नागरिकता संशोधन विधेयक के पास होने के बाद और असम सहित उत्तर-पूर्वी राज्यों में विरोध प्रदर्शन के बीच बाँग्लादेश के विदेश मंत्री ए. के. अब्दुल मोमेन ने अपना भारत का दौरा रद्द कर दिया है। हालाँकि, मोमेन ने दौरा रद्द होने का कारण अपने देश में अपनी व्यस्तता को बताया है, लेकिन नागरिकता संशोधन विधेयक पर हंगामे के बीच उनका दौरा रद्द होने को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। यही कारण है कि भारत की ओर से भी इस पर तुरंत प्रतिक्रिया आई। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा है कि इसमें ज़्यादा मतलब निकालने की ज़रूरत नहीं है। अब सवाल यह है कि आख़िर विदेश मंत्रालय को यह कहने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है कि इसका ज़्यादा मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए?
क्या बाँग्लादेश का नागिरकता संशोधन विधेयक मामले से कुछ भी लेनादेना नहीं है? यदि ऐसा है तो गृह मंत्री अमित शाह ने बार-बार ज़ोर देकर क्यों कहा है कि बाँग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को राहत देने के लिए इस विधेयक को लाया गया है? अब ज़ाहिर सी बात है कि यदि किसी दूसरे देश पर यह आरोप लगाया जाए कि वहाँ अल्पसंख्यकों को उत्पीड़ित किया जाता है तो उसकी प्रतिक्रिया तो होगी ही। वह भी तब जब बाँग्लादेश से सटे भारत के राज्यों में ज़बरदस्त प्रतिक्रिया हो रही हो। भारत के असम और त्रिपुरा सहित उत्तर-पूर्वी राज्यों में नागरिकता संशोधन विधेयक का सबसे ज़्यादा विरोध हो रहा है। असम और त्रिपुरा में तो सेना को बुलाना पड़ा है और इंटरनेट सेवाएं बंद करनी पड़ी हैं। असम की राजधानी गुवाहाटी में कर्फ़्यू लगाना पड़ा है। इन राज्यों में भारत विभाजन के बाद उत्पीड़न के डर से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से काफ़ी बड़ी संख्या में बंगाली और हिंदू आबादी आ गई है।
इसी बीच बाँग्लादेश के विदेश मंत्री मोमेन की यात्रा रद्द होना काफ़ी मायने रखता है। मोमेन की यात्रा 12 से 14 दिसंबर तक प्रस्तावित थी। वह 'इंडियन ओशन डायलोग' में शामिल होने वाले थे और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर से चर्चा करने वाले थे। नई दिल्ली में गुरुवार शाम साढ़े पाँच बजे मोमेन के पहुँचने की संभावना थी। लेकिन इसी बीच उनकी यात्रा रद्द होने की ख़बर आ गई। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मोमेन ने कहा, ‘मुझे नई दिल्ली की अपनी यात्रा रद्द करनी पड़ी, क्योंकि मुझे बुदजीबी देबोश (14 दिसंबर को शहीद बौद्धिक दिवस) और बिजॉय देबोश (बांग्लादेश के विजय दिवस - 16 दिसंबर) में भाग लेना है। और इससे भी बड़ी बात यह है कि हमारे राज्य मंत्री देश से बाहर मैड्रिड में हैं और हमारे विदेश सचिव हेग में हैं। देश में बढ़ी हुई ज़रूरत को देखते हुए मैंने अपनी यात्रा को रद्द करने का फ़ैसला किया है।’
इसके तुरंत बाद ही भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार की प्रतिक्रिया आ गई। उन्होंने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि मोमेन के फ़ैसले में ज़्यादा अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा, 'हमें पता है कि उनकी यात्रा रद्द कर दी गई है... मुझे लगता है कि विदेश मंत्री ने सफ़ाई दे दी है। हमारे संबंध मज़बूत हैं, जैसा कि हमारे दोनों नेताओं ने बार-बार कहा है, और मुझे लगता है कि इस यात्रा के रद्द होने से ज़्यादा असर नहीं पड़ेगा।'
इससे पहले ढाका में पत्रकारों से बातचीत में अब्दुल मोमेन ने कहा था कि बाँग्लादेश के ख़िलाफ़ अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के आरोप ग़लत हैं। उन्होंने कहा था कि अमति शाह को बाँग्लादेश में कुछ महीने तक ठहरकर देखना चाहिए कि सांप्रदायिक सौहार्द की क्या स्थिति है।
मोमेन ने 'ढाका ट्रिब्यून' से बातचीत में कहा था, 'हिंदुओं पर अत्याचार के संबंध में वे जो कुछ भी कह रहे हैं वह अनुचित है और ग़लत भी... दुनिया में बहुत कम देश ऐसे हैं जहाँ सांप्रदायिक सद्भाव उतना अच्छा है जितना बाँग्लादेश में। हमारे यहाँ कोई अल्पसंख्यक नहीं है। हम सब बराबर हैं। अगर वह (अमित शाह) कुछ महीनों के लिए बाँग्लादेश में रहें तो उन्हें हमारे देश में अनुकरणीय सांप्रदायिक सद्भाव दिखाई देगा।’
इस पर रवीश कुमार ने सफ़ाई दी कि अमित शाह के बयान का ग़लत मतलब निकाला गया है। उन्होंने कहा कि वर्तमान बाँग्लादेश सरकार के अधीन अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न नहीं हुआ है, बल्कि पहले ऐसा हुआ था।
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