वर्तमान में हमारे देश में सिनेमा जिस दौर से गुज़र रहा है उस दौर को ऐतिहासिक तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतिहास में याद ज़रूर रखा जाएगा। इसे सिर्फ़ इसलिए नहीं याद रखा जाएगा कि इतिहास से जुड़े कथानकों के दम पर बड़े-बड़े बजट की मल्टी स्टारर फ़िल्में बनीं बल्कि इसलिए ज़्यादा याद किया जाएगा कि इस दौर में सिनेमा को प्रत्यक्ष तौर पर राजनीति का हथियार बनाकर उसका भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है।