दिल्ली और पंजाब में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी ने क्या हिमाचल प्रदेश का चुनाव मैदान छोड़ दिया है। यह सवाल आम आदमी पार्टी की राज्य में कम हो रही सक्रियता से खड़ा हुआ है।
हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो गया है। राज्य में 12 नवंबर को एक चरण में वोटिंग होगी और 8 दिसंबर को नतीजे आएंगे। यह साफ है कि वोटिंग में 1 महीने से भी कम का वक्त रह गया है।
इस साल मार्च में पंजाब के चुनाव में भारी भरकम जीत हासिल करने के बाद आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हिमाचल प्रदेश के ताबड़तोड़ दौरे शुरू किए थे। केजरीवाल ने हिमाचल प्रदेश की जनता से तमाम बड़े वादे किए और बड़े बदलावों के लिए एक मौका देने की अपील की।
बैंस को बनाया प्रभारी
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली सरकार के कैबिनेट मंत्री सत्येंद्र जैन को राज्य का प्रभारी बनाया था लेकिन जैन को मई के आखिर में ईडी ने गिरफ्तार कर लिया था और वह जेल में हैं। तब से प्रभारी जैसा अहम पद खाली था और शुक्रवार को पार्टी ने पंजाब सरकार के कैबिनेट मंत्री हरजोत सिंह बैंस को हिमाचल प्रदेश का प्रभारी बनाया है।
सवाल यहां यह खड़ा हो रहा है कि जिस तरह की सक्रियता अरविंद केजरीवाल और पार्टी के तमाम नेताओं ने पंजाब के नतीजों के बाद हिमाचल में दिखाई थी, उसमें जबरदस्त गिरावट क्यों आ गई है। हिमाचल प्रदेश ऐसा राज्य है जो पंजाब से लगता हुआ है और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। ऐसे में निश्चित रूप से अरविंद केजरीवाल को ज्यादा ताकत इस छोटे राज्य में लगानी चाहिए थी क्योंकि यहां उन्हें गुजरात के मुकाबले ज्यादा चुनावी सफलता मिल सकती थी और शुरुआती महीनों में उन्होंने ऐसा किया भी।
लेकिन पिछले तीन महीनों में केजरीवाल ने पूरा जोर गुजरात पर ही लगाया है और ऐसा लगता है कि उन्होंने हिमाचल प्रदेश से मुंह मोड़ लिया है। पंजाब में सरकार बनाने के बाद अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ हिमाचल के कई दौरे किए लेकिन अब वह सक्रियता खत्म होती दिख रही है।
क्या आदमी पार्टी को ऐसा लगता है कि वह हिमाचल प्रदेश में कुछ खास नहीं कर पाएगी। आखिर जिस तरह का जबरदस्त चुनाव प्रचार अरविंद केजरीवाल ने मार्च से लेकर अगस्त तक किया उसमें अब कमी क्यों आ गई है।
विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए लगातार मेहनत करनी पड़ती है लेकिन पार्टी के सबसे बड़े चेहरे और पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने हिमाचल में अपनी सक्रियता लगभग शून्य क्यों कर दी है, इसके पीछे यही कहा जा रहा है कि शायद पार्टी को हिमाचल से बेहतर नतीजों की उम्मीद नहीं है और इसीलिए केजरीवाल यहां अपनी ऊर्जा और वक्त नहीं खर्च करना चाहते हैं।
लेकिन यहां सवाल यह खड़ा होता है कि अगर बेहतर नतीजों की उम्मीद नहीं है तो भी क्या किसी राजनीतिक दल को चुनाव मैदान छोड़ देना चाहिए। राजनीति में जीत हासिल करने के लिए लगातार संघर्ष और जनता से जुड़े रहने की जरूरत होती है।
यहां याद दिलाना होगा कि इस साल अप्रैल में हिमाचल में आम आदमी पार्टी के तत्कालीन प्रदेश संयोजक अनूप केसरी, महामंत्री सतीश ठाकुर बीजेपी में शामिल हो गए थे। अनूप केसरी की जगह सुजीत ठाकुर को पार्टी का संयोजक बनाया गया है।
बड़े नेता गायब
केजरीवाल ने हिमाचल की जनता से सरकार बनते ही पुरानी पेंशन योजना बहाल करने, युवाओं को हर महीने 3000 रुपए बेरोजगारी भत्ता देने, महिलाओं को 1000 रुपए प्रति माह की स्त्री सम्मान राशि देने जैसे कई बड़े वायदे किए हैं। हिमाचल प्रदेश के आम आदमी पार्टी के ट्विटर हैंडल और फेसबुक पेज पर काफी सक्रियता है लेकिन जमीन पर बड़े नेता दिखाई नहीं देते।
आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल के द्वारा हिमाचल की जनता को दी गई गारंटियों को लेकर आम लोगों के बीच में जा रहे हैं लेकिन ऐसे वक्त में उन्हें पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का सहयोग भी चाहिए। देखना होगा कि क्या आने वाले दिनों में अरविंद केजरीवाल या कोई बड़ा नेता हिमाचल प्रदेश में एक बार फिर चुनाव प्रचार को गति देगा।
बीजेपी-कांग्रेस में सिमटी लड़ाई
हिमाचल में अब तक चुनाव की लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच होती रही है जबकि इस बार ऐसा लग रहा था कि आम आदमी पार्टी चुनाव मैदान में उतर कर मुकाबले को त्रिकोणीय बना सकती है और कुछ सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। लेकिन पार्टी के द्वारा हथियार डाल देने के बाद लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी के बीच सिमटकर रह गई है।
हिमाचल प्रदेश को लेकर आया एबीपी न्यूज़ सी वोटर का ओपिनियन पोल भी कहता है कि आम आदमी पार्टी को इस चुनाव में 0 से 1 सीट ही मिल सकती है।
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