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गौतम अडानी

अडानी के धंधे की चमक के पीछे कौन थे/हैं, मिले सवालों के जवाब 

दुनिया में तीसरे नंबर पर सबसे अमीर शख्स गौतम अडानी अब सुर्खियों में लगातार रहते हैं। बकौल कांग्रेस नेता राहुल गांधी अडानी भारत सरकार को चला रहे हैं। अडानी कांग्रेस नेता के इस बयान से जरा भी विचलित नहीं हुए। फिर वो उद्योगपति ही क्या जो किसी नेता के बयान से विचलित हो जाए। हाल ही में विदेशी अखबार द वॉशिंगटन पोस्ट ने अडानी समूह के कारोबार पर नेगेटिव स्टोरी की, गौतम अडानी उससे भी परेशान नहीं हुए।

भारत जोड़ो यात्रा जब 24 दिसंबर को दिल्ली पहुंची तो उसी दिन शाम को राहुल गांधी ने अडानी-अंबानी पर तीखा हमला बोला। राहुल ने कहा कि यही दो उद्योगपति मोदी सरकार को चला रहे हैं। ज्यादा दिन नहीं गुजरे। सिर्फ 4 दिनों बाद 28 दिसंबर को इंडिया टुडे ने गौतम अडानी का इंटरव्यू लिया और अडानी ने बहुत विनम्रता से बताया कि अगर स्व. राजीव गांधी ने उनकी मदद नहीं की होती तो वो (गौतम अडानी) अपने सपनों को पूरा नहीं कर सकते थे। 
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गौतम ने पीएम नरेंद्र मोदी के साथ अपने संबंधों से लाभ उठाने के आरोपों का पूरी तरह खंडन किया। उन्होंने कहा कि उनकी सफलता की कहानी को किसी एक राजनीतिक नेता से नहीं जोड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा- 

अडानी समूह की यात्रा तीन दशक से भी पहले शुरू हुई थी, जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। चूंकि मैं और पीएम मोदी एक ही राज्य से हैं, इसलिए आरोप लगाना आसान है। ये आरोप पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। कई लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि अडानी समूह की सफलता की कहानी राजीव गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान शुरू हुई थी, जब उन्होंने पहली बार एक्ज़िम (निर्यात-आयात) नीति को उदार बनाया था...। राजीव गांधी के समय में एक उद्यमी के रूप में मेरी यात्रा कभी भी रुकी नहीं। हम सफलता की एक-एक सीढ़ी चढ़ते गए।


- गौतम अडानी, इंडिया टुडे 28 दिसंबर 2022

अडानी ने कहा कि दूसरा सबसे बड़ा फायदा मुझे 1991 में मिला जब नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह की जोड़ी ने व्यापक आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। कई अन्य उद्यमियों की तरह, मैंने भी उन सुधारों का फायदा उठाया। अडानी कहते हैं कि कोराबारी जिन्दगी में तीसरा महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब 1995 में बीजेपी के केशुभाई पटेल गुजरात के सीएम थे, उनकी नीतियों की वजह से मैंने मुंद्रा में अपना पहला बंदरगाह स्थापित किया। अडानी ने कहा - 

मेरी कारोबारी जिन्दगी का चौथा मोड़ 2001 में आया जब नरेंद्र भाई गुजरात के सीएम बने। उन्होंने विकास की नीतियां बनाईं और लागू कीं। गुजरात के हालात बदले और कारोबार के हालात भी बदले। आज, उनके सक्षम नेतृत्व में, हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक समान ग्रोथ देख रहे हैं, जहां एक नया भारत अब खुद को स्थापित कर रहा है।


-गौतम अडानी, इंडिया टुडे 28 दिसंबर 2022

अडानी ने इस इंटरव्यू में यह भी स्वीकार किया कि वो रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक धीरूभाई अंबानी से "प्रेरित" थे। धीरूभाई अंबानी भारत में लाखों नए उद्यमियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
अपनी कारोबारी सफलता में उन्होंने अपने सीईओ का भी योगदान बताया। उन्होंने कहा, हमारे सभी कारोबार प्रोफेशनल, सक्षम सीईओ द्वारा चलाए जाते हैं। मैं उनके रोजाना के कामकाज में दखल नहीं देता। मेरी भूमिका अडानी समूह की रणनीति बनाने, पूंजी आवंटन और उनकी समीक्षा करने तक सीमित है। यही वजह है कि मेरे पास न सिर्फ इतने बड़े और विविध संगठन का प्रबंधन करने का समय है बल्कि कई नए व्यवसायों का अधिग्रहण करने के लिए नए अवसरों की तलाश करने का भी समय है।

