कोरोना वायरस ख़तरनाक क्यों है और क्यों सावधानी बरतना ही सबसे बेहतर उपाय है? क्या सिर्फ़ इसलिए कि इससे कई लोगों की मौतें हो गई हैं? नहीं। दरअसल, इस वायरस से पीड़ित मरीजों की मृत्यु दर उतनी ज़्यादा नहीं है जितनी दूसरे वायरस से पीड़ितों मरीजों की रही है। कोरोना वायरस के मामले में मृत्यु दर क़रीब 3.5 फ़ीसदी है जबकि 2003 में इसी तरह के एसएआरएस (SARS) वायरस में यह मृत्यु दर 10 फ़ीसदी रही थी। 2012 में मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम यानी एमईआरएस में यह दर 34 फ़ीसदी थी। तो फिर कोरोना वायरस से इतना खौफ़ क्यों है और विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने क्यों इसे महामारी घोषित कर दिया है?
इसका जवाब कोरोना वायरस के फैलने और इसके लक्षण में दिखाई देता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार कोरोना वायरस के लक्षण हैं- साँस लेने में तकलीफ़, बुखार, खाँसी, छींक आना, जल्दी-जल्दी साँस लेना। स्थिति गंभीर होने पर न्यूमोनिया, साँस की गंभीर बीमारी, किडनी फ़ेल होने के साथ-साथ मौत भी हो सकती है।
इस वायरस के बारे में चिंता के दो बड़े कारण हैं। पहला तो यह है कि यह नया वायरस और इसका इलाज अब तक नहीं ढूँढा जा सका है। इसका मतलब है कि इसका अभी तक टीका तैयार नहीं किया जा सका है। दूसरा यह है कि कोरोना वायरस काफ़ी तेज़ी से संक्रमित होने वायरस है लेकिन इसके लक्षण दिखने में काफ़ी वक़्त लग जाता है। एक दिन से 14 दिन तक का समय। यानी जब तक आपको कोरोना वायरस से पीड़ित होने का पता लगेगा तब तक आप कई लोगों को संक्रमित कर चुके होंगे। यही कारण है कि यह काफ़ी तेज़ी से पूरी दुनिया में फैल रहा है।
अब तक पूरी दुनिया में 1 लाख 39 हज़ार से ज़्यादा लोग इससे संक्रमित हैं। 5100 से ज़्यादा लोगों की मौतें हो चुकी हैं। इससे 133 देश प्रभावित हैं।
शरीर में कैसे फैलता है यह वायरस?
- कोरोना वायरस का सबसे पहला लक्षण बुखार के रूप में दिखाई देता है। इस लक्षण के पता चलने में 14 दिन तक का भी समय लग सकता है। कुछ मामलों में तो 27 दिन भी लगे हैं। हालाँकि अभी तक आए मामलों का औसत निकाला जाए तो वायरस के लक्षण क़रीब पाँच दिन दिखने लगते हैं।
- लक्षण दिखने के पहले तीन दिन तक वायरस का असर गले में होता है। इससे गले में खरास, खाँसी हो जाती है। फिर इस वायरस का असर साँस लेने वाली नली की तरफ़ बढ़ती है। लक्षण दिखने के बाद 4 से लेकर 9 दिन तक साँस लेने में तकलीफ होने लगती है।
- फिर वायरस शरीर में तेज़ी से फैलने लगता है। फेफड़े में सूजन आ सकती है और न्यूमोनिया हो सकता है। इसके बाद तो साँस लेने में काफ़ी ज़्यादा तकलीफ होने लगती है। ऐसी परेशानियाँ लक्षण दिखने के क़रीब 8-9वें दिन से लेकर 15वें दिन में आने लगती हैं।
- इस बीच फेफड़े में वायरस के फैलने के बाद यह ख़ून में फैल जाता है। ख़ून में फैलने के बाद मरीज की स्थिति काफ़ी ज़्यादा बिगड़ सकती है और ऐसे मरीजों को आईसीयू में रखने की ज़रूरत होती है। अभी तक आए मामलों में क़रीब 5 फ़ीसदी मरीजों को आईसीयू में भर्ती करने की ज़रूरत पड़ी है।
इस वायरस से मरने वाले लोगों की उम्र के बारे में भी चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। 9 साल से कम उम्र के एक भी बच्चे की इस वायरस से मौत नहीं हुई है जबकि 80 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों में मृत्यु दर क़रीब 15 फ़ीसदी है। यानी उम्रदराज लोगों पर इस वायरस का असर ज़्यादा हो रहा है। 70 से 79 उम्र के लोगों की मृत्यु दर क़रीब 8 फ़ीसदी है।
हालाँकि राहत की बात यह है कि उचित समय पर इलाज से इस वायरस से पीड़ित 70 हज़ार से ज़्यादा लोग अब तक उबर चुके हैं। क्योंकि इस वायरस का इलाज नहीं है इसलिए डब्ल्यूएचओ ने सावधानियाँ बरतने की सलाह दी है।
बचाव के उपाय
- संक्रमण से बचने के लिए हाथ मिलाने के बाद हाथों को ज़रूर धोएँ।
- सामान्य तौर पर भी हाथों को साबुन या हैंडवाश से समय-समय पर धोते रहें।
- मुँह, नाक और आँखों को हाथ से नहीं छुएँ।
- पालतू और जंगली जानवरों के संपर्क में आने से बचें।
- खाँसते या छींकते समय मुँह और नाक को ढँके।
- यदि कोरोना वायरस के लक्षण दिखे तो डॉक्टर से मिलें।
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