धार्मिक, पौराणिक विषयों , इतिहास और आस्थाओं से जुड़े मसलों पर फिल्में बनाना मौजूदा कट्टरपंथी राजनीतिक-सांस्कृतिक   माहौल में आसान नहीं है । यह माहौल जिन लोगों ने रचा था, उनके लिए  भी यह दोधारी तलवार साबित हो सकता है। धर्म को चुनावी राजनीति की धुरी बनाकर वोटों का ध्रुवीकरण करने वालों और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की दुंदुभी बजाने वालों और आदिपुरुष के निर्माताओं को फिल्म पर हो रहे विवाद से यह बात समझ आ गई  होगी। भले ही फिल्म की पहले दिन की कमाई के आँकड़े इस फिल्म के निर्माताओं के लिए विशुद्ध कारोबारी नज़रिये से बहुत उत्साहजनक हों लेकिन दर्शकों की निराशाजनक और नकारात्मक प्रतिक्रियाओं और नाराज़गी का बवंडर इतनी जल्दी थमने वाला नहीं है, यह भी दिख रहा है।