संसद का बजट सत्र शुरू हो चुका है। अडानी पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट, बीबीसी डॉक्युमेंट्री, बढ़ती महंगाई पर हंगामा होने के आसार हैं। इस बीच आईएमएफ की रिपोर्ट भी आ गई है, जिसमें भारत को लेकर अच्छी खबर नहीं है। सरकार इस मुद्दे पर भी विपक्ष के निशाने पर रहेगी। भारत का आर्थिक सर्वे भी आज मंगलवार को जारी होगा। आर्थिक सर्वे से मोदी सरकार के बजट का भी पता चलेगा। आर्थिक सर्वे में 2023-24 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (डीजीपी) की वृद्धि दर 6-6.8% रहने की संभावना है।
बजट सत्र के लिए संसद में जाने से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने बहुत सारी बातें कहीं, लेकिन एक जुमला बहुत महत्वपूर्ण था-
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बजट सत्र में तकरार तो होगी लेकिन तकरीर भी होगी।
-नरेंद्र मोदी, पीएम, 31 जनवरी 2023 संसद के बाहर पत्रकारों से
एनडीटीवी के मुताबिक सरकारी सर्वेक्षण में कहा जा सकता है कि यह तीन साल में सबसे धीमी जीडीपी रफ्तार होगी। एनडीटीवी को सरकारी सूत्र ने बताया कि 2023-24 के लिए नाममात्र की वृद्धि का अनुमान है। एक अन्य आर्थिक रिपोर्ट जो आई थी, उसमें तो भारतीय जीडीपी की रफ्तार 6.5 फीसदी रहने की बात कही गई थी।
1 अप्रैल से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष में दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारत की स्थिति मजबूत रहेगी। इसमें निजी खपत, बैंकों द्वारा ऋण देने में तेजी और निगमों द्वारा पूंजीगत व्यय में सुधार की उम्मीद जताई जा सकती है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अगले वित्तीय वर्ष का बजट पेश करने से एक दिन पहले मंगलवार को मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन द्वारा तैयार आर्थिक सर्वेक्षण संसद में पेश करेंगी।
आर्थिक सर्वेक्षण सरकार की समीक्षा है कि पिछले एक साल में अर्थव्यवस्था कैसी रही।
COVID-19 महामारी के बाद से भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है, लेकिन रूस-यूक्रेन संघर्ष ने मुद्रास्फीति के दबाव को बढ़ा दिया है। साथ ही भारत सहित केंद्रीय बैंकों को महामारी के दौरान अपनाई गई अत्यधिक ढीली मौद्रिक नीति को उलटने के लिए प्रेरित किया है।
सर्वेक्षण में संभावित रूप से भारत में मुद्रास्फीति पर ध्यान दिया जाएगा, जिसका अनुमान केंद्रीय बैंक द्वारा 2022/23 में 6.8% पर लगाया गया है, लेकिन यह तर्क देने की संभावना है कि मूल्य वृद्धि की गति निजी खपत को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है या कम है। निवेश भी कमजोर है।
सूत्र ने कहा कि सर्वेक्षण में सावधानी बरतने की संभावना है कि मौद्रिक नीति के कड़े होने के कारण भारतीय रुपये पर दबाव जारी रह सकता है। भारत का चालू खाता घाटा (सीएडी) भी बढ़ा रह सकता है क्योंकि मजबूत स्थानीय अर्थव्यवस्था के कारण आयात अधिक रह सकता है जबकि ग्लोबल अर्थव्यवस्था में कमजोरी के कारण निर्यात में कमी आ सकती है।
जुलाई-सितंबर तिमाही में भारत का सीएडी जीडीपी का 4.4% था, जो कि एक तिमाही पहले 2.2% और एक साल पहले 1.3% से अधिक था। इसकी वजह यह थी कि कमॉडिटी की बढ़ती कीमतों और कमजोर रुपये ने व्यापार अंतर को बढ़ा दिया था।
31 मार्च को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में अनुमानित 7% की गति से कम होने के बावजूद, 6.5% की वृद्धि भी भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में बनाए रख सकती है।
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