भारतीय जनता पार्टी जिस तरह धनबल और कई तरह के दबावों का प्रयोग कर कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों के निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपनी ओर मिला कर सरकार गिराने-बनाने का खेल पूरे देश में खेलती है, असम में वह स्वयं उसका शिकार हो सकती है।
असम में
बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) के नए सत्तारूढ़ गठबंधन से संबंधित निर्वाचित सदस्यों को विपक्ष बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) खरीद न ले, बीजेपी और यूपीपीएल ने इस डर इन निर्वाचित प्रतिनिधियों को गुवाहाटी के एक होटल में रखा है।
यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल), बीजेपी और गण सुरक्षा पार्टी (जीएसपी) से संबंधित 22 सदस्यों को परिषद के चुनाव के परिणाम घोषित किए जाने के बाद शनिवार रात पहली बार होटल में लाया गया।
बोडोलैंड परिषद
बीटीसी संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक स्वायत्त स्वशासी निकाय है। इससे पहले दो बोडो समझौते हुए हैं - दूसरे समझौते के तहत 2003 में बीटीसी का गठन हुआ। 2015 के बीटीसी चुनावों में बीपीएफ ने 20 सीटें जीतीं थी और सत्ता में आई थी। तब बीजेपी ने केवल एक सीट जीती थी। 40 सदस्यीय बीटीसी के चुनाव 7 और 10 दिसंबर को हुए थे।यूपीपीएल ने 12, बीजेपी ने नौ, जीएसपी ने एक और कांग्रेस ने एक सीट जीती। कांग्रेस का इकलौता पार्षद कांग्रेस छोडकर बीजेपी में शामिल हो गया है। राज्य सरकार में बीजेपी की सहयोगी बीपीएफ ने 17 सीटें जीतीं।
बीजेपी ने इस चुनाव में बीपीएफ के साथ गठबंधन नहीं किया और बीपीएफ के ख़िलाफ़ जो़रदार प्रचार किया। बीजेपी ने यूपीपीएल को नया साथी बना लिया।
बीपीएफ के पास 17 सदस्य हैं। बीजेपी और यूपीपीएल को डर है कि कहीं बीपीएफ उनके कुछ पार्षदों को खरीद कर सरकार बनाने का दावा न कर दे। यही वजह है कि बीटीसी मुख्यालय कोकराझार से 225 किलोमीटर दूर गुवाहाटी के होटल लिली में इन पार्षदों को बंद करके रखा जा रहा है।
निगरानी क्यों?
नवनिर्वाचित सदस्यों पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे बाहरी लोगों के संपर्क में न हों। बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं को शिफ्ट के आधार पर सदस्यों की निगरानी का काम सौंपा गया है।मंगलवार की सुबह सदस्यों ने बीटीसी के नए मुख्य कार्यकारी सदस्य (सीईएम) के रूप में यूपीपीएल अध्यक्ष प्रमोद बोरो के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए कोकराझार तक एक बस में एक साथ यात्रा की। यूपीपीएल से एक, दो बीजेपी से और एक जीएसपी से यानी चार सदस्यों ने भी कार्यकारी सदस्य के रूप में शपथ ली।
लेकिन जैसे ही समारोह समाप्त हुआ, सत्ताधारी गठबंधन के सदस्यों को फिर से बस में लाद दिया गया और वापस होटल ले जाया गया।
बीजेपी का तर्क!
