बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नाराज़गी के बाद जय प्रकाश नारायण विश्वविद्यालय ने सिलेबस से जेपी और लोहिया के हटाने के मामले में यू-टर्न ले लिया है। विश्वविद्यालय ने कहा है कि अगले सत्र से इन दोनों समाजवादी नेताओं से जुड़े अध्याय पहले की तरह ही शामिल किए जाएँगे। बिहार के राज्यपाल और विश्वविद्यालय के चांसलर फागू चौहान ने यह बयान जारी किया है। जेपी और लोहिया को फिर से सिलेबस में शामिल करने का यह फ़ैसला विश्वविद्यालय के वीसी के साथ बैठक में लिया गया।
पहले जय प्रकाश नारायण विश्वविद्यालय के एमए राजनीति शास्त्र के पाठ्यक्रम से जेपी और लोहिया को हटाए जाने पर तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। नीतीश कुमार ने खुद इसकी आलोचना की थी। नये सिलेबस में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे नाम जोड़े गए हैं। यह मामला तब सामने आया था जब स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया की स्थानीय इकाई ने आपत्ति जताई। इसके बाद विपक्षी दलों के नेता भी सवाल उठाने लगे। तब शिक्षा मंत्री विनय कुमार चौधरी ने बताया था कि जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय, छपरा के राजनीति विज्ञान के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम से लोकनायक जयप्रकाश नारायण एवं डॉ. राम मनोहर लोहिया के राजनीतिक विचार एवं दर्शन निकाले जाने को सरकार एवं शिक्षा विभाग ने गंभीरता से लिया है।
शिक्षा विभाग की ओर से बयान में मुख्यमंत्री के हवाले से कहा गया था कि यह बदलाव अनुचित और अनावश्यक है। इन बदलावों पर उन्होंने अपनी नाराज़गी जताई थी और तत्काल सुधारात्मक क़दम उठाने के लिए कहा था। बयान में चेताया गया था कि राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों को भी पाठ्यक्रम में कोई बदलाव करने से पहले शिक्षा अधिकारियों से परामर्श लेना होगा।
इसके बाद यह ख़बर आई थी कि इस मामले में बीजेपी और जेडीयू के बीच तनातनी हो सकती है। दोनों दलों के बीच अक्सर विवाद होते रहे हैं। इससे पहले विवाद तब हुआ था जब जेडीयू ने हाल ही में कहा था कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार में वे सभी गुण हैं जो एक प्रधानमंत्री के लिए होने चाहिए। विवाद बढ़ा तो जेडीयू नेता और पार्टी महासचिव के. सी. त्यागी को सफ़ाई देनी पड़ी थी और उन्होंने कहा कि एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार तो नरेंद्र मोदी ही हैं।
उससे भी कुछ दिन पहले नीतीश कुमार ने जाति जनगणना की मांग के लिए राज्य में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव सहित कई दलों के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री से मुलाक़ात की थी। इससे पहले इस मामले में जब प्रधानमंत्री मोदी ने शुरुआत में मिलने का समय नहीं दिया था तो उन्होंने नाराज़गी जताते हुए कहा था कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी मिलने का समय नहीं दे रहे हैं।
पेगासस स्पाइवेयर से मोदी सरकार भले ही किनारा कर रही थी, लेकिन नीतीश कुमार ने इस मामले में जाँच की मांग कर बीजेपी को असहज कर दिया था। विधानसभा चुनाव के समय और उससे पहले भी ऐसे विवाद होते रहे थे।
इसी बीच जब 'लोक नायक' जय प्रकाश नारायण यानी जेपी नाम के विश्वविद्यालय का मामला आया तो फिर से विवाद होने की आशंका जताई गई। यह आशंका इसलिए भी थी क्योंकि राज्यपाल बीजेपी के नियुक्त किए हुए हैं और राज्यपाल ही विश्वविद्यालय के चांसलर होते हैं। विश्वविद्यालय में किसी फेरबदल और मुख्यमंत्री द्वारा आपत्ति जताए जाने पर जाहिर तौर पर दोनों दलों के लिए टकराव का मुद्दा था।
इस मामले में आरजेडी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने भी नीतीश सरकार पर दबाव बना दिया था। उन्होंने भी पाठ्यक्रम से जेपी और लोहिया जैसे समाजवादी विचारकों को हटाए जाने पर सरकार की आलोचना की थी। उन्होंने ट्वीट कर कहा था कि यूनिवर्सिटी के सिलेबस से संघी बिहार सरकार तथा संघी मानसिकता के पदाधिकारी महान समाजवादी नेताओं- जेपी-लोहिया के विचार हटा रहे हैं। बहरहाल, यूनिवर्सिटी में दोनों अध्याय तो वापस जुड़ गए हैं, लेकिन क्या बीजेपी और जेडीयू में भी सबकुछ सामान्य है?
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