्स में स्मॉग टावर्स ज़रूर लगाए विशेषकर ऐसे शहरों में जहां पर प्रदूषण एक बड़ा मुद्दा है और निर्माण के दौरान स्मॉग गन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
जस्टिस खन्ना ने जस्टिस खानविलकर, जस्टिस माहेश्वरी से अलग फ़ैसला दिया। जस्टिस खन्ना ने कहा कि इस मामले को लोगों के बीच सुनवाई के लिए वापस भेजा जाना चाहिए क्योंकि हैरिटेज कंजर्वेशन कमेटी से पूर्व में स्वीकृति नहीं ली गई थी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कहा कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत न तो कोई निर्माण किया जाएगा और न ही किसी ढांचे को गिराया जाएगा और न ही पेड़ काटे जाएंगे।
सरकार के तर्क
सरकार ने अदालत में इस प्रोजेक्ट के पक्ष में दलील देते हुए कहा था कि वर्तमान संसद भवन में जगह की बेहद कमी है, आग लगने या भूकंप से बचने के लिए भी ज़रूरी इंतजाम नहीं हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों के एक जगह होने का तर्क भी सरकार ने दिया था जिससे सरकार के काम करने की क्षमता बढ़ सके।
क्या इस प्रोजेक्ट में चरमपंथ की झलक है?
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर बहुत सारे सवाल भी उठे हैं। एक सवाल यह उठा था कि सरकार इस मामले में विशेषज्ञों की सलाह लेने से सख्त इनकार क्यों कर रही है, उनकी चेतावनियों को क्यों नकार रही है। क्या हमारी सरकार भी चरमपंथी सोच का शिकार बन चुकी है? पूरा आर्टिकल यहां पढ़िए।
विश्व धरोहर का नाश?
वास्तुकार और नगर योजनाकारों ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का इतना विरोध क्यों किया। कुछ लोग इस प्रोजेक्ट को रोकने के लिये सुप्रीम कोर्ट क्यों गये। अगर ये क़दम दिल्ली के आधुनिकीकरण और उसकी बेहतरी के लिये है तो इसकी आलोचना क्यों हो रही है? पूरा आर्टिकल यहां पढ़िए।
विरासत मिटाने की कोशिश
क्या सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की वजह से हमारे राष्ट्रीय प्रांगण का अस्तित्व ख़तरे में आ गया है। क्योंकि राष्ट्रीय प्रांगण में सौ एकड़ आरक्षित ज़मीन को अब ‘वीवीआईपी’ ज़ोन घोषित कर दिया गया है। इस वीवीआईपी इलाक़े में नेताओं और बड़े अफ़सरों के अलावा किसी आम आदमी का क़दम रखना मुश्किल होगा। क्या यह हमारी ऐतिहासिक विरासत को मिटाने की कोशिश है। पूरा आर्टिकल यहां पढ़िए।
इस विषय पर देखिए, आशुतोष की बात-
सोनिया ने कहा था- रद्द कर दें
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस साल अप्रैल में कहा था कि मोदी सरकार को इस प्रोजेक्ट को रद्द कर देना चाहिए। उस दौरान कोरोना महामारी को रोकने के लिए लगे लॉकडाउन से जो आर्थिक नुक़सान हो रहा था, उसकी भरपाई के लिए उन्होंने कुछ और सुझाव सरकार को दिए थे। सोनिया ने कहा था कि सरकार को विज्ञापन देने रोक देने चाहिए और मंत्रियों की विदेश यात्रा पर रोक लगा देनी चाहिए।
सोनिया ने कहा था कि देश में मौजूदा संसद की बिल्डिंग में आसानी से कामकाज चल रहा है और ऐसे में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में लगने वाले पैसे का इस्तेमाल नए अस्पताल बनाने, कोरोना महामारी की रोकथाम में लगे फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए पीपीई किट और ज़रूरी अन्य सुविधाएं जुटाने के लिए किया जाना चाहिए।
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