सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बिलकीस बानो की ओर से दायर याचिका पर जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया। बिलकीस बानो ने गुजरात सरकार के द्वारा सामूहिक बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए गए 11 अभियुक्तों की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उम्र कैद की सजा काट रहे इन 11 दोषियों को इस साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था।
इस याचिका पर 13 दिसंबर को सुनवाई होनी थी लेकिन जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने जस्टिस अजय रस्तोगी की अध्यक्षता वाली सुनवाई की बेंच से खुद को अलग कर लिया था।
बुधवार को जब सुप्रीम कोर्ट से इस मामले को जल्दी लिस्ट करने की मांग की गई तो सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस पर आपत्ति जताई। बिलकीस बानो की ओर से पेश हुईं एडवोकेट शोभा गुप्ता ने इस मामले की सुनवाई के लिए एक अलग बेंच बनाने की मांग को दोहराया। इस पर सीजेआई ने कहा कि इस याचिका को लिस्ट किया जाएगा और वह एक ही बात को बार-बार अदालत के सामने ना दोहराएं, यह बेहद इरिटेटिंग है।
दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले का जमकर विरोध हुआ था। इस मामले में 6000 से ज्यादा लोगों ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर कहा था कि बिलकीस बानो के दोषियों की रिहाई को रद्द कर दिया जाए।
बिलकीस बानो के साथ 3 मार्च, 2002 को भीड़ द्वारा सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। दुष्कर्म की यह घटना दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में हुई थी। उस समय बिलकीस बानो गर्भवती थीं। बिलकीस की उम्र उस समय 21 साल थी।
'अच्छे आचरण' का तर्क
बिलकीस बानो के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म के मामले में रिहा किए गए 11 दोषियों की रिहाई के पीछे उनके 'अच्छे आचरण' का तर्क गुजरात सरकार ने दिया था। गुजरात सरकार की ओर से जो हलफनामा सुप्रीम कोर्ट के सामने दिया गया था, उससे यह बात सामने आई थी कि दोषियों को जितने दिन की पैरोल या फरलो दी गई थी, वे उससे कहीं ज्यादा दिन तक जेल से बाहर रहे थे।जिन 11 लोगों को गुजरात सरकार द्वारा रिहा किया गया था, उनके नाम- जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोरढिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना हैं।
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