यूपीपीएल के प्रमुख और नए बीटीसी सीईएम प्रमोद बोरो ने कहा,
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“आशंकित होने का कोई सवाल ही नहीं है और सब कुछ एक प्रक्रिया के अनुसार किया जा रहा है। यहाँ तक कि मैं जीत के बाद अपने घर या अपने निर्वाचन क्षेत्र में नहीं गया। हम पाँच साल के लिए चुने गए हैं और उसके लिए समय मिलेगा।”
प्रमोद बोरो, यूपीपीएल प्रमुख
उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए इसके आगे कहा, “लेकिन हमारी पहली प्राथमिकता बीपीएफ द्वारा बीटीसी को पिछले 17 वर्षों में किए गए नुक़सान की भरपाई करना और नई योजनाओं को शुरू करना है। अगर हमें उसके लिए 5-10 दिन चाहिए, तो कोई दिक्क़त नहीं है। लोगों ने हमें अपना काम करने के लिए वोट दिया है और हम ऐसा कर रहे हैं।”
बोरो ने पहले कहा था कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सदस्यों को बीपीएफ द्वारा खरीदने की अटकलें सही नहीं है और बीटीएफ के कई सदस्य यूपीपीएल में शामिल हो सकते हैं।
क्या कहना है जीएसपी का?
कोकराझार से लोकसभा सांसद और जीएसपी अध्यक्ष नव कुमार सरनिया ने कहा,
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“विभागों के आवंटन और नए सदस्यों के शपथ ग्रहण की कुछ औपचारिकताएं हैं। इन सभी में कुछ और दिन लगने चाहिए और सब कुछ व्यवस्थित हो जाएगा। होटलों में नए चुने हुए प्रतिनिधि को रखना इन दिनों राजनीति में सामान्य हैं, और जनता इसे जानती है।”
नव कुमार सरनिया, जीएसपी अध्यक्ष
दलबदल विरोधी कानून, जो संसद और राज्य विधानसभाओं में लागू है, स्थानीय निकायों और स्वायत्त क्षेत्रीय परिषदों में लागू नहीं होता है।
स्वतंत्र पत्रकार पंकज दुवरा ने सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट में लिखा है, “बीटीसी के आसार सही नज़र नहीं आ रहे हैं। निर्वाचित प्रतिनिधियों को बीपीएफ प्रमुख हाग्रामा मोहिलारी के डर से बीजेपी के मंत्री हिमन्त विश्व शर्मा के कहने पर प्रमोद बोरो ने होटल लिली में बंद कर रखा है। बीटीसी की पहली बैठक भी गुवाहाटी में आयोजित करने की बात कही जा रही है। अनंत काल तक सदस्यों को गुवाहाटी के होटल में बंद रखना मुमकिन नहीं होगा और बोड़ो जनता में नाराजगी बढ़ती जाएगी। इसका फायदा मोहिलारी को होगा। दो तीन महीने में ही इस गठबंधन का अंत हो सकता है।"
संविधान संशोधन
बता दें कि वर्ष 1985 में 52वां संशोधन कर संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई थी, जिसे 2003 में 91वें संविधान संशोधन द्वारा और कठोर बनाया गया। दसवीं अनुसूची के अनुसार किसी विधायक को अयोग्य ठहराने के आधार हैं, यदि उसने स्वेच्छा से अपने राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ दी है या यदि वह सदन में मतदान के समय अनुपस्थित रहता है या अपने दल के दिशा-निर्देश के विपरीत मतदान करता है।हालांकि विधायक दल के सदस्यों के दो-तिहाई या उससे अधिक सदस्य किसी अन्य पार्टी में विलय करते हैं, तो दलबदल-विरोधी क़ानून लागू नहीं होगा। संविधान का 52वां संशोधन दलबदल की बुराई और 'आया राम गया राम' की राजनीति पर अंकुश लगाने के लिए लाया गया था, ताकि मतदाताओं के मतदान का सौदा न हो और संसदीय लोकतंत्र की नींव स्थिर और मजबूत रहे।
भले ही यह प्रयास सराहनीय नज़र आते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में धनबल के सहारे राजनीति कर रही भारतीय जनता पार्टी ने देश के विभिन्न राज्यों में विपक्ष के विधायकों को खरीदकर सरकार बनाने का उदाहरण पेश किया है। लेकिन जो दाँव वह विपक्ष के ख़िलाफ़, आजमाती रही है, असम में उसे उसी दाँव का भय सताने लगा है।
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