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'दुनिया का पेट भरने' चले थे तो आटा के निर्यात पर प्रतिबंध क्यों?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी साल कहा था कि यदि विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ हमें अनुमति दे तो हम पूरी दुनिया का पेट भर सकते हैं, पूरी दुनिया में अनाज भेज सकते हैं? तो क्या सच में ऐसा है? यदि भारत पूरी दुनिया में अनाज भेज सकता है तो आटे के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का फ़ैसला क्यों लिया गया है?

दरअसल, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को बढ़ती क़ीमतों पर अंकुश लगाने और गरीबों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आटे के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने को मंजूरी दे दी है। यह मंजूरी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति यानी सीसीईए ने ही दी है। पहले निर्यात प्रतिबंधों से गेहूं या मेसलिन के आटे को छूट थी, लेकिन अब इस नीति में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। संशोधन केंद्र को बाजार की स्थितियों के आधार पर गेहूं के आटे के निर्यात की जाँच करने की अनुमति देगा।

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एक सरकारी बयान के अनुसार, विदेश व्यापार महानिदेशालय कैबिनेट के फैसलों पर इस आशय की एक अधिसूचना जारी करेगा।

बता दें कि फरवरी में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से गेहूं की मांग में तेजी आई है। रूस और यूक्रेन गेहूं के प्रमुख निर्यातक हैं, जो वैश्विक गेहूं व्यापार में लगभग एक चौथाई हिस्सा रखते हैं। युद्ध ने आपूर्ति में व्यवधान पैदा किया, जिससे भारतीय गेहूं की मांग बढ़ गई। 

लाइव मिंट की रिपोर्ट के अनुसार 15 अप्रैल को केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने घोषणा की थी कि दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं आयात करने वाला देश मिश्र इस साल भारत से 1 मिलियन टन गेहूं का आयात करना चाहता है। भारत बढ़ी हुई वैश्विक मांग को भुनाने की कोशिश कर रहा था, जिसमें प्रमुख गेहूं-आयात करने वाले देशों में व्यापार प्रतिनिधिमंडल भेजे जा रहे थे।

उसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि अगर विश्व व्यापार संगठन अनुमति दे तो भारत दुनिया को अनाज की आपूर्ति करने के लिए तैयार है।

पीएम मोदी ने ये बातें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से कही थीं, जिसके बारे में उन्होंने खुद बताया था। उन्होंने कहा था कि "मां अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से हमारे यहां अनाज के भंडार भरे हुए हैं। अगर डब्ल्यूटीओ हमें अनुमति दे तो हम उससे पूरी दुनिया का पेट भर सकते हैं। हमें अनुमति मिले तो हम अपने अनाज पूरी दुनिया में भेज सकते हैं।'

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इस बीच ख़बरें आ रही थीं कि अप्रैल महीने में निजी खरीदार सरकारी दाम से भी ज़्यादा महंगा गेहूँ ख़रीद रहे थे। लगातार ऐसी रिपोर्टें आती रहीं कि सरकारी दाम यानी एमएसपी पर गेहूँ खरीद का सरकार का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ। तब रिपोर्टों में आगाह किया जाता रहा था कि इस साल गेहूं की फसल पहले की तुलना में कम होने के कारण देश को निर्यात से सतर्क रहने की ज़रूरत है, ऐसा न हो कि आने वाले महीनों में आपूर्ति की कमी हो जाए।

इसी बीच खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मई में गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने का निर्णय लिया गया। लेकिन इससे गेहूं के आटे की निर्यात मांग में उछाल आया। लाइव मिंट की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल-जुलाई 2022 के दौरान भारत से गेहूँ के आटे के शिपमेंट में साल-दर-साल 200% की बढ़ोतरी हुई। लेकिन अब उसी आटे के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की नौबत आ गई। ऐसा क्यों हुआ, यह समझना ज़्यादा मुश्किल नहीं है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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