क्या खुलकर बात रखने की अब क़ीमत चुकानी पड़ रही है? क्या बेबाकी से राय रखने पर धमकियाँ मिलना आम बात हो गई है? बॉलीवुड डायरेक्टर अनुराग कश्यप का ट्विटर एकाउंट डिलीट करना और इससे पहले के उनके आख़िरी दो ट्वीट क्या यही सवाल नहीं छोड़ते? सामाजिक मुद्दों पर मुखर होकर बोलने भर से यदि धमकियाँ मिलने लगें तो डर तो लगना स्वभाविक ही है। अनुराग ने जो आख़िरी के दो ट्वीट किए हैं उनमें उन्होंने साफ़-साफ़ लिखा है कि उनके माता-पिता को अनजान नंबरों से फ़ोन आ रहे हैं और उनकी बेटी को लगातार धमकियाँ दी जा रही हैं।
अनुराग कश्यप उन लोगों में से हैं जो सामाजिक मुद्दों को लेकर सोशल मीडिया पर मुखर रहते हैं। अपने ट्विटर एकाउंट को डिलीट करने से पहले अनुराग ने अपने पहले के अंदाज़ में ही एक के बाद एक दो ट्वीट किए। उन्होंने साफ़-साफ़ लिखा कि वह ट्विटर को क्यों छोड़ रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें ऐसे माहौल में डर लगता है। पहले ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘जब आपके माता-पिता को कॉल आने लगें और आपकी बेटी को ऑनलाइन धमकी मिलने लगे तो कोई बात नहीं करना चाहेगा। यहाँ कोई भी तर्क भी नहीं करेगा। दबंगों का राज होगा और दबंगई जीने का नया तरीक़ा। नया भारत आप सभी को मुबारक हो। आपको ख़ुशियाँ और तरक्की मिले।’
इसके बाद अगले ट्वीट में अनुराग ने लिखा, ‘आप सभी को ढेर सारी ख़ुशियाँ और सफलताएँ मिलें। यह मेरा आख़िरी ट्वीट होगा, क्योंकि मैं ट्विटर छोड़ रहा हूँ। यदि बिना डरे बोलने नहीं दिया जाएगा तो मैं किसी मुद्दे पर बोलूँगा ही नहीं। अलविदा।’
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इस कारण आए दक्षिणपंथियों के निशाने पर
डायरेक्टर अनुराग सोशल मीडिया पर लंबे समय से दक्षिणपंथियों के निशाने पर रहे हैं। इसके बावजूद वह सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय बेहिचक रखते रहे हैं। कश्यप उन फ़िल्मी हस्तियों में से हैं, जिन्होंने 23 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला ख़त लिखकर लिंचिंग यानी पीट-पीट कर मारे जाने की घटनाओं और 'जय श्री राम' के नारे लगाने के नाम पर हो रही ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए हस्तक्षेप करने की माँग की थी। बता दें कि देश भर में पिछले चार-पाँच सालों में पीट-पीटकर मारने की घटनाएँ बढ़ी हैं। गो-तस्करी के आरोप लगाकर लिंचिंग की कई घटनाएँ आ चुकी हैं। अक्सर ऐसी भी ख़बरें आती रही हैं कि 'जय श्रीराम' या 'वंदे मातरम' नहीं बोलने पर पीटाई की गई हो।
हाल के दिनों में उन्होंने जम्मू-कश्मीर, अनुच्छेद 370 और 35ए के बारे में भी कुछ टिप्पणी की थी। उन्होंने ट्वीट किया था कि सरकार के फ़ैसले पर विरोध से ज़्यादा फ़ैसला लिए जाने के तरीक़े से डर लग रहा है। उन्होंने अनुच्छेद 370 को लेकर लिखा, ‘...जिस तरीक़े से यह सब हुआ, सही नहीं था।’ बिना नाम लिए उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा था। उनके ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथियों ने अनुराग को ख़ूब ट्रोल किया था।
तार्किक बातें करने पर धमकियाँ क्यों?
अनुराग कश्यप पहले ऐसे शख्श नहीं हैं जिन्हें दक्षिणपंथियों ने निशाने पर लिया है। इससे पहले भी कई ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, इतिहासकार रहे हैं जिनकी ख़ूब ट्रोलिंग तो की ही जाती रही है और धमकियाँ भी दी जाती रही हैं। इतिहासकार रामचंद्र गुहा, अभिनेत्री स्वरा भास्कर, पत्रकार रवीश कुमार, पुण्य प्रसून वाजपेयी जैसे लोग अक्सर धमकियाँ मिलने की शिकायतें करते रहे हैं। इन शिकायतों के अनुसार उन्हें ये धमकियाँ सोशल मीडिया ही नहीं, फ़ोन पर भी मिलती हैं। हालाँकि इन शिकायतों पर कार्रवाई कितनी होती है यह तो पुलिस ही बता सकती है।
समस्या की जड़ सिर्फ़ यही नहीं है कि पुलिस इन पर कार्रवाई ठीक से नहीं करती, बल्कि यह भी है कि ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ और ‘जय श्रीराम’ जैसे नारे के नाम पर नफ़रत का फैलाया जाना भी है। यह नफ़रत कहाँ से शुरू हो रही है और ऐसी नफ़रत फैलाने वालों के ख़िलाफ़ पर्याप्त कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है, यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है। जब तक ऊपर के स्तर से इसमें सुधार नहीं होगा तब तक बेबाकी से राय रखने वालों की स्थिति ऐसी ही रहेगी। जहाँ खुलकर राय रखने से डर लगता हो वह स्थिति ठीक तो नहीं ही होगी।
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