बड़ी भद्दी कहावत है पूर्वी उत्तर प्रदेश की, जिसका परिमार्जित रूप है — बंदर के हाथ में उस्तरा। यहाँ हम मोदी को दोष नहीं देते। मोदी एक इनसान हैं और हर इनसान की समझ अलहदा होती है, जो देश, काल और परिस्थिति से बनती है। मोदी के पास काशी का इतिहास-ज्ञान है नहीं, विशेषकर काशी की वास्तुकला के बोध से तो वह बिलकुल परे हैं। उन्होंने अगर विश्वनाथ कॉरिडोर बनाने का फ़ैसला लेने के पहले होमवर्क कर लिया होता, विशेषकर काशी के निर्माण का काल, काशी की बनावट,  जिसमें मुख्य रूप से जल-संरक्षण, मल-निस्तारण और थल की संरचना आती है तो आज यह स्थिति न बनती। मोदी की पहली दिक़्क़त है उनका एकाधिकारवादी दृष्टिकोण, जो दूसरे से निहायत परहेज़ी है। राजनीति में यह घातक माना जाता है। दूसरे नम्बर पर आती है नौकरशाही। पिछले कुछ दिनों से नौकरशाही ग़रीब की लुगाई बन गई है। इस नौकरशाही के पास ताल-तिकड़म, जालबट्टा और लफड़झंडुसी का एक ऐसा मिज़ाज है जिसने उसे 'हाँ हुज़ूर' बना कर छोड़ दिया है। उससे यह उम्मीद करना बेकार है कि वह सियासत के तुगलकी फ़रमान को रोक कर हुकूमत को आगाह कर सके और कह सके कि सरकार यह ऐसा है, इसे दुरुस्त कर लें। 19 77 के बाद से आई यह नौकरशाही सत्ता और संतति के महफ़ूज़ मुस्तक़बिल की आकांक्षा लिए ज़िंदगी बसर कर रही है।