जिस तरह फ़ादर स्टैन स्वामी की ज़मानत याचिका का विरोध एनआईए ने किया और वह बार-बार खारिज की गई, अंत में इस मानवाधिकार कार्यकर्ता की मौत हिरासत में हो गई, उसी तरह एनआईए ने बीमार चल रहीं सुधा भारद्वाज, हैनी बाबू, गौतम नवलखा और दूसरे अभियुक्तों की ज़मानत नहीं होने दी और इन सबकी स्थिति खराब है।
इसके अलावा ज़्यादातर अभियुक्त उम्रदराज हैं, बीमार हैं, अशक्त हैं और उनकी ज़मानत एक से अधिक बार खारिज हो चुकी है। सवाल यह उठता है कि स्टैन स्वामी की मौत के बाद क्या केंद्र सरकार और उसकी जाँच एजेन्सी दूसरे बीमार अभियुक्तों की ज़मानत होने देगी या उन्हें भी जेल में हमेशा के लिए बीमार रहने और उसी स्थिति में मर जाने के लिए छोड़ देगी?
यह सवाल अहम इसलिए भी है कि एनआईए ने किसी भी अभियुक्त के ख़िलाफ़ चार्जशीट तयशुदा 90 दिनों के अंदर दाखिल नहीं किया, हर बार हर ज़मानत याचिका का विरोध किया, कोरोना जैसी महामारी का भी ख्याल नहीं रखा। इससे, उसकी मंशा पर सवालिया निशान लगता है और इस आशंका को बल मिलता है कि एनआईए जल्दी जाँच पूरी कर सज़ा दिलवाने के बजाय अभियुक्तों को जेल में सड़ा कर मारना चाहती है।
वरवर राव
जनकवि व सामाजिक कार्यकर्ता वरवर राव अकेले व्यक्ति हैं जिन्हें भीमा कोरेगाँव मामले में स्वास्थ्य के आधार पर ज़मानत मिली, हालांकि एनआईए ने उनकी ज़मानत का भी विरोध किया था। राव 81 साल के हैं, कई तरह के रोगों से पीड़ित हैं, फ़िलहाल ज़मानत पर हैं और एक निजी अस्पताल में इलाज करवा रहे हैं।
बंबई हाई कोर्ट ने फ़रवरी में उन्हें स्वास्थ्य आधार पर छह महीने की सशर्त ज़मानत दी थी, जो अगस्त में ख़त्म हो जाएगी। उनके स्वास्थ्य में मामूली सुधार है, उन्हें अभी लंबे इलाज की ज़रूरत है, लेकिन अगस्त में उन्हें एक बार फिर जेल की कोठरी में लौटना पड़ सकता है। उनकी बेटी पावना राव ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि उन्हें एक बार फिर जेल लौटना पड़ सकता है जबकि वे अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुए हैं।
सुधा भारद्वाज
सुधा भारद्वाज 61 साल की हैं, बीमार हैं, जेल में हैं और एनआईए के विरोध के कारण उनकी ज़मानत याचिका खारिज की जा चुकी है। उनकी बेटी मायशा सिंह ने पिछले महीने स्वास्थ्य के आधार पर ज़मानत देने की गुजारिश बंबई हाई कोर्ट से की थी। जिस समय कोरोना की दूसरी लहर चरम पर थी, सुधा भारद्वाज ने महामारी को देखते हुए स्वास्थ्य आधार पर ज़मानत याचिका दायर की थी, वह खारिज कर दी गई।
इसके पहले सुधा भारद्वाज ने इस आधार पर ज़मानत याचिका दायर की थी कि 90 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल नहीं होने पर अभियुक्त को स्वत: ज़मानत मिलने का प्रावधान है, लेकिन एनआईए ने इसका विरोध किया और याचिका खारिज हो गई।
हैनी बाबू
हैनी बाबू को कोरोना संक्रमण हो गया तो अदालत ने उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अपने खर्च पर इलाज कराने की अनुमति दी थी, उसके बाद वे फिर जेल लौट गए। वे भी बीमार रहते हैं, पर एनआईए ने हर बार ज़मानत याचिका का विरोध किया है।
गौतम नवलखा
सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा का मामला अधिक दिलचस्प है और जेल अधिकारियों का व्यवहार भी हास्यास्पद। उनका चश्मा चोरी हो गया, पोस्ट से भेजे गए चश्मे को जेल अधिकारी ने स्वीकार नहीं किया। उनके परिवार ने कहा कि बिना चश्मा के वह क़रीब-क़रीब अंधे हैं और कई दिनों से उन्हें दिक्कत हो रही है।
नवलखा 70 साल के हैं। उनके साथी सहबा हुसैन ने कहा कि जब उन्होंने चश्मा बनवाकर इसे 3 दिसंबर को जेल के लिए पार्सल से भेजा तो जेल प्रशासन ने पार्सल को स्वीकार नहीं किया।
नवलखा के परिजनों को यह मामला अदालत ले जाना पड़ा। बंबई हाई कोर्ट के जस्टिस एस. के. शिंदे और एम. एस. कर्णिक के खंडपीठ ने कहा,
“
मानवता सबसे महत्वपूर्ण है। बाक़ी सब इसके बाद। आज हमें नवलखा के चश्मे के बारे में पता चला। वक़्त आ गया है जब जेल अधिकारियों के लिए एक कार्यशाला आयोजित की जाए।
बंबई हाई कोर्ट
कोरोना संक्रमण में भी ज़मानत नहीं
भीमा कोरेगाँव कांड के अभियुक्तों में से महेश राउत, सागर गोरखे, हैनी बाबू, स्टैन स्वामी और रमेश गायचोर को कोरोना से ग्रस्त होने के बावजूद उन्हें ज़मानत नहीं दी गई थी। हैनी बाबू को जेल के बाहर इलाज कराने की अनुमति मिली और स्टैन स्वामी अब नहीं रहे।
सुरेंद्र गाडलिंग को पूरे डेढ़ साल में एक मास्क मिला, जिससे उन्हें कोरोना से खुद को बचाने को कहा गया। उनकी ज़मानत याचिका खारिज कर दी गई। उनकी पत्नी मीनल गाडलिंग ने पत्रकारों से कहा, 'यह सज़ा देने का उनका तरीका है, वे सबको जेल में सड़ा कर मार डालना चाहते हैं।'
आनंद तेलतुम्बडे और शोमा सेन ने भी ज़मानत की याचिकाएं दी थीं, जो खारिज कर दी गईं।
भीमा कोरेगाँव मामले में ज्योति राघोबा जगताप, सुधीर धवले, वरनॉन गोंजाल्विस, रोना विल्सन, अरुण फ़रेरा भी जेल में बंद है।
इस मामले में कुल मिला कर 16 अभियुक्त हैं। स्टैन स्वामी का निधन हो गया, वरवर राव के अलावा किसी को ज़मानत नहीं मिली, किसी के ख़िलाफ़ चार्जशीट तय समय पर दायर नहीं किया गया। सुधा भारद्वाज के अलावा सभी तलोजा जेल में बंद है।
सवाल यह उठता है कि क्या एनआईए और केंद्र सरकार फ़ादर स्टैन स्वामी की मौत से कुछ सीखेगी या वह इंतजार कर रही है कि दूसरों का भी वही हाल हो?
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