एकात्म मानववाद की अवधारणा देने वाले दीनदयाल उपाध्याय की मौत अभी भी रहस्य है। एकात्म मानववाद भारतीय जनता पार्टी की आधिकारिक विचारधारा है और सत्तासीन दल ने मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन कर दिया है। इसी स्टेशन पर 11 फ़रवरी 1968 को उपाध्याय एक यार्ड में संदिग्ध अवस्था में मृत पाए गए थे। पंडित दीन दयाल उपाध्याय का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा ज़िले के नगला चंद्रभान गाँव में 25 सितंबर 1916 को हुआ। उनकी माता रामप्यारी धार्मिक महिला थीं और उनके पिता भगवती प्रसाद सहायक स्टेशन मास्टर थे। राजस्थान के सीकर में हाई स्कूल की शिक्षा, पिलानी में इंटरमीडिएट की शिक्षा और कानपुर के सनातन धर्म कॉलेज से बीए की पढ़ाई पूरी की। अपने मित्र बलवंत महाशब्दे की प्रेरणा से वह 1937 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हो गए और उसके बाद उन्होंने आगरा में एमए की पढ़ाई की। कुछ साल बाद वह आरएसएस के प्रचारक बन गए।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की तो वह पार्टी के पहले महासचिव नियुक्त हुए। वह 1967 तक जनसंघ के महासचिव बने रहे। उपाध्याय दिसंबर 1967 में जनसंघ के अध्यक्ष चुने गए। वह जनसंघ के अध्यक्ष पद पर केवल 6 सप्ताह रहे, लेकिन महासचिव के रूप में उन्होंने लंबे समय तक काम किया और कार्यकर्ताओं का एक देशव्यापी नेटवर्क तैयार किया।
10 फ़रवरी 1968 की शाम वह सियालदह एक्सप्रेस से लखनऊ से पटना के लिए निकले। मध्यरात्रि क़रीब 2 बजकर 10 मिनट पर वह मृत पाए गए। उपाध्याय की मौत की सीबीआई जाँच शुरू हुई। सीबीआई के निदेशक जॉन लोबो अपनी टीम के साथ मुगलसराय स्टेशन गए। लेकिन उन्हें बुला लिया गया। इससे यह संदेह गया कि जाँच की दिशा बदली जा रही है।
सीबीआई आख़िरकार अपनी जाँच में इस निष्कर्ष पर पहुँची कि उपाध्याय की हत्या 2 मामूली चोरों ने की। उनके साथ सटे केबिन में यात्रा कर रहे एमपी सिंह ने देखा कि मुगलसराय स्टेशन पर कोई उनके केबिन में घुसा और फ़ाइल व बेडिंग लेकर निकल गया। इस मामले में भरतलाल के ऊपर चोरी का आरोप लगा। बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फ़ैसले में टिप्पणी की, ‘आरोपी पर क़त्ल करने का आरोप साबित नहीं होता। हत्या की सच्चाई को लेकर रहस्य अभी भी बना हुआ है।’
इसके बाद जब विवाद बढ़ा तो 23 अक्टूबर 1968 को इंदिरा गाँधी सरकार ने न्यायमूर्ति वाईवी चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में एक जाँच आयोग का गठन किया।
आयोग की टिप्पणी थी,
‘सहयात्री एमपी सिंह और कंडक्टर बीडी कमल की परस्पर विरोधी गवाहियाँ, शव की दशा में बदलाव, मृतक की जेब से वैध टिकट का मिलना, जिससे उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता था, उनके शव को एक अस्थायी तरीक़े से रखना, कंपार्टमेंट में फिनायल की एक बोतल का मिलना, घावों की विचित्रता, और ऐसे बहुत से सवाल असामान्य स्थिति को दर्शाते हैं। दिलचस्प है कि हर कदम पर किसी न किसी रेलवे कर्मचारी की भागीदारी पाई गई है।’
जनसंघ के अध्यक्ष रहे बलराज मधोक ने अपनी जीवनी में इस घटना को लेकर सीधे अटल बिहारी वाजपेयी पर हमला बोला। मधोक ने उपाध्याय की मौत को नृशंस हत्या क़रार दिया था और वह लगातार अख़बारों में इस तरह के बयान दे रहे थे। इस पर वाजपेयी को आपत्ति थी। मधोक ने लिखा है,
‘अटल बिहारी ने मुझसे कहा कि आप इसे हत्या क्यों कह रहे हैं? दीन दयाल झगड़ालू व्यक्ति था, गाड़ी में किसी के साथ झगड़ पड़ा होगा और धक्का लगने से नीचे गिरकर मर गया होगा। इसे हत्या मत कहो।’
मधोक ने इस बातचीत का ज़िक्र करते हुए आगे लिखा है,
‘मैं जानता था कि अटल, दीनदयाल जी को अपनी राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति में रोड़ा समझता है, परंतु इसकी मुझे स्वप्न में भी कल्पना नहीं थी कि वह उनके प्रति इतनी घृणा और आक्रोश पाले बैठा है।’
अपनी जीवनी में वह आगे लिखते हैं,
‘कुछ दिनों के बाद पटना प्रदेश जनसंघ के सहमंत्री सुरेश दत्त शर्मा का एक पत्र मिला। उसमें उसने दीनदयाल जी की हत्या के संबंध में कुछ चौंका देने वाली बातें लिखी थीं। उसने लिखा कि 10 फ़रवरी को प्रातः 11 बजे के लगभग उसकी दुकान के सामने एक रिक्शा रुका। उसमें बैठा व्यक्ति उसके पास आया और उससे कहा कि दीनदयाल उपाध्याय की आज रात हत्या कर दी जाएगी और षड्यंत्र करने वालों में जनसंघ के एक केंद्रीय अधिकारी का नाम लिया और कहा कि उन्हें बचा सकते हो तो बचा लो। उसने वह नाम भी लिखा। वह था नाना देशमुख।’ (ज़िंदगी का सफर, पेज 17, लेखक - बलराज मधोक)
यहाँ यह बताना उचित होगा कि मधोक को बाद में जनसंघ से निकाल दिया गया था। वो ताउम्र वाजपेयी, आडवाणी और दूसरे जनसंघ के नेताओं को लेकर काफ़ी कटु रहे। उनके बयानों को उसी संदर्भ में देखना चाहिये।
इस घटना के बाद 1978 में आरएसएस समर्थित जनता पार्टी सरकार बनी। 1989 में भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से जनता दल सरकार बनी। 1998 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। 2014 से अब तक नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी, लेकिन एकात्म मानववाद के प्रणेता उपाध्याय की मृत्यु के रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका। 25 सितंबर को दीनदयाल उपाध्याय की 104वीं जयंती मनाई गई, लेकिन अभी भी उनके समर्थक और उनकी विचारधारा के मानने वालों के बीच यह रहस्य बना हुआ है कि उपाध्याय की मौत कैसे हुई।
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