इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बुधवार को फिल्म आदिपुरुष के आपत्तिजनक डायलॉग के मामले में लगातार तीसरे दिन सुनवाई की है। कोर्ट ने फिल्म के निर्माताओं को फटकार लगाते हुए कहा कि आप कुरान पर एक छोटी सी डॉक्यूमेंट्री बनाकर देखिए, जिसमें गलत चीजों का चित्रण हो तो आपको पता चलेगा कि क्या होगा। आपको कुरान, बाइबिल को भी नहीं छूना चाहिए। कोर्ट ने साफ किया है कि यह मुद्दा किसी एक धर्म के बारे में नहीं है, लेकिन, किसी खास धर्म को खराब रोशनी में चित्रित नहीं किया जाना चाहिए। आप किसी भी धर्म के बारे में गलत तरह से मत दिखाएं। कोर्ट का अपना कोई धर्म नहीं है। हाईकोर्ट ने कहा कि उसकी एकमात्र चिंता यह है कि कानून और व्यवस्था की स्थिति बनी रहे।
व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ओम राउत निर्देशित फिल्म आदिपुरुष के सीन और डायलॉग के खिलाफ दायर याचिकाओं के मामले में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड और केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह की बेंच ने फिल्म के निर्माताओं की मानसिकता पर सवाल उठाया है। बेंच ने उनसे कहा है कि कुरान और बाइबिल जैसे पवित्र ग्रंथों को भी इस तरह से नहीं छुआ जाना चाहिए। उनका अतिक्रमण नहीं किया जाना चाहिए।
ऐसी फिल्म को सेंसर बोर्ड ने पास कैसे कर दिया
कोर्ट ने कहा कि फिल्म आदिपुरुष को प्रमाणित करना ही एक भूल थी और जिससे बड़े पैमाने पर लोगों की भावनाएं आहत हुई है। जिस रामायण के पात्रों की पूजा की जाती है, उसे एक मजाक की तरह फिल्म में कैसे दिखा दिया गया। हाल के दिनों में ऐसी कई फिल्में देखने को मिली हैं जिनमें हिंदू देवी-देवताओं को मजाकिया तरीके से दिखाया गया है। बेंच ने सवाल उठाया कि ऐसी फिल्म को सेंसर बोर्ड ने पास कैसे कर दिया।
फिल्म मेकर्स को तो सिर्फ पैसे कमाने हैं
फिल्म को पास कर देना एक ब्लंडर है। फिल्म मेकर्स को तो सिर्फ पैसे कमाने हैं क्योंकि पिक्चर हिट हो जाती है। उसने ऐसी फिल्म को प्रमाणित करके बड़ी गलती की है। इसके जवाब में जब बेंच को बताया गया कि प्रमाणपत्र बोर्ड ने दिया है, जिसमें समझदार लोग शामिल होते हैं। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर ऐसे 'संस्कारी' लोग ऐसी फिल्म देख रहे हैं, तो वे वास्तव में धन्य हैं। बेंच ने कहा कि उसने कई लोगों से फिल्म के बारे में विचार पूछे और पाया कि फिल्म असहनीय है, क्योंकि फिल्म में हिंदू देवी-देवताओं का गलत तरीके से चित्रण किया गया है। इससे पहले मंगलवार को कोर्ट ने कहा था कि हिंदुओं की सहनशीलता की परीक्षा क्यों ली जाती है। शुक्र है उन्होंने (हिंदुओं ने) कानून नहीं तोड़ा है। जो सज्जन हैं उन्हें दबा देना क्या सही है?
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