फ़िल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर के ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना का मामला नहीं चलेगा। अटॉर्नी जनरल ने इसकी अनुमति नहीं दी है। एक वकील ने बाबरी मसजिद विवाद पर अदालत के फ़ैसले पर स्वरा भास्कर की टिप्पणी को अपमानजनक और संस्थान पर हमला क़रार दिया और इसके ख़िलाफ़ मामला दर्ज कराने की अनुमति अटॉर्नी जनरल से माँगी थी। अदालत की अवमानना के मामले में अटॉर्नी जनरल की पूर्व अनुमति ज़रूरी होती है।
अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कहा कि स्वरा भास्कर की टिप्पणी 'उनके निजी विचार' हैं और 'यह सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी नहीं है जिससे अदालत के अधिकार पर कुछ कहा गया हो।'
क्या है मामला?
मुंबई में एक कार्यक्रम में कहा गया था, ‘हम ऐसे देश में रहते हैं जहाँ सुप्रीम कोर्ट कहता है कि बाबरी मसजिद का ढहाया जाना ग़ैरक़ानूनी था, और उसी फ़ैसले में उन्हीं लोगों को पुरस्कृत करता है जिन्होंने मसजिद ढहा दी थी।’
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि स्वरा भास्कर के बयान का ‘पहला हिस्सा तथ्यामक रूप से सही’ था और यह ‘बोलने वाले की निजी धारणा है’।
अटॉर्नी जनरल ने क्या कहा?
स्वरा भास्कर का यह मामला दिलचस्प इसलिए है कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी क़रार दिया है। उन्हें सज़ा नहीं सुनाई गई है। अटॉर्नी जनरल ने उस मामले में भी अदालत से गुजारिश की थी कि प्रशांत भूषण को सज़ा न दी जाए। याद दिला दें कि 22 जुलाई को स्वत:संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशान्त भूषण के दो ट्वीट से आहत होकर सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना की प्रक्रिया शुरू कर दी। इस पर तीन सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए वकील प्रशान्त भूषण को सुप्रीम कोर्ट की आपराधिक अवमानना का दोषी क़रार दिया।
प्रशांत भूषण का मामला
उनका एक ट्वीट 27 जून को पोस्ट किया गया था जिसमें उन्होंने पिछले चार सीजेआई का ज़िक्र किया था। भूषण ने ट्वीट किया था, जब भविष्य के इतिहासकार पिछले 6 वर्षों को देखेंगे कि औपचारिक आपातकाल के बिना भी भारत में लोकतंत्र कैसे नष्ट कर दिया गया है तो वे विशेष रूप से इस विनाश में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को चिह्नित करेंगे, और विशेष रूप से अंतिम 4 प्रधान न्यायाधीशों की भूमिका।'उनका दूसरा ट्वीट सीजेआई को लेकर था जिसमें एक तसवीर में वह नागपुर में एक हार्ले डेविडसन सुपरबाइक पर बैठे हुए दिखे थे। यह ट्वीट 29 जून को पोस्ट किया गया था। इस ट्वीट में भूषण ने कहा था कि ऐसे समय में 'जब नागरिकों को न्याय तक पहुँचने के उनके मौलिक अधिकार से वंचित करते हुए वह सुप्रीम कोर्ट को लॉकडाउन मोड में रखते हैं, चीफ़ जस्टिस ने हेलमेट या फ़ेस मास्क नहीं पहना'।
अवमानना कानून के अंतर्गत दोषी ठहराये जाने के बाद कानूनी प्रावधान के मुताबिक़, 6 महीने की जेल अथवा 2 हजार रुपया जुर्माने की व्यवस्था है।
राहुल गांधी का मामला
राहुल गांधी भी अदालत की अवमानना के मामले में एक बार फंसे थे। अदालत की अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को नोटिस जारी किया था। रफ़ाल सौदे से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद राहुल गाँधी ने अपनी टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी बता दिया था। बाद में राहुल ने इस पर माफ़ी मांगी थी। क्या है अदालत की अवमानना?
न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के अनुसार, अदालत की अवमानना का अर्थ किसी न्यायालय की ‘गरिमा तथा उसके अधिकारों के प्रति अनादर’ प्रदर्शित करना है।इस अधिनियम के अनुसार न्यायालय की अवमानना दो तरह की हो सकती है, ‘सिविल’ और ‘आपराधिक’। सिविल अवमानना: अदालत के किसी फ़ैसले, डिक्री, आदेश, रिट या किसी दूसरी प्रक्रिया की जान बूझकर की गई अवज्ञा या उल्लंघन।
आपराधिक अवमानना: न्यायालय की आपराधिक अवमानना के तहत वे मामले आते हैं जिनमें लिखित, मौखिक, चिह्नित , चित्रित या किसी अन्य तरीके से न्यायालय की अवमानना की गई हो।
लेकिन अदालत की फ़ैसले का सामान्य प्रकाशन, निष्पक्ष और उचित समीक्षा और न्यायालय के प्रशासन के बारे में कुछ कहना न्यायालय की अवमानना के अंतर्गत नहीं आता है।
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