बिलकीस बानो के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म के मामले में रिहा किए गए 11 दोषियों की रिहाई के पीछे उनके 'अच्छे आचरण' का तर्क गुजरात सरकार ने दिया है। लेकिन गुजरात सरकार की ओर से जो हलफनामा सुप्रीम कोर्ट के सामने दिया गया है, उससे पता चलता है कि दोषियों को जितने दिन की पैरोल या फरलो दी गई थी, वे उससे कहीं ज्यादा दिन तक जेल से बाहर रहे।
गुजरात सरकार के हलफनामे से पता चलता है कि एक दोषी मितेश चिमनलाल भट्ट जब जून 2020 में पैरोल पर था, उस दौरान उसके खिलाफ एक महिला ने शील भंग करने का मुकदमा दर्ज कराया था और इस मामले में जांच अभी भी लंबित है। इस बारे में दाहोद के एसएसपी ने जिला अदालत को जानकारी भी दी थी।
ऐसे में कौन से 'अच्छे आचरण' का तर्क गुजरात सरकार ने अपने हलफनामे में दिया है, इसे समझ पाना मुश्किल है। इस मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को इस साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था।
मितेश चिमनलाल भट्ट को लेकर तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट किया है। मोइत्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी को टि्वटर पर टैग कर पूछा है कि वह 'अच्छे आचरण' की परिभाषा बताएं। उन्होंने सवाल पूछा है कि बेटी का उत्पीड़न करना भी क्या आपके लिए अच्छा आचरण है।
Asking @narendramodi @AmitShah & @JoshiPralhad to define “good behaviour”. Bilkis convict Mitesh Bhatt molested woman while on parole in 2020, trial pending u/354 IPC. This man too released by you.
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) October 19, 2022
Achhe Din. Acche Log. Beti ko molest karna bhi apka liye “good behaviour” ?
दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले का जमकर विरोध हुआ था। इस मामले में 6000 से ज्यादा लोगों ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर कहा था कि बिलकीस बानो के दोषियों की रिहाई को रद्द कर दिया जाए।
जिन 11 लोगों को गुजरात सरकार द्वारा रिहा किया गया था, उनके नाम- जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोरढिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना हैं।
बिलकीस बानो के साथ 3 मार्च, 2002 को भीड़ द्वारा सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। दुष्कर्म की यह घटना दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में हुई थी। उस समय बिलकीस बानो गर्भवती थीं। बिलकीस की उम्र उस समय 21 साल थी।
गुजरात सरकार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट को दिए गए हलफनामे में कहा गया है कि बिलकीस बानो के बलात्कार के मामले में दोषी रमेश चांदना अपनी रिहाई से पहले पैरोल और फरलो के जरिए 4 साल से अधिक समय तक जेल से बाहर रहा। जनवरी से जून 2015 के बीच वह 14 दिन की फरलो पर बाहर आया था लेकिन 136 दिन तक बाहर रहा। सवाल यह है कि आखिर 122 दिन की अतिरिक्त छुट्टी उसे किस आधार पर दे दी गई। रमेश चांदना कुल 1576 यानी चार साल तक जेल से बाहर आता रहा।
इसी तरह राजूभाई सोनी नाम के दोषी को नासिक जेल से सितंबर 2013 से जुलाई 2014 के बीच में 90 दिन की पैरोल दी गई थी लेकिन वह कुल 287 दिन बाहर रहा। इसका मतलब वह 197 दिन ज्यादा तक जेल से बाहर रहा। एक अन्य दोषी जसवंत नाई भी 2015 में नासिक जेल से बाहर आया था लेकिन वह 75 अतिरिक्त दिन के बाद जेल में वापस पहुंचा था।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बिलकिस बानो से बलात्कार के मामले में इन सभी 11 दोषियों को लगातार पैरोल और फरलो मिलती रही। इससे पता चलता है कि दोषियों की जेल प्रशासन के अफसरों के साथ ही पुलिस और सरकार में भी गहरी पैठ थी।
वरना जितने दिन की पैरोल और फरलो किसी कैदी को दी जाती है, कोई भी कैदी उससे कई गुना ज्यादा दिन आखिर कैसे बाहर रह सकता है।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, गुजरात सरकार के हलफनामे से पता चलता है कि हर एक दोषी को औसतन 1176 दिन की छुट्टी पैरोल, फरलो और अस्थाई जमानत के रूप में जेल से मिली।
अखबार के मुताबिक, राधेश्याम शाह नाम के दोषी की रिहाई के लिए पीड़ित और उनके रिश्तेदारों ने मना किया था। इसके अलावा दाहोद के एसपी भी राधेश्याम शाह की रिहाई के पक्ष में नहीं थे। सीबीआई और मुंबई में सीबीआई की एक विशेष अदालत के अलावा एडिशनल डीजीपी (जेल), गोधरा के प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज ने भी राधेश्याम शाह की रिहाई पर आपत्ति की थी।
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