ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) और असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद (एजेवाईसीपी) ने आधिकारिक तौर पर एक नए स्थानीय राजनीतिक दल के गठन की घोषणा की है, जिसमें स्पष्ट किया गया कि दोनों संगठन अपनी गैर-राजनीतिक पहचान को बरकरार रखेंगे। शुक्रवार को गुवाहाटी में आयोजित एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में दोनों संगठनों के शीर्ष नेतृत्व द्वारा इस बात की घोषणा की गई।
दोनों संगठनों द्वारा एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि भारतीय संविधान के ढांचे के अंतर्गत और देश के संघीय ढांचे के अनुरूप नई पार्टी की मुख्य मार्गदर्शक विचारधारा "असम पहले, हमेशा और हमेशा" होगी।
आसू और एजेवाईसीपी ने कुछ हफ्ते पहले "असम सलाहकार समिति" का गठन किया था। समिति में राज्य के 16 प्रमुख व्यक्तियों को शामिल किया गया, ताकि राज्य के मूल लोगों के हितों की रक्षा की कार्रवाई के लिए इस समिति द्वारा भविष्य की रूपरेखा का सुझाव दिया जा सके।
संभावित गठबंधनों के बारे में पूछे जाने पर आसू के महासचिव लुरिनज्योति गोगोई ने बताया कि यह आने वाले दिनों में घोषित किया जाएगा लेकिन उन्होंने कहा कि नई पार्टी इस बात को ध्यान में रखेगी कि क्षेत्रीय राजनीतिक शक्ति में विश्वास रखने वालों के वोट विभाजित नहीं होने चाहिए। कृष्णा गोपाल भट्टाचार्य और बसंत डेका, दो शिक्षाविद जो इस सलाहकार समिति का हिस्सा थे, को नई पार्टी के गठन को अंतिम रूप देने के लिए मुख्य संयोजक के रूप में नामित किया गया है।
दोनों संगठनों के अनुसार, ‘नई पार्टी सभी क्षेत्रीय ताकतों को समायोजित करने और सत्तारूढ़ बीजेपी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार की ताकत का मुक़ाबला करने के लिए जितना संभव हो सकेगा, उतना व्यापक आधार बनाने की कोशिश करेगी।’
इन संगठनों के मुताबिक़, “पार्टी में स्थानीय जन समूहों के साथ-साथ देश के अन्य हिस्सों से आए लोगों के लिए जगह होगी। यदि असम 1971 तक आए बांग्लादेशियों को समायोजित कर सकता है तो यह निश्चित रूप से उन लोगों को भी समायोजित कर सकता है जो भारत के अन्य हिस्सों से आए थे, लेकिन सही अर्थों में जिन्होंने असम को अपना घर बनाया। हमारा दल सही अर्थों में एक समावेशी दल होगा।”
पिछले साल नवंबर में नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन के दौरान एक क्षेत्रीय मोर्चे के विकल्प के साथ एक समावेशी और संयुक्त प्रयास की आवश्यकता को विभिन्न मंचों पर उजागर किया गया। बीजेपी पर वादाख़िलाफ़ी का आरोप लगाते हुए इस तरह के मोर्चे के गठन पर ज़ोर दिया गया।
आसू और एजेवाईसीपी के नेताओं ने कहा है कि सीएए की वजह से उत्पन्न स्थिति, दशकों से केंद्र और राज्य सरकारों का असम के लोगों के साथ सौतेला बर्ताव और असम गण परिषद द्वारा अपने क्षेत्रीय चरित्र को खो देना नए क्षेत्रीय दल की आवश्यकता के कारक कहे जा सकते हैं।
आसू की अगुवाई में छह सालों तक चले असम आंदोलन के गर्भ से जिस असम गण परिषद का जन्म हुआ था, उसे अब बीजेपी की बी टीम के रूप में देखा जा रहा है।
सीएए से असमिया पहचान को ख़तरा?
व्यापक विरोध के बावजूद जनवरी में केंद्र द्वारा सीएए को पारित किए जाने के बाद असम में एक मजबूत क्षेत्रीय मोर्चे के गठन की आवाज़ मजबूत होती गई। दिसंबर, 2014 तक बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफग़ानिस्तान से भारत में प्रवेश करने वाले गैर-मुसलमानों को नागरिकता प्रदान करने वाले सीएए को असमिया संस्कृति और पहचान के लिए खतरे के रूप में देखा जा रहा है। इसे 1985 असम समझौते का उल्लंघन भी माना जा रहा है।
आसू, एजेवाईसीपी और कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) असम में सीएए विरोधी आंदोलन में सबसे आगे रहे हैं।
कांग्रेस भी संसद के भीतर और बाहर सीएए के ख़िलाफ़ जोरदार विरोध करती रही है। असम कांग्रेस के अध्यक्ष रिपुन बोरा ने गुरूवार को कहा कि अगर वे 2021 में सत्ता में आते हैं तो सीएए विरोधी कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ दर्ज सभी मामलों को वापस ले लेंगे। कांग्रेस ने सभी सीएए विरोधी और बीजेपी विरोधी ताकतों के साथ गठबंधन करने की इच्छा जताई है।
केएमएसएस के अध्यक्ष भस्को डी सैकिया ने बताया कि केएमएसएस ने एक पार्टी के शुभारंभ की घोषणा की है और यह क्षेत्रीय और बीजेपी विरोधी ताकतों के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार है।
असम विधानसभा चुनाव अगले साल अप्रैल तक होने की उम्मीद है। कांग्रेस ने घोषणा की है कि वह बीजेपी विरोधी मोर्चा बनाने के लिए ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ़) और अन्य इच्छुक दलों के साथ गठबंधन करेगी।
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