दिल्ली विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी ने भारी बहुमत से जीत लिया। केंद्र की सत्ताधारी पार्टी, बीजेपी ने पूरी कोशिश की कि वह चुनाव में इस बार आम आदमी पार्टी को शिकस्त दे और सरकार बनाए लेकिन वह सपना अब कम से कम पाँच साल के लिए खिसक गया है। चुनाव में हुई बुरी हार की ज़िम्मेदारी दिल्ली प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ने ले ली है। संभव है कि बलि के बकरे की तलाश अब यहीं रुक जाएगी।
दिल्ली चुनाव के नतीजे क्यों हैं अमित शाह के लिए ख़तरे की घंटी?
- विचार
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- 14 Feb, 2020

सबको पता है कि दिल्ली विधान सभा के इस चुनाव में बीजेपी के अभियान की कमान पूर्व अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह के हाथ में थी। चुनाव प्रचार के जितने भी तीर उनके पास थे सब चलाए गए। सत्तर सीटों वाली विधानसभा के लिए उन्होंने क़रीब पचास चुनावी सभाएँ कीं, रोड शो किया। घर-घर जाकर चुनाव प्रचार किया। चुनावी पर्चे बाँटे। तो आख़िर दिल्ली चुनाव के लिए उन्होंने इतनी कसरत क्यों की?
मनोज तिवारी को अपनी कुर्बानी से दिल्ली की हार से लगी चोट पर मरहम लगाने की ड्यूटी तो दे दी गयी है लेकिन इस चुनाव में उनकी भूमिका बहुत ही मामूली थी। चुनाव अभियान का नेतृत्व हर स्तर पर गृह मंत्री अमित शाह कर रहे थे। अभियान के पूरे एक महीने के दौरान जब भी पार्टी के किसी नेता या प्रवक्ता से यह बात करने की कोशिश की गयी कि भाई, दिल्ली में ‘आप’ के जनहित के रिकॉर्ड के मद्देनज़र आपकी पार्टी चुनाव हार भी सकती है; ऐसी हालत में पार्टी के सबसे बड़े नेता को संभावित हार के कारण के रूप में पेश किए जाने का अवसर क्यों दे रहे हैं तो उनका जवाब एक ही होता था कि अव्वल तो हमारी जीत हो रही है और अगर एक प्रतिशत हार भी हुई तो हमारे यहाँ राष्ट्रीय नेतृत्व मज़बूत है और वह आगे से अभियान की अगुवाई करता है और उसका जो भी नतीजा हो स्वीकार करता है।