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आदित्य - एल वन मिशन ने अपनी पहली सेल्फी भेजी है। इसरो के एक्स खाते से

आदित्य - एल वन मिशन ने अंतरिक्ष से भेजी अपनी पहली सेल्फी

सूर्य की जानकारी एकत्र करने लिए अंतरिक्ष में गये आदित्य - एल वन मिशन ने अपनी पहली सेल्फी भेजी है। इस सेल्फी में आदित्य - एल वन पर लगे दो उपकरण VELC और SUIT दिख रहे हैं।
 इसरो ने गुरुवार 7 सितंबर को इस सेल्फी के साथ ही आदित्य - एल वन में लगे कैमरे से ली गई पृथ्वी और चांद की फोटो शेयर की है। 
इसरो ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर ट्वीट कर बताया है कि सूर्य और पृथ्वी के बीच एल प्वाइंट पर जा रहे आदित्य एल वन ने सेल्फी ली है। इसरो की ओर से साझे किए गए 41 सेकेंड के एक वीडियो में इस सेल्फी के साथ ही पृथ्वी और चांद की तस्वीर भी नजर आती है। बताया जा रहा है कि ये तस्वीरें 4 सितंबर को ली गई थी। 
देश का पहला सूर्य मिशन आदित्य एल वन अपनी मंजिल की ओर लगातार बढ़ रहा है। यह करीब 15 लाख किलोमीटर दूर सूर्य और पृथ्वी के बीच स्थित एल वन प्वाइंट तक जाएगा । यह ऐसा प्वाइंट है जहां से बिना किसी बाधा के सूरज को लगातार देखा जा सकता है। 
इसका कारण है कि यहां से सूर्य बिना किसी ग्रहण के दिखता है। इस स्थान से सूर्य की गतिविधियों और अंतरिक्ष के मौसम पर नजर रखी जा सकती है। यह मिशन 6 जनवरी 2024 को एल प्वाइंट तक पहुंचेगा। यह सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत द्वारा भेजा गया पहला मिशन है।  
इससे पहले आदित्य एल वन मिशन ने मंगलवार को पृथ्वी की कक्षा से संबंधित दूसरी प्रक्रिया सफलता पूर्वक पूरी कर ली थी। 
वहीं, इसरो के मुताबिक, आदित्य एल वन की पृथ्वी की कक्षा से संबंधित तीसरी प्रक्रिया 10 सितंबर को भारतीय समय के मुताबिक देर रात लगभग 2.30 बजे निर्धारित है। आदित्य एल वन मिशन को 2 सितंबर को 11.50 बजे श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था।  

सामने आएंगी सूर्य की कई अहम जानकारियां

सूर्य से जुड़ी जानकारियों के लिए भारत ने पहली बार अपना मिशन अंतरिक्ष में भेजा है। सूर्य का दूसरा नाम आदित्य भी होता है। इसरो की ओर भेजे जा रहे इस मिशन को पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर एल वन प्वाइंट पर स्थापित किया जाएगा।
यह एक ऐसा प्वाइंट है जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बलों का संतुलन होने के चलते वस्तुएं ठहर सकती हैं। इससे ईंधन का खपत भी कम होती है। इसरो का यह मिशन अगर कामयाब होता है तो सूर्य की कई अहम जानकारियां सामने आएंगी। माना जा रहा है कि इस मिशन से मिलने वाली जानकारियां सौर उर्जा को लेकर भविष्य की रिसर्च का रास्ता भी साफ होगा। 
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चांद पर अपना टास्क पूरा कर सो चुके हैं विक्रम और प्रज्ञान

बीते 23 अगस्त को भारत का चंद्रयान -3 मिशन चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफलता पूर्वक पहुंचा था। वहीं 4 सितंबर को चंद्रयान-3 मिशन के विक्रम लैंडर को स्लीप मोड में डाल दिया गया था। इससे पहले प्रज्ञान रोवर को भी स्लीपिंग मोड में डाल दिया गया था। प्राप्त जानकारी के मुताबिक विक्रम लैंडर अब अगले 22 सितंबर से दुबारा से काम करने लग सकता है। 

चांद पर का एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है। चंद्रयान-3 के लैंडिंग के समय से लेकर अब तक चांद पर दिन था। अभी चांद पर रात हो चुकी है। रात के समय वहां का तापमान अत्यधिक कम हो जाता है। बेहद कम तापमान के कारण चंद्रयान में लगे उपकरण खराब हो सकते हैं। इसको देखते हुए ही इन्हें स्लीपिंग मोड में डाल दिया गया है। सब कुछ ठीक रहा तो ये विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर 22 सितंबर चांद पर सूर्योदय के साथ ही फिर अपने मिशन पर वापस काम शुरु कर देंगे।  
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चंद्रयान - 3 मिशन ने भेजी नई जानकारियां 

चांद पर जाने के बाद विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने धरती पर वैज्ञानिकों को कई अहम डेटा भेजे हैं। इन डेटा के आधार पर चांद से जुड़ी कई जानकारियां सामने आई हैं। चांद की सतह पर  29 अगस्त को ऑक्सीजन, एल्युमीनियम, कैल्शियम, आयरन, टाइटेनियम और क्रोमियमकी,  मैगनीज और सिलिकॉन की मौजूदगी का भी पता चला था। जबकि चांद पर हाइड्रोजन की खोज करने की कोशिश जारी है। इन खोजों का महत्व इसलिए भी है कि भविष्य में यह चांद को लेकर और अधिक अनुसंधान का रास्ता तैयार करेंगी। 
वहीं 28 अगस्त को चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर में लगे चास्टे पेलोड ने चंद्रमा के तापमान को लेकर पहला ऑब्जर्वेशन भेजा था। इसने बताया था कि चंद्रमा की सतह और उसकी अलग-अलग गहराई में जाने पर तापमान में काफी अंतर है। इसके द्वारा भेजी गई जानकारी के मुताबिक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर तापमान करीब 50 डिग्री सेल्सियस है। वहीं, 80 एमएम की गहराई में तापमान माइनस 10 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया है। चास्टे पेलोड में तापमान मापने के लिए 10 सेंसर लगे हैं, जो 100 एमएम की गहराई तक पहुंच सकते हैं। 
चांद के दक्षिणी ध्रुव पर के तापमान और वहां की अन्य जानकारियों का पता चलना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि चांद का यही वह हिस्सा है जहां भविष्य में इंसानों को बसाने की क्षमता हो सकती है। यहां सूर्य का प्रकाश काफी कम समय के लिए रहता है। वैज्ञानिकों का प्रयास है कि वह चांद की मिट्टी और वहां के वातावरण को लेकर ज्यादा से ज्यादा जानकारियां जुटाएं। 
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क़मर वहीद नक़वी
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