नीतीश कुमार आजकल बहुत अकेले हैं। निराश भी हैं और हताश भी। बौखलाए हुए हैं। रह-रह कर वो अनाप-शनाप बोलने लगते हैं। नीतीश की छवि एक शालीन नेता की रही है लेकिन अब वो रैलियों में निजी टिप्पणियां करने लगे हैं। उनके स्वभाव में ये बदलाव दरअसल इस बार के बिहार चुनाव की असली कहानी है।

ज़मीन पर बीजेपी के कार्यकर्ता जमकर नीतीश को कोस रहे हैं और उनका साथ दे रहे हैं अपने सीने में मोदी की मूर्ति लेकर घूमने का दावा करने वाले चिराग पासवान। चिराग को अगर एक फ़ोन मोदी या अमित शाह का चला जाता तो वह नीतीश के ख़िलाफ़ बोलना बंद कर देते। लेकिन न केवल वो बोल रहे हैं बल्कि नीतीश को जेल भेजने की भी बात कर रहे हैं।
नीतीश को बिहार की राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। ऐसा चाणक्य जो बिहार में पिछले पंद्रह सालों से शासन के शीर्ष पर रहा। उनके राजनीतिक चातुर्य का करिश्मा ये है कि बीजेपी और आरजेडी दोनों, उनके नीचे रह कर सरकार में शामिल रहे।
मज़ेदार बात ये है कि जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) दोनों दलों से छोटा ही रहा। फिर भी मुख्यमंत्री वही बने। अब चाणक्य का अस्तित्व ख़तरे में है। वो चक्रव्यूह में फंस गए हैं। ये चक्रव्यूह किसी और ने नहीं, खुद नीतीश कुमार ने रचा और अब वो बाहर जाने का रास्ता खोज रहे हैं। चक्रव्यूह के दरवाज़े उनसे टूट नहीं रहे हैं और लगता है कि अभिमन्यु की तरह वो भी खेत रहेंगे।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।