वर्तमान में हमारे देश में सिनेमा जिस दौर से गुज़र रहा है उस दौर को ऐतिहासिक तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतिहास में याद ज़रूर रखा जाएगा। इसे सिर्फ़ इसलिए नहीं याद रखा जाएगा कि इतिहास से जुड़े कथानकों के दम पर बड़े-बड़े बजट की मल्टी स्टारर फ़िल्में बनीं बल्कि इसलिए ज़्यादा याद किया जाएगा कि इस दौर में सिनेमा को प्रत्यक्ष तौर पर राजनीति का हथियार बनाकर उसका भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है।
फ़िल्मों में मनोरंजन के नाम पर क्या विचारधाराओं-नेताओं का हो रहा है प्रचार?
- सिनेमा
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- 14 Jan, 2020

राजनीतिक मत भिन्न रखने वाले कलाकारों की फ़िल्मों का बहिष्कार इस बात को स्पष्ट कर दे रहा है कि सिर्फ़ मीडिया ही 'गोदी मीडिया' नहीं बना है सिनेमा भी किसी ऐसे ही नाम का इंतज़ार कर रहा है।
राजनीतिक मत भिन्न रखने वाले कलाकारों की फ़िल्मों का बहिष्कार इस बात को स्पष्ट कर दे रहा है कि सिर्फ़ मीडिया ही 'गोदी मीडिया' नहीं बना है सिनेमा भी किसी ऐसे ही नाम का इंतज़ार कर रहा है। राष्ट्रवाद का एक प्रखर ज्वार इन दिनों हिंदी फ़िल्मों में परोसा जा रहा है। साथ ही साथ राजनीतिक रोटी सेंकने का खेल भी अब फ़िल्मों के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से खेलने की कोशिश हो रही है।
इसका नज़ारा साल 2019 में लोकसभा चुनावों के ठीक पहले देखने को मिला था।