134 पूर्व नौकरशाहों ने शनिवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को बिलकिस बानो के गैंगरेप मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ खुला पत्र लिखा और उनसे इस "भयानक गलती" को सुधारने का अनुरोध किया। हाल ही में इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने शुरू की लेकिन इसके बाद चीफ जस्टिस बदल गए। अब नए चीफ जस्टिस यू यू ललित ने शनिवार को शपथ ली है लेकिन करीब सवा महीने बाद वो भी रिटायर होने वाले हैं। इस तरह इस मामले के लंबे समय तक लटकने की आशंका है।
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक पूर्व नौकरशाहों ने सीजेआई से गुजरात सरकार द्वारा दी गई छूट के आदेश को रद्द करने और गैंगरेप और हत्या के दोषी 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा काटने के लिए वापस जेल भेजने के लिए कहा।
उन्होंने कहा, देश के अधिकांश लोगों की तरह, भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर कुछ दिन पहले गुजरात में जो कुछ हुआ, उससे हम स्तब्ध हैं।
संवैधानिक आचरण समूह के तहत लिखे गए पत्र के 134 हस्ताक्षरकर्ताओं में दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व कैबिनेट सचिव के एम चंद्रशेखर, पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन और सुजाता सिंह और पूर्व गृह सचिव जी के पिल्लई भी शामिल हैं।
25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया और मामले को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए आगे बढ़ा दिया।
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दोषियों की रिहाई ने "देश को नाराज" किया है। हम आपको इसलिए लिख रहे हैं क्योंकि हम गुजरात सरकार के इस फैसले से बहुत व्यथित हैं। क्योंकि हम मानते हैं कि यह केवल सुप्रीम कोर्ट है जिसके पास प्रमुख अधिकार क्षेत्र है, और इसलिए जिम्मेदारी है कि इस भयानक गलत निर्णय को सुधारा जाए।
-134 पूर्व सिविल सर्वेंट्स, शनिवार 27 अगस्त को सीजेआई को लिखे पत्र में
2002 में गोधरा ट्रेन में आग लगने के बाद भड़के दंगों में गुजरात में मुसलमानों का बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ था। उसी दौरान अपने गांव रंधिकपुर से भागते समय बिलकीस बानो के साथ गैंगरेप हुआ था। उस समय बिलकीस बानो 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं। उनकी तीन साल की बेटी मारे गए उनके परिवार के सात लोगों में शामिल थी।
जनवरी 2008 में, मुंबई में एक विशेष सीबीआई अदालत ने इस मामले में 11 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा।
पूर्व नौकरशाहों ने लिखा, "यह मामला रेयर ऑफ द रेयरेस्ट था। जिसमें न सिर्फ बलात्कारियों और हत्यारों को दंडित किया गया था, बल्कि पुलिसकर्मी और डॉक्टर भी थे, जिन्होंने दोषियों की मदद के लिए सबूतों को मिटाने और मिटाने की कोशिश की थी।
पत्र में कहा गया है कि 15 साल जेल की सजा काटने के बाद, एक आरोपी राधेश्याम शाह ने अपनी समयपूर्व रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
उससे पहले इसी याचिका को गुजरात हाईकोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि मामले का फैसला करने के लिए "उपयुक्त सरकार" महाराष्ट्र की थी, न कि गुजरात की। इसके बाद दोषी राधेश्याम शाह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
सुप्रीम कोर्ट ने राधेश्याम शाह की याचिका पर निर्देश दिया कि गुजरात सरकार द्वारा दो महीने के भीतर समय से पहले रिहाई के आवेदन पर विचार किया जाए। वो अपने राज्य में 9 जुलाई 1992 के तहत इस पर विचार करे। पूर्व नौकरशाहों ने सीजेआई को लिखे पत्र में कहा-
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हम इस बात से हैरान हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को इतना जरूरी क्यों समझा कि राज्य दो महीने के भीतर फैसला ले। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मामले की जांच गुजरात की 1992 की छूट नीति के अनुसार की जानी चाहिए, न कि इसकी वर्तमान नीति के अनुसार।
-134 पूर्व सिविल सर्वेंट्स सीजेआई को 27 अगस्त शनिवार को लिखे गए पत्र में
पूर्व नौकरशाहों ने लिखा... स्थापित कानून से इस मामले में हटना कई सवाल खड़े करता है। सरकारी नीति और औचित्य से हटना और 11 दोषियों के छोड़ने का प्रभाव, न सिर्फ बिलकीस बानो और उनके परिवार और समर्थकों पर, बल्कि भारत में सभी महिलाओं की सुरक्षा पर भी पड़ेगा। विशेष रूप से यह प्रभाव उन पर भी पड़ेगा, जो अल्पसंख्यक और कमजोर समुदायों से संबंधित हैं। हम आपसे गुजरात सरकार द्वारा पारित छूट के आदेश को रद्द करने और गैंगरेप और हत्या के दोषी 11 लोगों को उनकी उम्रकैद की सजा काटने के लिए वापस जेल भेजने का आग्रह करते हैं।
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