आपकी जिन्दगी में अडानी का दखलः भारतीय उपभोक्ता इस समय जो भी चीज इस्तेमाल करते हैं, उनमें कहीं न कहीं अडानी का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दखल जरूर है। अडानी समूह की सात कंपनियां इन्फ्रास्ट्रक्चर, एफएमसीजी, खनन, ऊर्जा और अन्य क्षेत्रों में सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध हैं। पिछले पांच वर्षों में अडानी एंटरप्राइजेज ने हवाई अड्डों, सीमेंट, कॉपर रिफाइनिंग, डेटा सेंटर, ग्रीन हाइड्रोजन, पेट्रोकेमिकल रिफाइनिंग, सड़क और सोलर सेल निर्माण सहित नए विकास क्षेत्रों में भारी निवेश किया है। अडानी समूह ग्रीन हाइड्रोजन और एयरपोर्ट कारोबार को बढ़ाने की बड़ी योजना पर काम कर रहा है। अडानी समूह ने ग्रीन एनर्जी में निवेश के लिए 70 अरब डॉलर की प्रतिबद्धता भी जताई है।
60 साल के अरबपति उद्योगपति गौतम अडानी दुनिया के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति हैं। ब्लूमबर्ग बिलियनेयर्स इंडेक्स के अनुसार अडानी की संपत्ति $152.2 बिलियन (सितंबर 2022 तक) है। इस सूची में बर्नाड अरनॉल्ट (Bernard Arnault) पहले और एलोन मस्क दूसरे नंबर पर हैं।

हाल ही में अडानी ने एनडीटीवी समूह में 65 फीसदी की हिस्सेदारी हासिल कर ली है। कम से कम एनडीटीवी समूह के तमाम चैनलों के दर्शक गर्व से तो कह ही सकते हैं कि उनकी जिन्दगी में रोजाना गौतम अडानी एनडीटीवी के जरिए आते हैं। हालांकि गौतम अडानी ने अपने इंटरव्यू में भरोसा दिया है कि वे एनडीटीवी की संपादकीय नीति में कोई दखल नहीं देंगे। लेकिन ये शुरुआती बातें हैं। इसके लिए हमें इंतजार करना होगा।


