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चुनाव में कूदते ही प्रशांत किशोर विवादों में; साफ-सुथरी छवि का क्या हुआ?

प्रशांत किशोर अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने के बाद पहले ही चुनाव में विवादों में घिर गए हैं। चुनाव में जिस जोश-खरोश से साफ़-सुथरी छवि को लेकर उतरने का वादा प्रशांत किशोर ने किया था उससे कहीं ज़्यादा तेजी से 'दागी' चेहरों को लेकर निशाने पर आ गए हैं।

दरअसल, बिहार में 13 नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव के लिए प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के चार उम्मीदवारों में से तीन के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। यह सक्रिय राजनीति में कूदने से पहले प्रशांत किशोर के साफ़-सुथरी छवि देने के उनके वादे के विपरीत है। राजनीतिक रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने अपनी नयी पार्टी बनाने के काफ़ी पहले से ही राजनीति में गांधी के आदर्शों और साफ़-सुथरी राजनीति पेश करने के दावे करते रहे हैं। वह बिहार में काफ़ी लंबे समय से जन सुराज अभियान चला रहे हैं और उसमें उनका यह कोर मुद्दों में से एक रहा है।

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पिछले महीने महात्मा गांधी के जन्मदिन के अवसर पर 2 अक्टूबर को प्रशांत किशोर ने अपनी राजनीतिक पार्टी 'जन सुराज पार्टी' की शुरुआत की। लॉन्चिंग के दौरान उन्होंने कहा कि पार्टी पिछले दो सालों से सक्रिय है और हाल ही में उसे भारत के चुनाव आयोग से मंजूरी मिली है।

चुनाव आयोग की मंजूरी मिलने के साथ जन सुराज पार्टी अगले बिहार विधानसभा चुनाव में सभी निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ने की घोषणा की। लेकिन इससे पहले राज्य में होने जा रहे उपचुनाव के लिए भी इसने अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा की। राज्य में 13 नवंबर को चार सीटों पर उपचुनाव होना है। इन चारों सीटों पर जन सुराज पार्टी ने उम्मीदवार उतारे हैं। लेकिन इसके साथ ही वह उम्मीदवारों की छवि को लेकर विवादों में आ गयी है। पार्टी के इस क़दम की विभिन्न हलकों से आलोचना हुई है। 

जन सुराज पार्टी यानी जेएसपी के बेलागंज उम्मीदवार मोहम्मद अमजद के खिलाफ उनके चुनावी हलफनामे के अनुसार 1995 से 2022 के बीच दर्ज की गई पांच प्राथमिकी लंबित हैं। एक मामले में उन पर हत्या के प्रयास, सार्वजनिक शांति भंग करने और आपराधिक धमकी के आरोप हैं। 10वीं कक्षा तक की शिक्षा पूरी करने वाले अमजद ने 2005 और 2010 के विधानसभा चुनावों में चुनाव लड़ा था, लेकिन वह हार गए थे। 2010 में वह जेडीयू के टिकट पर बेलागंज से लगभग 4,500 वोटों से हार गये थे। वैसे, जेएसपी ने शुरू में शिक्षाविद मोहम्मद खिलाफत हुसैन को अपना उम्मीदवार घोषित किया था, जिनका अमजद ने पहले समर्थन किया था। लेकिन किशोर ने कहा कि अमजद पर 'अपने समर्थकों की ओर से चुनाव लड़ने का दबाव था'।
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जेएसपी के इमामगंज उम्मीदवार 47 वर्षीय जितेंद्र पासवान पर 2022 और 2023 के बीच दो मामले लंबित हैं। एक मामले में उन पर धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी के लिए प्रयास करने का आरोप है। वह 12वीं कक्षा तक पढ़े हैं। 

रामगढ़ में जेएसपी के सुशील कुमार सिंह ने अपने चुनावी हलफनामे में 2019 से एक लंबित मामले की घोषणा की है। उन पर हत्या के प्रयास और सार्वजनिक शांति भंग करने के आरोप हैं। 

तरारी से जेएसपी के उम्मीदवार किरण सिंह शिक्षा के क्षेत्र में एक्टिविस्ट रहे हैं, जिन पर कोई आपराधिक मामला नहीं है। हालांकि पार्टी ने शुरू में पूर्व उप-सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एस के सिंह को तरारी से उम्मीदवार बनाया था, लेकिन बाद में चुनाव आयोग ने उनकी उम्मीदवारी पर आपत्ति जताते हुए कहा कि वह बिहार के मतदाता नहीं हैं।

जेएसपी के एक नेता ने तर्क दिया कि पार्टी के उम्मीदवारों पर दर्ज मुक़दमे राजनीति से प्रेरित हो सकते हैं और कानून केवल दोषी लोगों को चुनाव लड़ने से रोकता है।

चार सीटों में से तीन पर दागी उम्मीदवार उतारे जाने के बाद जन सुराज पार्टी के वादे पर सवाल उठ रहे हैं और पूछा जा रहा है कि आख़िर उसकी साफ़ छवि के वादे का क्या हुआ। इस पर पार्टी ने सफाई दी है। 

जेएसपी प्रवक्ता सदफ इकबाल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'तीनों उम्मीदवारों में से किसी पर भी हत्या जैसे गंभीर आरोप नहीं हैं। जेएसपी के संस्थापक प्रशांत किशोर का साफ छवि वाले लोगों को टिकट देने का मतलब यह है कि ये उम्मीदवार बाहुबली या जघन्य अपराधों के आरोपों का सामना करने वाले नहीं होने चाहिए। हमने अपने सभी उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि की जांच की है। उनके खिलाफ मामले राजनीति से प्रेरित हैं। हमारे बेलागंज के उम्मीदवार मोहम्मद अमजद के पास अभी भी मिट्टी और खपरैल का घर है और उनकी प्रतिष्ठा बहुत अच्छी है। इसी तरह इमामगंज के उम्मीदवार जितेंद्र पासवान और रामगढ़ के उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह के खिलाफ भी राजनीति से प्रेरित मामले दर्ज हैं।'
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क़मर वहीद नक़वी
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