क्या हैं संकेत?
इसके बावजूद बिहार में एआईएमआईएम का प्रदर्शन महाराष्ट्र में पिछले साल स्पष्ट हुए इस रुझान की पुष्टि करता है कि मुसलमानों का एक वर्ग इस धारणा पर वोट नहीं करता है कि कौन दल बीजेपी को सत्ता से बाहर रख सकता है। महाराष्ट्र में एआईएमआईएम ने 44 सीटों पर चुनाव लड़ा, दो पर जीत दर्ज की और चार पर दूसरे नंबर पर रहा।लगभग एक दशक से ओवैसी यह कहते रहे हैं कि ग़ैर-बीजेपी पार्टियाँ संविधान बचाने के नाम पर मुसलमानों का वोट हासिल करती हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद वे इस समुदाय के हितों की उपेक्षा करती हैं।
ओवैसी के आरोप
वे ऐसा इसलिए करती हैं कि उनका मानना है कि मुसलमान बीजेपी को तो वोट देगा नहीं, जो उन्हें निशाने पर लेती है और प्रताड़ित करती है। ओवैसी का कहना है कि ये पार्टियाँ तब तक नहीं सुधरेंगी और अपने को नहीं बदलेंगी जब तक उन्हें हराया न जाए और यह पाठ न पढ़ाया जाए कि मुसलमानों को हल्के में न ले। ओवैसी अपने दल को इस रूप में पेश करते हैं जो ग़ैर-बीजेपी दलों को यह पाठ पढ़ा सके, विधायिका में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बढ़ाए और समुदाय के लिए काम करे।
नरेंद्र मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद ओवैसी ने रफ़्तार पकड़ी। मुसलमानों को लगा कि उनके वोट से ग़ैर-बीजेपी दल नहीं जीत रहे हैं। ऐसे में क्या उन्हें ऐसे किसी आदमी को वोट नहीं देना चाहिए जो उनका अपना हो, जो परंपरा और आधुनिकता का आकर्षक मिश्रण हो, जो संविधान की भाषा बोलता हो? इस सोच का रणनीतिक कारण भी है।
ग़ैर-बीजेपी दल
ग़ैर-बीजेपी दल उन छोटी पार्टियों को भी लुभाने की होड़ में रहते हैं जो सिर्फ एक जाति तक सिमटी हुई है, ऐसे में मुसलमानों की एक मजबूत पार्टी ज़्यादा हिस्सा मांग सकती है और बेहतर मोल-भाव कर सकती है। एआईएमआईएम बिहार में यही काम करने जा रही थी, जहां त्रिशंकु विधानसभा तो बस होते-होते रह गयी।उत्तर भारत के ग़ैर-बीजेपी दलों ने मुसलमानों को हिन्दुत्व के ठेकेदारों से नहीं बचाया। उन्होंने नई नागरिकता नीति के ख़िलाफ़ लोगों को लामबंद नहीं किया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 370 में हुए संशोधन और अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत किया।
केजरीवाल
वे दिल्ली दंगों की विवादास्पद जाँच पर चुप रहे, जिस आधार पर कई मुसलमानों को जेल में डाल दिया गया। इससे भी बुरी बात तो यह है कि ग़ैर-बीजेपी दल अपनी हार का ठीकरा मुसलमानों पर फोड़ते हैं। साल 2019 के आम चुनाव के तुरन्त बाद आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि उनकी पार्टी नहीं जीती क्योंकि मुसलमानों ने कांग्रेस को वोट दिया था। क्या केजरीवाल ने सार्वजनिक रूप से कभी यह कहा कि उनके अपने बनिया समुदाय ने उन्हें वोट क्यों नहीं दिया?मुसलिम-दलित गठजोड़?
मुझे बिहार के कुछ दलित कार्यकर्ताओं ने कहा कि यह इस पर निर्भर करेगा कि मुसलमान नेता दलितों के मुद्दों को उठाते हैं या नहीं। यदि ऐसा होता है तो यह मुमकिन है कि उत्तर प्रदेश में ओवैसी मायावती के साथ हाथ मिलाएं जहाँ की राजनीति में वे पैराशूट की तरह आकाश से उतरना चाहते हैं।जब तक ओवैसी यह साबित न कर दें कि मुसलमानों का वोट दलितों को मिलेगा, इसकी संभावना नहीं है कि मायावती ओवैसी की बात मान जाएं। ओवैसी के लिए उत्तर प्रदेश में यह दिखाना फ़िलहाल मुश्किल है कि वह ग़ैर-बीजेपी दलों को कितना नुक़सान पहुँचा सकते हैं।
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