अडानी समूह के लिए विवाद और संकट कोई नया नहीं है। लेकिन उनका संकट अब बढ़ रहा है। तमाम बैंक उनके शेयर कारोबार पर नजर रख रहे हैं।
स्कूल ड्रॉपआउट गौतम अडानी के दिन अब अच्छे नहीं चल रहे हैं। कल तक दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची वाला शख्स बुधवार को अमेरिका की एक मामूली निवेश फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च से हार गया। अडानी समूह को सिर्फ इसी हिंडनबर्ग रिसर्च की वजह से अपना ब्लॉकबस्टर एफपीओ वापस लेना पड़ा। हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट ने अडानी समूह की चूलें हिला दीं।
रॉयटर्स न्यूज एजेंसी ने अडानी को लगे हालिया झटके का विश्लेषण किया है। रॉयटर्स के मुताबिक अडानी की कंपनियों को शेयर बाजार में करीब 86 अरब डॉलर का नुकसान होने के बाद यह कदम उठाया पड़ा। निवेशकों ने बिजनेस टाइकून की बंदरगाह, कोयला खदानों, खाद्य व्यवसायों, हवाईअड्डों की कंपनियों के शेयर को बुरी तरह गिरा दिया। अडानी ने हाल ही में जानी-मानी मीडिया कंपनी एनडीटीवी का अधिग्रहण कर लिया था।
मंगलवार को, अडानी समूह ने न्यूयॉर्क स्थित शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग के हमले का मुकाबला किया और प्रमुख फर्म अडानी एंटरप्राइजेज को 2.5 बिलियन डॉलर के शेयर का फायदा मिला। लेकिन अडानी समूह शेयर बाजार में बिकवाली को रोक नहीं सका। उसके एक चौथाई से अधिक शेयर डूब गए। निवेशकों पीछे हट गए।यह एक ऐसे व्यक्ति की लिए दुर्लभ हार थी जो हाल के वर्षों में अजेय लग रहा था।
अडानी ने गुजरात में एक मामूली कारोबारी के रूप में अपना धंधा शुरू किया था और धीरे-धीरे अपने संपर्कों और मेहनत के बल पर कारोबार का विशाल साम्राज्य खड़ा कर दिया। पीएम नरेंद्र मोदी उसी राज्य से हैं और दोनों के संबंध लंबे समय से विरोधियों के निशाने पर हैं। हाल ही में कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी ने गौतम अडानी पर जबरदस्त हमले किए हैं। राहुल ने कहा कि मोदी सरकार को अडानी और अंबानी चला रहे हैं।
फोर्ब्स के अनुसार, पिछले हफ्ते तक, अडानी दुनिया के तीसरा सबसे अमीर व्यक्ति थे, जिसकी कुल संपत्ति 127 बिलियन डॉलर थी, जो केवल बर्नार्ड अरनॉल्ट और एलोन मस्क से पीछे थे। वो लुढककर टॉप 10 से बाहर हुए और बुधवार को 15वें नंबर पर खिसक गए।
भारत में तमाम कारोबारी जहां विरासत में मिली दौलत के बाद उभरे और जाने गए, वहीं 60 साल के गौतम अडानी मध्यवर्गीय परिवार से हैं, जो कपड़ा बेचने का काम करता था। जिसके बारे में लोग पहले से कुछ नहीं जानते थे। उनका नाम उन कारोबारियों में नहीं था, जिन्हें अरबों रुपये का बिजनेस विरासत में मिला था। गौतम अडानी को नजदीक से जानने वाले उन्हें बहुत प्रैक्टिकल इंसान बताते हैं और इसी के बल पर उन्होंने सफलता हासिल की है।
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पिछले तीन वर्षों में अडानी का साम्राज्य कुछ ज्यादा ही फैला। कोविड 19 के दौरान तो वो सफलता की सीढ़ियां लगातार चढ़ रहे थे। उनकी सात सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर बढ़ते चले गए। पिछले तीन वर्षों में कुछ मामलों में तो उनके शेयरों ने 1,500% से अधिक कमाई की। यह न जाने कैसे हो रहा था। अडानी ने मोदी विरोधियों के इन आरोपों से इनकार किया कि उन्हें पीएम मोदी से करीबी संबंधों की वजह से फायदा हुआ।
हाल के वर्षों में, 220 बिलियन डॉलर के अडानी समूह के साम्राज्य ने विदेशी निवेश को काफी आकर्षित किया है। मसलन फ्रांस की टोटल एनर्जी ने दुनिया के सबसे बड़े ग्रीन हाइड्रोजन इकोसिस्टम को विकसित करने के लिए पिछले साल अडानी के साथ भागीदारी की।
हिंडनबर्ग की चुनौती
अडानी समूह का जैसे ही एफपीओ सामने आया, हिंडनबर्ग रिसर्च ने उसे चुनौती दी। उसने अडानी समूह पर भारत को व्यवस्थित ढंग से लूटने के आरोप लगाए। अडानी ने 413 पेजों के जरिए अपना बचाव करना चाहा।
अडानी समूह ने कहा कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट भारत और उसके संस्थानों पर एक "सुनियोजित हमला" है। कंपनी के एक वरिष्ठ कार्यकारी ने इसे औपनिवेशिक युग (ब्रिटिश काल) का नरसंहार बताते हुए कहा कि हम भारतीय सैनिकों की तरह लड़ेंगे। संकटग्रस्त अडानी के समर्थन में सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने आवाज भी उठाई। कई हैशटैग ट्रेंड कराए गए। लेकिन इससे अनहोनी कहां रुकती है।
इस हफ्ते बाजार में घाटा बढ़ने के साथ ही अडानी खुद बेफिक्र नजर आए। वो इस्राइल के हाइफा बंदरगाह का औपचारिक नियंत्रण लेने के लिए इस्राइल पहुंचे। जिसे उन्होंने एक स्थानीय फर्म के साथ साझेदारी में खरीदा है। उस कार्यक्रम में इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू मौजूद थे। यह खबर भारतीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छा गई। यह एक तरह से हिंडनबर्ग को जवाब था कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में अडानी समूह की साख अभी भी है। लेकिन जब एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी क्रेडिट सुइस ने बुधवार को एफपीओ को लेकर कई गड़बड़ियों का इशारा किया और बॉन्ड लेने से मना कर दिया तो अडानी समूह घुटनों पर आ गया। उसने शेयर मार्केट को अस्थिर बताते हुए अपना एफपीओ वापस लेने और निवेशकों का पैसा लौटाने की घोषणा बुधवार देर शाम की।
अडानी विवाद के लिए कोई अजनबी नहीं हैं। भारत में उन्हें लेकर तमाम विवादों को छोड़ भी दिया जाए तो ऑस्ट्रेलिया में, पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने भी समूह को बेनकाब करने में कसर नहीं छोड़ी। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने ऑस्ट्रेलिया में कार्बन उत्सर्जन और ग्रेट बैरियर रीफ को नुकसान की चिंताओं पर क्वींसलैंड में अडानी की कारमाइकल कोयला खदान परियोजना का जबरदस्त विरोध किया। वहां कई वर्षों से विरोध चल रहा है।
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