राहुल गांधी की "भारत जोड़ो" यात्रा के शोर के चलते बिहार में अलग से चल रही एक यात्रा की ख़बर गुम हो गयी है। ये यात्रा निकाल रहे हैं चुनाव रणनीतिकार के रूप में मशहूर प्रशांत किशोर उर्फ़ पी के। "जन सुराज" नाम की इस यात्रा को लेकर बिहार में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गयी है। पी के ने बिहार में साढ़े तीन हज़ार किलोमीटर की यात्रा के बाद राज्य के विकास की पंद्रह साल की योजना पेश करने की घोषणा की है।
यात्रा अभी प्रारंभिक चरण में है लेकिन अभी से ये साफ़ होने लगा है कि पी के का असली मक़सद मुख्य मंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्य मंत्री तेजस्वी यादव की राजनीति पर चोट करना है। पी के इन दोनों नेताओं की राजनीति पर खुल कर हमला कर रहे हैं।
पीके एक समय पर नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू ) के पदाधिकारी और राजनीतिक सलाहकार रह चुके हैं। वो अब आरोप लगा रहे हैं कि नीतीश बीजेपी के संपर्क में हैं और फिर से पाला बदल सकते हैं। उनके अनुसार राज्य सभा के उप सभापति और जेडीयू के सांसद हरिवंश संपर्क का ज़रिया बने हुए हैं। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ़ ललन सिंह ने जवाबी हमले में कहा कि पी के भ्रम फैला रहे हैं। नीतीश अब कभी भी बीजेपी के साथ नहीं जायेंगे।
नीतीश को कमज़ोर कर पाएँगे पीके?
जेडीयू के नेता आरोप लगा रहे हैं कि पी के अंदर ही अंदर बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं। उनका मक़सद जेडीयू और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के गठबंधन को कमज़ोर करना है। पी के ने ये कह कर तेजस्वी यादव का मज़ाक़ उड़ाया कि सिर्फ़ नौंवी पास होने के बावजूद वो उप मुख्य मंत्री बन गए क्योंकि लालू यादव के बेटे हैं। आम आदमी का नौंवी पास बेटा चपरासी भी नहीं बन सकता। नीतीश के विकास माडल को पी के खुली चुनौती दे रहे हैं। उनका कहना है कि लालू यादव के बाद नीतीश कुमार के राज में भी बिहार का पूरा विकास नहीं हुआ। रोज़गार की कमी के कारण बिहार के युवा दूसरे राज्यों में नौकरी करने को मजबूर हैं।
विकास पुरुष के रूप में चर्चित नीतीश कुमार की छवि को एक अवसरवादी और पाला बदलू नेता बताने में भी पी के पीछे नहीं हैं लेकिन उनका अपना इतिहास भी कई सवाल खड़ा करता है। भारतीय राजनीति में पी के का प्रवेश एक चुनाव प्रबंधक के रूप में हुआ। उन्होंने 2014 में बीजेपी और नरेंद्र मोदी के लिए काम किया। इस चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद पी के की राजनीतिक महत्वकांक्षा बढ़ी और वो राजनीति में सीधे दख़ल के जुगाड़ में लग गए।
बाद में उन्होंने बिहार में नीतीश कुमार, पंजाब में अमरेन्द्र सिंह, आँध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी और बंगाल में ममता बनर्जी वग़ैरह के लिए काम किया। नीतीश ने अपनी पार्टी में उन्हें महत्वपूर्ण पद दिया लेकिन पी के वहाँ टिक नहीं सके। कांग्रेस में बड़े पद पर जाने की उनकी कोशिश सफल नहीं हुई तो बिहार में अपनी अलग पार्टी बनाकर खड़ा होने की कोशिश में जुट गए।
जाति के गढ़ में विकास राग
बिहार की राजनीति पूरी तरह जातियों में बंटी हुई है। लालू यादव और नीतीश कुमार भी पिछड़ी जातियों के जोड़ पर राजनीति के शीर्ष पर पहुँचे हैं। पी के सवर्ण जाति से हैं, जिनका नेतृत्व पिछड़े स्वीकार नहीं करते हैं। बिहार में बीजेपी के सामने भी यही समस्या है। बिहार बीजेपी में उत्तर प्रदेश के कल्याण सिंह की तरह पिछड़ों का कोई दमदार नेता कभी नहीं हुआ। इसके चलते ही बिहार में बीजेपी उत्तर प्रदेश जैसा चमत्कार नहीं कर पा रही है।रोज़गार, उद्योग, शिक्षा व्यवस्था को मुद्दा बनाकर पी के युवा पीढ़ी को जोड़ने की कोशिश में हैं। उनको अभी तक सीमित समर्थन ही मिल पा रहा है लेकिन नीतीश, लालू और तेजस्वी पर निशाना साध कर वो बिहार के मीडिया में जगह पाने में सफल हैं।
हिंदी पट्टी में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती बिहार में ही है। जेडीयू के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी का आरोप है कि पी के का मक़सद बीजेपी के लिए ज़मीन तैयार करना है। क्योंकि नीतीश के अलग होने के बाद बिहार में बीजेपी का कोई भविष्य नहीं है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि राज्य के पिछड़ेपन का मुद्दा सवर्ण मतदाताओं को आसानी से लुभाता है, इसलिए पी के की यात्रा से सवर्ण मतदाता और ज़्यादा संगठित हो सकते हैं। इसका कुल मिलाकर फ़ायदा बीजेपी को ही होगा क्योंकि सवर्णों का झुकाव पहले से ही बीजेपी की तरफ़ है।
जब राहुल पहुँचेंगे बिहार?
पी के ने जन सुराज यात्रा की शुरुआत पहली अक्टूबर को की। 12 से 15 महीनों में पूरे बिहार का चक्कर लगाने का उनका इरादा है। इसके साथ ही 2024 के लोक सभा चुनावों का समय क़रीब आ जाएगा। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के क्रम में बिहार भी पहुँचेंगे। बिहार में कांग्रेस का मुख्य आधार भी सवर्णों के बीच ही बचा है।राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि सवर्ण इस समय बीजेपी और कांग्रेस के अलावा किसी अन्य के साथ जाने के मूड में दिखाई नहीं दे रहे हैं। राहुल की यात्रा से सवर्णो में कांग्रेस के प्रति भरोसा बढ़ेगा। कांग्रेस को जेडीयू - आरजेडी गठबंधन का सहारा भी है। ऐसे में पी के की यात्रा का फ़ायदा बीजेपी को मिल जाय तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। पी के अगले चुनावों में किसके साथ जाते हैं इस पर भी बहुत कुछ निर्भर होगा।
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