जिन लोगों ने कोरोना टीके की दो खुराक़ें ले ली हैं, उन्हें बूस्टर डोज़ यानी तीसरी खुराक़ लेनी पड़ सकती है।
ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइसेंज के प्रमुख डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने इसकी वजह बताते हुए कहा है कि कोरोना वायरस के नए वैरिएंट पर मौजूदा टीके प्रभावी नहीं भी हो सकते हैं।
डॉक्टर गुलेरिया के मुताबिक़, इसकी वजहें ये भी हैं कि लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है और नए वैरिएंट मौजूदा टीके के ख़िलाफ़ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ले सकते हैं। डॉक्टर गुलेरिया ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा,
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समय के साथ लोगों में इम्युनिटी कम होती जाती है, हमें लगता है कि शायद टीके के बूस्टर डोज़ की ज़रूरत होगी। वायरस के नए वैरएंट्स के लिए यह बूस्टर डोज़ ज़रूरी होगा।
डॉक्टर रणदीप गुलेरिया, अध्यक्ष, ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइसेंज
बूस्टर डोज़ का ट्रायल
उन्होंने यह भी कहा कि बूस्टर डोज़ का ट्रायल चल रहा है, इस साल के अंत तक इसकी ज़रूरत पड़ सकती है। सारे लोगों को दोनों खुराक़ें देने के बाद ही तीसरी खुराक़ देने का काम शुरू किया जाएगा।
एम्स प्रमुख ने यह एलान भी किया कि बच्चों को देने के लिए कोरोना टीका का ट्रायल चल रहा है। भारत बायोटक इस टीके पर काम कर रहा है और सितंबर तक यह पूरा हो जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि बच्चों के टीके का ट्रायल तीन स्तरों पर हो रहा है। 12 से 18 साल के बच्चों पर, 6 से 12 साल के बच्चों पर और 2 से 6 साल के बच्चों पर अलग-अलग ट्रायल चल रहे हैं।
गुलेरिया के अनुसार, ज़ाइडस कैडिला भी बच्चों के टीके पर काम कर रहा है, उसका ट्रायल हो गया है और उसने उसके डेटा दिए हैं। ज़ाइडस ने आपातकालीन स्थितियों में बच्चों को यह टीका लगाने की अनुमति के लिए आवेदन भी कर रखा है।
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पाँचवां टीका
बता दें कि ज़ायडस कैडिला ने तीन चरणों के ट्रायल के बाद आपात इस्तेमाल की मंजूरी के लिए आवेदन किया है। यदि इसे मंजूरी मिलती है तो यह भारत में पाँचवीं वैक्सीन होगी जिसका इस्तेमाल देश में किया जाएगा। भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के बाद यह दूसरी वैक्सीन है जो पूरी तरह देश में ही विकसित की गई है।
ज़ायडस कैडिला की यह वैक्सीन तीन खुराकों वाली है और इसे लगाने के लिए सुई की ज़रूरत नहीं होगी। कंपनी ने कहा है कि यह दुनिया की पहली प्लाज़्मिड डीएनए वैक्सीन है और दावा किया है कि यह बच्चों के लिए सुरक्षित है।
ज़ायडस कैडिला ने कहा है कि ट्रायल के अंतरिम परिणाम के अनुसार वैक्सीन कोरोना लक्षण वाले केसों पर 66.6 फ़ीसदी प्रभावी है और मध्यम दर्जे की बीमारी के ख़िलाफ़ 100 फ़ीसदी प्रभावी है।
कंपनी ने यह भी कहा है कि यह वैक्सीन 12 से 18 साल के बच्चों के लिए भी सुरक्षित है। हालाँकि इसके आँकड़े अभी तक पीअर-रिव्यू की प्रक्रिया से नहीं गुजरे हैं और न ही ये विज्ञान की किसी प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित किये गये हैं।
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