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कोविड-19 महामारी के प्रकोप के समय छात्रों के सिर से बोझ हल्का करने के बहाने देश भर में स्कूली पाठ्यपुस्तकों पर बीजेपी सरकार की भगवा कैंची चल रही है। बीजेपी पर आरोप है कि देश की बहुलतावादी धर्मनिरपेक्ष छवि को बदलने की जिद में वह सत्ता में आने के बाद से ही शिक्षा को निशाना बनाती रही है। ताजा उदाहरण असम में सामने आया है।
मंडल आयोग की रिपोर्ट, जवाहरलाल नेहरू पर पाठ, 2002 के गुजरात दंगों और जाति और हाशिए के समाज पर लिखे गए पाठ को असम में कक्षा 12 राज्य बोर्ड के सिलेबस से महामारी के मद्देनजर 30% की कटौती की नीति के रूप में हटा दिया गया है।
हाल ही में असम उच्चतर माध्यमिक शिक्षा परिषद (एएचएसईसी) की वेबसाइट से जिन सिलेबस को हटाया गया, उनके सेक्शन की एक सूची अपलोड की गई थी। अधिकारियों ने कहा कि हटाये जाने वाले पाठों को राज्य भर के शिक्षकों और विषय विशेषज्ञों के साथ परामर्श के बाद चुना गया था।
राजनीति विज्ञान में, 'स्वतंत्रता के बाद भारत की राजनीति' शीर्षक के तहत छोड़े गए अंशों में शामिल हैं- पहले तीन आम चुनाव; राष्ट्र निर्माण के लिए नेहरू का दृष्टिकोण; अकाल और पंचवर्षीय योजनाओं का निलंबन; नेहरू की विदेश नीति; नेहरू के बाद राजनीतिक उत्तराधिकार; गरीबी हटाओ की राजनीति; गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन; पंजाब संकट और 1984 के सिख विरोधी दंगे; मंडल आयोग की रिपोर्ट का कार्यान्वयन; यूएफ और एनडीए सरकारें; 2004 चुनाव और यूपीए सरकार; अयोध्या विवाद और गुजरात दंगे।
कांग्रेस पार्टी और उसके इतिहास से संबंधित विषय; कश्मीर के मुद्दे; 1962, 1965 और 1971 में चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध; आपातकाल और जनता दल और बीजेपी का उदय जैसे विषयों को नहीं हटाया गया है।
असम में कक्षा 12 के इतिहास के पाठ्यक्रम में अब 'समानता, जाति और वर्ग' खंड शामिल नहीं है। अंग्रेजी में 'बचपन की यादें' नामक एक अध्याय को रखा गया है। उस में छात्र दो महिला लेखकों- एक महान नेटिव अमेरिकी लेखिका और सुधारक ज़िटकला-सा और एक तमिल दलित लेखिका वामा के आत्मकथात्मक लेखन का अध्ययन करते हैं।
पाठ्यक्रम से जुड़े आधिकारिक नोट में एएचएसईसी के सचिव मनोरंजन काकोती ने लिखा है, “यह सभी को अच्छी तरह से पता है कि कोरोना महामारी के चलते हमारे राज्य के छात्रों का कीमती वक्त जाया हो चुका है। सीबीएसई द्वारा ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के लिए पाठ्यक्रम में कटौती करने का निर्णय लिए जाने के बाद, एएचएसईसी इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर रहा था।”
काकोती ने आगे लिखा कि, “जुलाई में परिषद ने शिक्षाविदों और शिक्षकों के विचार मांगे थे। उनकी प्रतिक्रिया और मूल्यवान सुझावों के आधार पर एएचएसईसी की अकादमिक समिति ने 19/08/2020 को आयोजित बैठक में पाठ्यक्रम सामग्री की 30% मात्रा को कम करने का फैसला किया था।"
काकोती ने बताया, “ये निर्णय विशेषज्ञों और शिक्षकों द्वारा लिए गए थे और राज्य भर के संस्थानों से एक विशेषज्ञ या एक शिक्षक नहीं, बल्कि एक विस्तृत श्रेणी की राय ली गई है। यदि शिकायतें आती हैं, तो हम फिर से बैठक करेंगे और आगे फैसला करेंगे।”
इससे पहले 7 जुलाई को केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने कोरोना वायरस महामारी के चलते साल 2020-21 के लिए क्लास 9वीं से लेकर 12वीं तक का पाठ्यक्रम 30 प्रतिशत तक घटा दिया था। इसका मतलब यह है कि 11वीं के 2020-21 के शैक्षणिक वर्ष के दौरान छात्र ''राजनीतिक विज्ञान में संविधान में संघवाद के बारे में नहीं पढ़ेंगे।''
सीबीएसई की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, ''नागरिकता, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद आदि पाठों को भी हटा दिया गया है।''
वहीं, 12वीं कक्षा के पाठ्यक्रम में से ''भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध” को हटा दिया गया। इसके अलावा सामाजिक आंदोलनों, भारत के आर्थिक विकास की बदलती प्रकृति और योजना आयोग आदि पाठों को भी हटा दिया गया।'' बिजनेस स्टडीज के छात्र ''भारत में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के विशेष संदर्भ के साथ व्यापार, सरकारीकरण, माल और सेवा कर की अवधारणा का अध्ययन नहीं करेंगे।''
इसके अलावा इतिहास के छात्र ''विभाजन, जमींदारों या किसानों के बारे में कुछ नहीं पढ़ेंगे।'' वहीं 11वीं के अंग्रेजी के पाठ्यक्रम में से ''एडिटर को लेटर लिखें और नौकरी के लिए रिज्यूम के साथ अप्लाई करें,'' को हटा दिया गया।
कक्षा 10 के छात्रों के लिए, ''समकालीन भारत में वनों और वन्य जीवन पर सामाजिक विज्ञान के चैप्टर को हटा दिया गया है। साथ ही लोकतंत्र और विविधता पर अध्याय, लिंग, धर्म और जाति, लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन और लोकतंत्र के लिए चुनौतियां'' आदि चैप्टर्स को भी पाठ्यक्रम में से हटा दिया गया।
असम में सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर प्रतिक्रिया दिखाई दे रही है। एक खेमा इसकी सराहना करते हुए कह रहा है कि कोरोना की वजह से जो दबाव छात्रों पर है, उसे देखते हुए सिलेबस में कटौती स्वागतयोग्य कदम है। दूसरा खेमा कह रहा है कि इस तरह की कटौती से शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी।
गुवाहाटी के एक शिक्षाविद ने नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर कहा, "भले ही इस निर्णय को अस्थायी बताया जा रहा है और महामारी के प्रकोप के समय छात्रों पर बोझ को कम करने का तर्क दिया जा रहा है, लेकिन जिस तरह के पाठ चुन-चुन कर सिलेबस से हटाये गए हैं उससे बीजेपी सरकार की शिक्षा विरोधी मानसिकता उजागर होती है। इससे पता चलता है कि बीजेपी सरकार शिक्षा प्रणाली में किस तरह का बदलाव लाना चाहती है।"
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