नीति आयोग ने यूएनडीपी और ऑक्सफ़ोर्ड पावर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव (ओपीएचआई) के सहयोग से अपनी बहु-आयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) जारी करना शुरू किया. आयोग ने गरीबी को आर्थिक पैमाने पर मापना सही तस्वीर न मानते हुए दस नए सूचकांक बनाये हैं- पोषण, बाल-मृत्यु, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थति, कुकिंग ईंधन, स्वच्छता, पेय जल, बिजली, घर और एसेट. देश के पांच पिछड़े राज्यों में एक भी दक्षिण या पश्चिम भारत का नहीं है और सभी उत्तर भारत या पूर्वोत्तर राज्य हैं. कहने की जरूरत नहीं कि बिहार और यूपी इनमें सबसे नॉन-परफार्मिंग राज्य हैं. उसके बाद झारखण्ड और एमपी आते हैं.
दो हफ्ते पहले जब गूगल “विलो” नामक नया क्वांटम कंप्यूटिंग चिप की घोषणा कर दुनिया को चौंका रहा था उस समय भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद में नेहरु के नाम का मर्सिया पढ़ते हुए बता रहे थे कि 70 साल पहले के निजाम की गलतियों से देश किस रसातल में चला गया.
एआई के दौर में जब इसी एशिया में हीं छोटा सा दक्षिण कोरिया और बड़े भूभाग, बड़ी आबादी, बड़ी जीडीपी और बड़ी सामरिक-आर्थिक क्षमता वाला चीन सारी शक्ति इस तकनीकी का ज्ञान अर्जित करने में लगे हैं उस समय भारत के हुक्मरान और उसके लोग मस्जिदों के नीचे मंदिर की तलाश कर रहे हैं.
उसकी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)-शासित सरकारों में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट्स इसे “पावन” कर्तव्य समझ रहे हैं कि इनकें क्षेत्र में भी मस्जिद के नीचे मंदिर मिलने लगे हैं. सत्ताधारी मानसिक दिवालियेपन के इस कदर शिकार है कि उन्हें वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम की एक रिपोर्ट में भी भारत विश्व गुरु बनाता दिखाई दे रहा है.
इस रिपोर्ट में आने वाले दिनों में भारत के 35 प्रतिशत कंपनियों को सेमी-कंडक्टर और एडवांस कंप्यूटिंग और 21 प्रतिशत को अत्याधुनिक क्वांटम कंप्यूटिंग और इन्क्रिप्शन अंगीकार करने वाला बताया गया है. इसका सीधा मतलब हुआ कि ये कंपनियां टेक्नोलोजी की बड़ी खरीददार या यूजर होंगीं न कि उन्हें बनाने वाली. कब तक हम यूजर के रूप में “विश्व गुरु” (?) का दावा करते रहेंगे?
समाज को तार्किक जड़ता का शिकार बना कर एक धूम्रपटल खड़ा करना और देश को विश्व गुरु बताना मोदी काल का एक नया राजनीतिक टूल बन गया है. बाबर ने क्या किया, नेहरु के शासन के दोष क्या थे, मस्जिद के नीचे मंदिर की तलाश, किसने “भारत-माता की जय” नहीं कहा, इन मुद्दों को सड़क से संसद तक और सैलून से सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने के धंधे में भारतीय जनमानस को मोदी ने सामूहिक जड़ता का शिकार बना दिया है.
चिकित्सा-विज्ञान के अनुसार एक व्यक्ति का 90 प्रतिशत दिमाग पांच साल तक की अवस्था में विकसित हो जाता है और वही उसके भावी जीवन का शारीरिक, मानसिक (कोग्निटिव याने संज्ञात्मक) और भावनात्मक (जिनसे आत्म-नियंत्रण और आचरण की दशा और दिशा तय होती है) आधार तैयार करता है.
तथाकथित सांख्यिकी लाभ की स्थिति यह है कि सरकार के ही एनएचऍफ़एस-5 के अनुसार 15-49 आयु वर्ग के केवल 50.2 प्रतिशत पुरुष और 41 प्रतिशत महिलायें हीं दस वर्ष या उससे ज्यादा की स्कूली शिक्षा पा सकीं हैं.
क्या वस्तुस्थिति भयावह नहीं है?
दुष्यंत कुमार ने मोदी के परिदृश्य में आने के काफी पहले लिखा था :
"कहां तो तय था चिराग़ां हर एक घर के लिए,
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