सुप्रीम कोर्ट की पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने उम्मीद जताई है कि यह सुनवाई 18 अक्टूबर तक पूरी हो जाएगी। इसके साथ ही इसने कहा है कि हर रोज़ की सुनवाई के साथ ही मध्यस्थता की कोशिश भी जारी रह सकती है। कोर्ट ने साफ़ कहा कि याचिकाकर्ता इसके लिए स्वतंत्र हैं कि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थता पैनल के माध्यम से बातचीत का रास्ता निकालें। कोर्ट ने यह भी कहा कि मध्यस्थता की कार्यवाही गोपनीय रहेगी। हालाँकि, इसके साथ ही हर रोज़ की सुनवाई जारी रहेगी।
The five-judge Constitution bench, headed by Chief Justice of India Ranjan Gogoi, also said, "simultaneously the mediation process can go along with the hearing, which is going on in SC, and if an amicable settlement is reached through by it, the same can be filed before the SC" https://t.co/55bPIJkt1t
— ANI (@ANI) September 18, 2019
पहली बार मध्यस्थता की कोशिश विफल होने के बाद हाल ही में एक बार फिर से बातचीत से इस मुद्दे के हल की कोशिश शुरू हो गई है। इस मामले में हिंदू और मुसलिम के दो मुख्य पक्षों ने मध्यस्थता की बातचीत को दोबारा शुरू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मध्यस्थता पैनल को पत्र लिखे हैं। वे चाहते हैं कि 2.77 एकड़ ज़मीन के मालिकाना हक के विवाद को आपसी बातचीत से सुलझाया जाए। अब सुप्रीम कोर्ट ने बातचीत से इस मुद्दे के हल के लिए कह दिया है।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि यदि इसके माध्यम से एक सौहार्दपूर्ण समझौता किया जाता है तो उसे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर किया जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि 18 अक्टूबर तक सभी दलीलें ख़त्म करने का संयुक्त प्रयास करें। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि ज़रूरत हुई तो अदालत अतिरिक्त घंटे या शनिवार को भी सुनवाई कर सकती है।
मध्यस्थता को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फ़ैसला इसलिए आया है क्योंकि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थों ने मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ को एक ज्ञापन सौंपा था। इसमें उन्होंने सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष और निर्वाणी अखाड़ा की ओर से मध्यस्थता प्रक्रिया को फिर से शुरू करने के लिए दिए गए पत्रों पर निर्देश माँगे थे।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एफ़ एम आई कलीफुल्ला के नेतृत्व में बने इस मध्यस्थता पैनल में वरिष्ठ वकील श्रीराम पाँचू और आध्यात्मिक नेता श्री श्री रविशंकर हैं। बता दें कि पिछली बार मध्यस्थता पैनल तब विफल रहा था जब जमीअत उलेमा ए हिंद के मौलाना अरशद मदनी गुट और विश्व हिंदू परिषद समर्थित राम जन्मभूमि न्यास अपने-अपने रुख से पीछे हटने को तैयार नहीं थे। मध्यस्थता की कोशिश विफल रहने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने हर रोज़ की सुनवाई शुरू की है। इस मामले में रामलला विराजमान की ओर से दलीलें रखी जा चुकी हैं। 2 सितंबर से सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की ओर से दलीलें रखी जा रही हैं।
1961 में विवादित ढाँचे पर दावा करते हुए केस दर्ज करने वाले सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित मध्यस्थता कमेटी को पत्र लिखा है। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की तरह ही निर्वाणी अखाड़ा ने भी पत्र लिखकर मध्यस्थता को बहाल करने की वकालत की है। निर्वाणी अखाड़ा अयोध्या में तीन रामानंदी अखाड़ों में से एक है। हनुमान गढ़ी मंदिर निर्वाणी अखाड़ा के नियंत्रण में ही है। एक और रामानंदी अखाड़ा निर्मोही अखाड़े ने भी तब ज़ोरदार तरीक़े से बातचीत से विवाद के समाधान का समर्थन किया था जब पहली बार मध्यस्थता पैनल के गठन की बात आई थी।
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