तो आप भी आख़िर सरकार के ही काम आए। हम बेवजह समझ रहे थे कि आप हैं तो कुछ तो बचा के रखेंगे। लेकिन आपने तो उनका पूरा एजेंडा ही स्क्रिप्ट में तब्दील कर दिया। असगर वजाहत साहब, आपसे ऐसी बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। या शायद यह ‘उम्मीद’ ही ग़लत थी। आप बीच-बीच में जैसा दर्शन देते रहे हैं, पहले ही समझ लेना चाहिए था। असगर साहब, अब आप महज़ संदेह के घेरे में नहीं हैं। ‘महाबली’ से उठा संदेह अब यक़ीन में तब्दील हो चुका है।
फ़िल्म में गोडसे को गांधी के बरअक्स खड़ा कर दिया!
- सिनेमा
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- 29 Jan, 2023

'गांधी गोडसे एक युद्ध' के बहाने आख़िर लेखक असगर वजाहत और निर्देशक राजकुमार संतोषी क्या कहना चाहते हैं? क्या गोडसे को गांधी के बराबर लाकर खड़ा करने की कोशिश है?
अब ये न कहिएगा कि नाटक हमारा है, स्क्रिप्ट राजकुमार संतोषी की। स्क्रिप्ट में आपकी पूरी-पूरी भागीदारी है। संवाद में आप बराबर के हिस्सेदार। यह बात संतोषी अपने इंटरव्यू में बार-बार जोर देकर कहते हैं कि हम दोनों ने इस बात का बराबर ध्यान रखा कि “किसी के साथ अन्याय न होने पाए”। उसी इंटरव्यू में जो शायद इस बात के लिए ही प्रायोजित किया गया कि फिल्म रिलीज होने से पहले अगर कहीं धुंआ उठने की गुंजाइश हो तो शांत कर दिया जाए। यानी अगर किसी को भ्रम हो कि यह फ़िल्म गांधी की बात करती है तो साफ कर दिया जाए कि नहीं यह तो गोडसे की बात करती है। और बड़ी चतुराई से करती है। इस साक्षात्कार का वह हिस्सा (संतोषी का वह बयान) तो वाक़ई अंदर तक "प्रभावित" कर जाता है जब संतोषी आश्वस्त करते हैं कि "गोडसे भक्तों को इस फिल्म से कोई आपत्ति नहीं होने वाली"... ज़ाहिर है इस बयान में भी आपका भी राज़ीनामा शामिल है। कहना न होगा कि महाबली से गोडसे तक की इस यात्रा में, आपका (आप दोनों का) आत्मविश्वास रूपी यह "बल" वाकई काबिले तारीफ है।