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विपक्ष से बोले शाह- नए आपराधिक क़ानूनों को राजनीतिक रंग देना ठीक नहीं

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि सोमवार से लागू हुए तीन नए आपराधिक क़ानूनों में सज़ा की जगह न्याय ने ले ली है। देश की आपराधिक क़ानून-व्यवस्था की समीक्षा करने की कवायद का नेतृत्व करने वाले अमित शाह ने मीडिया से कहा कि आजादी के 77 साल बाद देश में पूरी तरह से स्वदेशी कानून व्यवस्था है। अमित शाह ने विपक्ष से नए आपराधिक कानूनों का राजनीतिकरण करने से बचने को कहा। उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शन करने से पहले बातचीत की जानी चाहिए।

अमित शाह ने कहा, 'मैं विपक्षी नेताओं से अनुरोध करता हूँ कि वे समझें कि राजनीतिक जुड़ाव के लिए पर्याप्त अवसर होंगे और हम आपकी चिंताओं को दूर करने के लिए तैयार हैं। हालांकि, ये कानून न्याय और नागरिक सम्मान के लिए महत्वपूर्ण हैं, इसलिए आपका सहयोग ज़रूरी है।' उन्होंने यह भी कहा कि उनका कार्यालय विपक्षी नेताओं के साथ बातचीत के लिए हमेशा खुला है। गृहमंत्री ने कहा, 'लेकिन मेरा मानना ​​है कि पहले बैठक और चर्चा किए बिना विरोध में सड़कों पर उतरना उचित नहीं है।'

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तीन नए आपराधिक कानून - भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को पिछले साल दिसंबर में संसद द्वारा अनुमोदित किया गया था। ये भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी 1860, आपराधिक प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की जगह लेंगे। 

विपक्ष का आरोप है कि बिना बहस के नए आपराधिक कानून पारित हुए हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि पारित होने के दौरान 146 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। पी चिदंबरम ने कानूनों को कट, कॉपी, पेस्ट का काम बताया है। 

हालाँकि अमित शाह ने इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने विधेयकों को पारित करने से पहले सभी सांसदों, मंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से सुझाव मांगे थे। उन्होंने बताया, "मीडिया में कुछ विपक्षी सदस्यों द्वारा परामर्श की कमी के बारे में जो कहा जा रहा है, उसके विपरीत मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि विधेयकों को पारित करने से पहले लोकसभा में 9 घंटे और राज्यसभा में 6 घंटे तक व्यापक चर्चा की गई थी।'
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गृहमंत्री ने कहा कि औपनिवेशिक काल की आपराधिक संहिता में बदलाव के साथ न्याय व्यवस्था में एक 'भारतीय आत्मा' जुड़ गई है। उन्होंने कहा, 'प्रावधान ऐसे हैं कि कई समूहों को लाभ होगा। ब्रिटिश काल की कई धाराओं को आज के समय के अनुरूप धाराओं से बदल दिया गया है।' महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा से संबंधित अपराधों पर अमित शाह ने कहा कि नए क़ानून में पीड़िता के घर पर ही उसका बयान दर्ज करने का प्रावधान है। उन्होंने ऑनलाइन एफ़आईआर सुविधा का भी उल्लेख किया और कहा कि यह उन्हें सामाजिक कलंक से बचाएगी।

तीन आपराधिक कानूनों पर एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने एएनआई से कहा, 'यह क़ानून रॉलेट एक्ट है। देश के लोगों की नागरिक स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी। सरकार किसी को भी आतंकवादी घोषित कर सकती है। यह यूएपीए से भी ज्यादा खतरनाक है। आदिवासियों, दलितों, मुसलमानों और सत्ताधारी पार्टी से असहमत लोगों पर इनका दुरुपयोग किया जाएगा'।

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क़मर वहीद नक़वी
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