कथित माओवादी संबंधों के आरोप में जेल में बंद दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बॉम्बे हाई कोर्ट ने आख़िरकार बरी कर दिया है। साईबाबा और पांच अन्य को 2017 में एक सत्र अदालत ने दोषी ठहराया था। उच्च न्यायालय ने 14 अक्टूबर, 2022 को 54 वर्षीय साईबाबा को बरी कर दिया था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया था और मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए उच्च न्यायालय में भेज दिया था। चलने-फिरने में असमर्थ साईबाबा व्हीलचेयर पर हैं और फिलहाल नागपुर सेंट्रल जेल में हैं।
बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने मंगलवार को यह फ़ैसला सुनाया। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को संदिग्ध माओवादी संबंधों के लिए गिरफ्तार किया गया था। अदालत ने दोषसिद्धि के खिलाफ उनकी अपील को स्वीकार कर लिया। न्यायमूर्ति विनय जी जोशी और न्यायमूर्ति वाल्मिकी एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने सितंबर में ही सुनवाई पूरी कर ली थी और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
अपील साईबाबा, महेश तिर्की, हेम मिश्रा, पांडु नरोटे और प्रशांत राही द्वारा दायर की गई थी, जिन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। विजय तिर्की को 2017 में एक विशेष अदालत ने 10 साल जेल की सजा सुनाई थी। 2013 में महाराष्ट्र की गढ़चिरौली पुलिस ने उन पर आरोप लगाया था कि वे प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) और उसके अग्रणी समूह रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट के सदस्य थे।
जबकि विजय जमानत पर बाहर हैं, नरोटे का 2022 में स्वाइन फ्लू से संक्रमित होने के बाद जेल में निधन हो गया। साईबाबा समेत बाकी चार दोषियों को नागपुर सेंट्रल जेल से रिहा करने का आदेश दिया गया।
अगले दिन उच्च न्यायालय के फ़ैसले पर रोक लगाने की मांग करने वाली राज्य सरकार की याचिका के आधार पर न्यायमूर्ति एम आर शाह (अब सेवानिवृत्त) और बेला एम त्रिवेदी की पीठ के समक्ष सर्वोच्च न्यायालय में एक विशेष सुनवाई हुई। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने उसी दिन नागपुर पीठ के आदेश को यह कहते हुए निलंबित कर दिया था कि प्रथम दृष्टया उसकी राय है कि 'जहां तक उच्च न्यायालय द्वारा पारित फैसले और आदेश का संबंध है, एक विस्तृत जाँच की ज़रूरत है।
इसके बाद अप्रैल 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने साईबाबा और अन्य को आरोप मुक्त करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और मामले को एक अलग पीठ द्वारा नए सिरे से तय करने के लिए हाई कोर्ट में वापस भेज दिया था। इसने चार महीने के भीतर सुनवाई समाप्त करने का निर्देश दिया था। इसके बाद अपील पर नई पीठ के समक्ष सुनवाई हुई।
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