संपत्ति बढ़ने की खास वजहें

अडानी की संपत्ति बढ़ने की रफ़्तार तेज होने की कुछ खास वजह भी है। एक समय जिस गौतम अडानी के बारे में ख़बर आई थी कि कोरोना काल में जहाँ आम तौर पर लोगों की आय कम हुई थी वहाँ अडानी हर रोज़ 1000 करोड़ कमा रहे थे।
आर्थिक मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी ने हाल में एक लेख में बताया था कि अंबानी के कारोबार के बढ़ने और उनके तौर-तरीकों पर वर्षों से सवाल उठते रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है अडानी समूह पर कर्ज को लेकर है। हालांकि अडानी ने इंडिया टुडे को दिए गए इंटरव्यू में इस पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। अडानी के जवाब की चर्चा थोड़ा रुक कर।
फिच रेटिंग की सहयोगी क्रेडिटसाइट्स ने एक रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि हालात बहुत बिगड़े तो अडानी को दिए गए कर्ज पर डिफॉल्ट का डर भी हो सकता है। यह खतरा काफी गंभीर लगता है, खासकर यह देखते हुए कि मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज 2020 में ही खुद को नेट डेट फ्री या कर्जमुक्त घोषित कर चुकी है। लेकिन असलियत यह है कि मार्च 22 में भी रिलायंस इंडस्ट्रीज़ पर लगभग तीन लाख करोड़ रुपए का कर्ज था। 
उधर, अडानी समूह पर कर्ज का आंकड़ा लगभग दो लाख बीस हज़ार करोड़ रुपए का था। कर्ज की रकम कंपनी ने अपने कारोबार को ही बढ़ाने में लगाई है। अगर अडानी समूह इसी रफ्तार से बढ़ता रहा तो जो कर्ज आज बड़ा लग रहा है वही कल छोटा दिखने लगेगा। इसीलिए खतरे की घंटी बजाने वाली क्रेडिटसाइट्स की रिपोर्ट में ज्यादा चिंता इस बात पर दिखती है कि कंपनी में प्रोमोटर ज्यादा पैसा लगाने की बजाय कर्ज के भरोसे कारोबार बढ़ा रहे हैं। हालांकि उन्हें लगता है कि बैंकों और सरकार से कंपनी के रिश्ते भरोसे का भाव देते हैं।
अडानी का क्या है जवाबः अडानी ने इंडिया टुडे को दिए गए इंटरव्यू में बैंकों से मिले कर्ज और उन्हें चुकाने पर उठाए गए सवालों का भी जवाब दिया है। अडानी ने इंडिया टुडे से कहा - मेरे समूह की कुल उधारी में भारतीय बैंकों का एक्सपोजर "केवल 32 फीसदी" है। लोग तथ्यों की सच्चाई पता किए बिना चिंता जताते हैं। तथ्य यह है कि नौ साल पहले, हमारे कुल कर्ज में से 86 फीसदी भारतीय बैंकों का उधार था। लेकिन अब, हमारे कुल उधार में भारतीय बैंकों का जोखिम घटकर केवल 32 फीसदी के स्तर पर आ गया है। समूह की 50 फीसदी उधारी अब अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड के जरिए है। जैसा आप जानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय इन्वेस्टर सारी रिसर्च और जानकारी हासिल करने के बाद ही कुछ खरीदते हैं।
इस तरह गौतम अडानी ने साफ कर दिया कि भारतीय बैंकों से कर्ज लेकर उन्होंने कुछ गलत नहीं किया और जब मुनाफा बढ़ रहा है तो कर्जे चुकाए भी जा रहे हैं।

वॉशिंगटन पोस्ट की स्टोरी

बहरहाल, अडानी आरोपों से नहीं बच सके हैं। ऐसे वक्त में जब भारतीय मीडिया गौतम अडानी की सफलता की कहानियों पर प्यार लुटा रहा है, ऐसे में 9 दिसंबर को प्रतिष्ठित अखबार द वॉशिंगटन पोस्ट ने एक खोजपूर्ण रपट गौतम अडानी के धंधों पर प्रकाशित कर दी। जिसका शीर्षक है - कैसे राजनीतिक इच्छा शक्ति एक अरबपति कोयला कारोबारी और उसके गंदे फॉसिल फ्यूल का पक्ष लेती है। दरअसल, यहां पर फॉसिल फ्यूल को अडानी के गलत धंधे के रूप में इस्तेमाल किया गया है। वॉशिंगटन पोस्ट की इस स्टोरी में विस्तार से कोयला कारोबार में घुसने, बांग्लादेश में धंधा शुरू करने, गुजरात सरकार द्वारा अडानी को फायदा पहुंचाने के तथ्यों का जिक्र है। वॉशिंगटन पोस्ट की इस रिपोर्ट का अडानी समूह की ओर से कोई खंडन आज तक नहीं देखा गया। अलबत्ता अडानी के ताजा इंटरव्यू ने बहुत सारी बातों का जवाब दे दिया है।
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लोगों का काम है कहना

कुछ तो लोग कहेंगे। टाटा समूह जो अपनी पारदर्शिता के लिए मशहूर है, आलोचना से वो भी नहीं बच पाया। तमाम नेगेटिव खबरों के बीच अडानी समूह अपनी रफ्तार से चले चला जा रहा है। जिस तरह युद्ध में सबकुछ करने की छूट है, उसी तरह अब व्यापार के लिए भी नई तहरीर गढ़ी जानी चाहिए- कारोबार में क्यों नहीं सबकुछ जायज हो। खासकर जब गुजरात की हवा में भी व्यापार है। फिलहाल, भारत में जमाना गुजराती नजरिए से कारोबार का है।
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