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संजय झा कार्यकारी अध्यक्ष यानी नीतीश सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर?

जनता दल (यूनाइटेड) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में एबीवीपी से राजनीति शुरू करने वाले संजय कुमार झा को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा का सीधा मतलब यह है कि जदयू फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के साथ बनी रहेगी। इसके साथ ही यह भी तय हो गया कि नीतीश कुमार फिलहाल सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति जारी रखेंगे और इसे मज़बूत भी करेंगे।

वैसे, नीतीश कुमार की ऐतिहासिक पलटीमार राजनीति को देखते हुए निश्चित रूप से कुछ भी कहना मुश्किल है। फिर भी, राजनीतिक विश्लेषकों का एक वर्ग मानता है कि नीतीश कुमार सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति पर चल रहे हैं और इसके लिए संजय कुमार झा की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। सीतामढ़ी के पुनौरा धाम को विकसित करने का मामला हो या सिमरिया घाट को पर्यटन स्थल बनाने का मामला हो, इन्हें नीतीश कुमार की सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति का उदाहरण माना जाता है। इसके अलावा गंगाजल को पटना से गया की फल्गु नदी तक पहुंचाने का खर्चीला प्रोजेक्ट भी सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति ही मानी जाती है। 

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मधुबनी के झंझारपुर प्रखंड के रहने वाले संजय कुमार झा ने वैसे तो पढ़ाई जेएनयू से भी की है लेकिन उनकी राजनीतिक पाठशाला भारतीय जनता पार्टी है। संजय झा कभी अरुण जेटली के बहुत क़रीबी माने जाते थे और आजकल नीतीश कुमार के बेहद निकट माने जाते हैं।

संजय झा की नीतीश कुमार से निकटता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसी साल उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया गया और फिर वह राज्यसभा में जनता दल (यूनाइटेड) के संसदीय दल के नेता भी बन गए। और अब उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। वैसे, जिस काम के लिए उन्हें कोई पृथक पद नहीं दिया गया है वह है भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) के बीच उनका सेतु बने रहना। 

वैसे तो भारतीय जनता पार्टी अपनी हिंदुत्व की राजनीति के लिए जानी जाती है लेकिन ट्रिपल तलाक का मामला हो या सीएए या फिर अनुच्छेद 370, जेडीयू ने हमेशा अलग नीति का दावा किया लेकिन बाद में भारतीय जनता पार्टी की ही लाइन ली है। इस कारण भी यह कहा जाता है कि नीतीश कुमार सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति करते हैं। 
नीतीश कुमार की सॉफ्ट हिंदुत्व वाली नीति को आगे बढ़ाने में उनके एक और करीबी नेता अशोक चौधरी का भी हाथ है जिनकी बेटी शांभवी चौधरी की शादी महावीर मंदिर वाले आचार्य किशोर कुणाल के बेटे से हुई है। शांभवी चौधरी चिराग पासवान की पार्टी से समस्तीपुर सीट से लोकसभा सदस्य चुनी गई हैं।

जदयू के सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार अपनी तबीयत की खराबी की वजह से भी संजय कुमार झा को ऐसे पद पर लाना चाहते थे जो उनके भार को कम करेंगे, लेकिन इससे यह सवाल पैदा होता है कि उन्होंने आखिर ललन सिंह को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटाया ही क्यों। पार्टी की ऑफिशियल लाइन यह है कि ललन सिंह अपने चुनाव क्षेत्र में ज्यादा ध्यान देना चाहते थे इसलिए उन्होंने पद छोड़ दिया लेकिन फिर सवाल यह है कि अगर व्यस्तता पद छोड़ने का कारण है तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दो-दो पदों पर कैसे बने हुए हैं। कई लोग यह भी मानते हैं कि संजय झा के इस पद पर आने से ललन सिंह का गुट असहज महसूस करेगा।

समझा जाता है कि जनता दल (यूनाइटेड) झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ चुनाव लड़ना चाहेगा और संजय कुमार झा इसमें समन्वय का काम करेंगे। अगर जनता दल (यूनाइटेड) झारखंड में अच्छा प्रदर्शन करेगा तो संजय झा का कद और बढ़ेगा लेकिन अगर अच्छा प्रदर्शन नहीं हुआ तो फिर उनके नेतृत्व पर सवाल भी उठेगा। 

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इसके अलावा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दो फ़ैसलों को लागू करवाने में संजय झा कितना कारगर साबित होते हैं, यह भी उनके पद और कद को तय करेगा। जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में यह मांग रखी गई है कि बढ़ाई गई आरक्षण सीमा को केंद्र नौवीं अनुसूची में शामिल करे ताकि अदालत की समीक्षा से यह आरक्षण बाहर रहे। इसी तरह बिहार को विशेष दर्जा या विशेष पैकेज देने की मांग भी रखी गई है। वैसे लगता यह है कि जदयू ने इन्हें मांग से अधिक अनुरोध की श्रेणी में रखा है।

जदयू की इस राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह भी कहा गया कि बिहार विधानसभा 2025 का चुनाव एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ेगा। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अश्विनी चौबे यह कह चुके हैं कि भारतीय जनता पार्टी अपने नेतृत्व में बिहार में सरकार बनाने की कोशिश करेगी। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व ने ऐसी बात नहीं कही है लेकिन अगर कोई समस्या हुई तो इस स्थिति से निपटने के लिए संजय झा अहम कड़ी साबित हो सकते हैं। 

दूसरे क्षेत्रीय दलों की तरह जनता दल (यूनाइटेड) में भी एक ही नेता की चलती है और वह नेता हैं नीतीश कुमार जिन्हें पार्टी के लोग ‘सर्वमान्य नेता’ कहते हैं। अलबत्ता यह सवाल ज़रूर हो रहा है कि नीतीश कुमार अब जो निर्णय ले रहे हैं वह अपने मन से ले रहे हैं या अपने निकट के लोगों के प्रभाव में आकर ले रहे हैं।

वैसे भी, दूसरे क्षेत्रीय दलों की तरह ही जदयू में अध्यक्ष या किसी महत्वपूर्ण पद पर कोई चुनाव होते नजर नहीं आता। कभी ना चुनाव की तिथि घोषित होती है और ना नामांकन की जरूरत पड़ती है। ऐसे में सर्वमान्य नेता की इच्छा ही सर्वमान्य होती है। तो कभी आरसीपी सिंह जदयू के अध्यक्ष बनते हैं और कभी ललन सिंह लेकिन दोनों को जब सर्वमान्य नेता चाहते हैं, आसानी से हटा लेते हैं। 

इसी तरह जब सर्वमान्य नेता ने चाहा तो संजय कुमार झा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बन गए लेकिन वह सवाल फिर भी उभरता है कि क्या यह पार्टी का सर्वसम्मत निर्णय है या पार्टी में कोटरी बन रहे लोगों का इसमें हाथ है। यह जरूर है कि जब जदयू के अन्य नेताओं को ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार किसी बात से सहमत हैं तो उससे असहमति होते हुए भी असहमति जताने वाला कोई सामने नहीं आता।

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समी अहमद
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