कई बार यह महसूस होता है कि हिंदी की फ़ीचर फ़िल्मों की तुलना में हिंदी की शॉर्ट फ़िल्में जीवन की सच्चाई को ज़्यादा नज़दीक से दिखाती हैं। सिर्फ़ इतना ही नहीं, बल्कि वे अपने सामाजिक सरोकार को भी बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ निभाती हैं और वे शुष्क नहीं होतीं, रचनात्मकता से भरपूर होती हैं। बिल्कुल ताज़ा तरीन फ़िल्म ‘रंग’ ऐसी ही एक महत्वपूर्ण फ़िल्म है जो प्रासंगिकता और रचनात्मकता को साथ साथ लेकर चलती है।
‘रंग’ समीक्षा: सांप्रदायिक माहौल में भी लोगों को जोड़ सकता है तिरंगा!
- सिनेमा
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- फरीद खान
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- 10 Apr, 2024

फरीद खान
हिंदी की शॉर्ट फ़िल्म ‘रंग’ ने समाज में व्याप्त सांप्रदायिक माहौल का बहुत सीधा और सटीक सा जवाब दिया है। पढ़िए, इस शॉर्ट फिल्म की समीक्षा।
‘रंग’ ने समाज में व्याप्त सांप्रदायिक माहौल का बहुत सीधा और सटीक सा जवाब दिया है कि जब लोग रंगों में [हिन्दू और मुसलमान में] बँटे हों तो उन्हें सिर्फ़ तिरंगा ही जोड़ सकता है और जिसके लिए सबसे उचित स्थान है – स्कूल।
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