क्या हवा ख़राब सिर्फ़ दिल्ली में है? टीवी चैनलों पर सिर्फ़ दिल्ली पर हंगामा क्यों मचा है? क्योंकि दिल्ली में साँस लेने में दिक्कत होने लगी है। दिल्ली में मेडिकल इमरजेंसी है। निर्माण कार्यों पर पाबंदी है। स्कूल बंद हैं। ऑड-ईवन जैसी योजना लागू है। सुप्रीम कोर्ट तक में मामला पहुँचा। और टीवी चैनलों पर तो दिल्ली के प्रदूषण पर ऐसी बहस हो रही है जैसे देश के दूसरे हिस्से में कोई दिक्कत ही नहीं है! कानपुर का क्या हाल है? लखनऊ, पटना या वाराणसी जैसे शहरों का प्रदूषण आपको पता है? आइए, हम आपको बताते हैं।
कई ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि छोटे शहरों में प्रदूषण का स्तर दिल्ली से कहीं ज़्यादा है। अब शनिवार की ही हवा की गुणवत्ता को लीजिए। एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआई दिल्ली में शनिवार रात आठ बजे 402 था। लेकिन हरियाणा के हिसार में यह एक्यूआई 490 था और जिंद में यह 459 था। उत्तर भारत में कई शहरों ऐसी ही स्थिति है।
छोटे शहरों में एक्यूआई ज़्यादा हैं। चाहे वह बुलंदशह जैसा शहर हो या पटना की तरह राज्य की राजधानी। जिंद में शनिवार को एक्यूआई 459, ग़ाज़ियाबाद में 453, बुलंदशहर में 446, हापुर में 444, ग्रेटर नोएडा में 438 बाग़पत में 435, नोएडा में 432 और पटना में हवा की गुणवत्ता 428 थी। कानपुर में तो सोमवार शाम छह बजे भी एक्यूआई साढ़े चार सौ से ज़्यादा रहा। वाराणसी में तो यह 477 तक पहुँच गया। बता दें कि 201 से 300 के बीच एक्यूआई को ‘ख़राब’, 301 और 400 के बीच ‘बहुत ख़राब’ और 401 और 500 के बीच होने पर उसे ‘गंभीर’ माना जाता है।
एयर क्वॉलिटी इंडेक्स से हवा में मौजूद 'पीएम 2.5', 'पीएम 10', सल्फ़र डाई ऑक्साइड और अन्य प्रदूषण के कणों का पता चलता है। पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर वातावरण में मौजूद बहुत छोटे कण होते हैं जिन्हें आप साधारण आँखों से नहीं देख सकते। 'पीएम10' अपेक्षाकृत मोटे कण होते हैं।
यानी मोटे तौर पर कहें तो दो तरह के प्रदूषण फैलाने वाले तत्व हैं। एक तो पराली जलाने, वाहनों के धुएँ व पटाखे जलाने के धुएँ से निकलने वाली ख़तरनाक गैसें और दूसरे निर्माण कार्यों व सड़कों पर वाहनों के चलने से उड़ने वाली धूल। दोनों ही स्तर पर अव्यवस्था फैली है और इसलिए प्रदूषण तो बेरोकटोक बढ़ ही रहा है, साथ ही इसके समाधान के उपाय भी नहीं हो रहे हैं।
दिल्ली में प्रदूषण पर हो-हल्ला होने से शहर से सटे राज्यों हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने पर कुछ सख्ती करने की कोशिश भी की जाती है, लेकिन दूसरे क्षेत्रों में सख्ती नहीं के बराबर होती है। पटाखे जलाने पर किसी शहर में वास्तविक रोक लगाने जैसे क़दम नहीं उठाए जाते हैं। दीपावली के दिन छोटे शहरों में दिल्ली की अपेक्षा कहीं ज़्यादा पटाखे छोड़े जाने की रिपोर्टें आईं। निर्माण कार्यों की भी ऐसी ही स्थिति है। अधिकतर शहरों में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर भी स्थानीय प्रशासन निर्माण कार्यों पर रोक लगाने जैसे क़दम नहीं उठा पाते हैं। सख्ती दिखानी तो दूर की बात है। धूल-कण पीएम 2.5 और पीएम 10 ख़तरनाक स्तर पर बढ़ जाते हैं।
सड़कों से उड़ने वाली धूल भी पीएम 2.5 और पीएम 10 के बढ़ने के बड़े कारण हैं। छोटे शहरों में यातायात और सड़कों की हालत तो ज़्यादा ही ख़राब है। इतनी ज़्यादा धूल उड़ती है कि सड़कों पर चलना तक मुश्किल हो जाता है।
इन्हीं कारणों से प्रदूषण बढ़ाने वाले कारण तो लगातार बढ़ते रहते हैं और इसके असर को कम करने का कुछ उपाय भी नहीं हो पाता है। उत्तर भारत में प्रदूषण को लेकर ऐसी ही लापरवाही का नतीजा है कि दुनिया भर में सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में भारत के शहरों के नाम हैं।
विश्व के सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर
2018 में आई रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक वायु प्रदूषण के आँकड़े बताते हैं कि पीएम 2.5 के आधार पर 2016 में विश्व के 15 सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में से 14 भारत के थे। तब कानपुर टॉप पर रहा था। साल भर का औसत रूप से पीएम 2.5 कानपुर में दुनिया में सबसे ज़्यादा 173 रहा था। सर्दियों के मौसम में तो यह काफ़ी ज़्यादा चला जाता है।
कानपुर के बाद दूसरे स्थान पर फरिदाबाद रहा था। यहाँ पीएम 2.5 औसत रूप से 172 था। तीसरे स्थान पर प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी शहर था और यहाँ पीएम 2.5 औसत रूप से 151 रहा था।
इसके बाद गया, पटना, दिल्ली, लखनऊ, आगरा, मुज़फ़रनगर, श्रीनगर, गुरुग्राम, जयपुर, पटियाला और जोधपुर शहर थे। 15वें स्थान पर दुनिया का एकमात्र दूसरा शहर अली सुबह अल-सलेम (कुवैत) था।
क्या दुनिया भर में भारत के इन शहरों की तसवीर सिर्फ़ दिल्ली की कहानी कहती हैं? क्या ज़हरीली हवा सिर्फ़ दिल्ली के लोगों के फेफड़े को ख़राब कर रही है? इन शहरों में लोगों का स्वास्थ्य क्या ख़तरे में नहीं है? क्या सिर्फ़ दिल्ली के लिए समाधान ढूँढने से देश को दूसरे शहरों में हवा साफ़ हो जाएगी? यदि आसपास प्रदूषण ख़तरनाक स्तर पर रहेगा तो दिल्ली में स्थिति कैसे बेहतर होगी?
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